Essay and History of Babri Masjid in Hindi बाबरी मस्जिद का इतिहास और निबंध

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Babri Masjid in Hindi

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बाबरी मस्जिद का विध्वंस

भारत के इतिहास में सन् 1992 का वर्ष अत्यंत घृणास्पद वर्ष माना जाएगा। इसी वर्ष, कतिपय साम्प्रदायिक विद्वेष से ग्रस्त, संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त जन समूह ने एक अत्यंत ऐतिहासिक रूप से संरक्षित एक मस्जिद का विध्वंस कर डाला था। यह घटना भारतीय राजनीति और समाज की कोई साधारण घटना नहीं थी अपितु इसे एक ऐसी घटना कहा जा सकता है जिसने भारतीय राजनीति के स्वरूप को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया। जिस संकीर्ण और रोगग्रस्त मनोवृत्ति का परिणाम बाबरी मस्जिद के विध्वंस की दारुण घटना थी, उसी मनोवृति को पालने और पोसने का कार्य हमारे देश की ही ऐसी राजनीति कर रही थी, जिसे प्रायः हिन्दुत्ववादी-राजनीति कहा जाता है। और जो हिन्दू-समाज के अत्यंत प्राचीन समय, संस्कृति और सभ्यता की आर्य शुद्धता की राजनीति करती है। इस प्रकार की राजनीति की कतिपय प्रधान-प्रवृत्तियां जनसंघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आदि के रूप में आज भी देखी जा सकती हैं। इन सभी धार्मिक-साम्प्रदायिक संगठनों का केन्द्रीय और मुख्यधारा की राजनीति में जो राजनैतिक दल प्रधान रूप से प्रतिनिधित्व करता आया है, वह भारतीय जनता पार्टी है। किन्तु इस तथ्य को किसी भी प्रकार से उपेक्षित नहीं किया जा सकता है कि हमारे ही समाज और इतिहास में अनेक ऐसी अन्य प्रवृत्तियां रही हैं, जिन्होंने हिन्दू समाज को इस प्रकार का रूख अख्तियार करने को बाध्य किया। अनेक ऐसे मुस्लिम संगठन और राजनैतिक दल रहे हैं जिन्होंने भारत के राजनैतिक जीवन को धार्मिक रूप-स्वरूप देने का प्रयास आरम्भ से ही किया।

बाबरी मस्जिद के प्रकरण को बहुआयामी प्रकरण कहा जा सकता है। यह भारतीय समाज में व्याप्त अति-दीर्घ साम्प्रदायिक-वैमनस्य और तनाव को उजागर करने वाला एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण प्रकरण रहा है। बाबरी मस्जिद के प्रकरण की समग्र वास्तविकता को आत्मसात करने के लिए हमें भारतवर्ष के मध्यकालीन इतिहास में जाना होगा और विशेष रूप से मुस्लिम काल में। करीब 10 वीं शताब्दी के आस-पास भारतवर्ष की पवित्र भूमि पर विदेशी आक्रान्ताओं के प्रचण्ड आक्रमण होने लगे थे। इन आक्रान्ताओं में प्रधानत: मुस्लिम आक्रमणकारी शासक थे, जो भारत की पवित्र भूमि को अपने आक्रमणों से निरन्तर पददलित और अपमानित कर रहे थे। हमारे इतिहास में इसी प्रकार की अनेकानेक बातों का पर्याप्त उल्लेख किया गया है। हिन्दी के एक लब्ध प्रतिष्ठि इतिहासकार का निम्नोक्त कथन इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यथाः “देश में मुसलमानों का राज्य स्थापित हो जाने पर हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, गर्व और उत्साह के लिए वह अवकाश न रह गया। उसके सामने ही उसके देवमंदिर गिराए जाते थे, देवमूर्तियां तोड़ी जाती थीं और पूज्य पुरूषों का अपमान होता था। परन्तु वे कुछ नहीं कर सकते थे। ऐसी दशा में अपनी वीरता के गीत न तो वे गा सकते थे और न बिना लज्जित हुए सुन सकते थे। इतने भारी राजनीतिक उलटफेर के पीछे हिन्दू जनसमुदाय पर बहुत दिनों तक उदासी सी छाई रही। अपने पौरुष से हताश जाति के लिए इसके अतिरिक्त और दूसरा मार्ग ही क्या था।”

वस्तुत: हिन्दू संस्कृति और सभ्यता की प्रतीकवादी राजनीति करनेवाली समकालीन राजनीति मध्यकाल में अपने समाज और अपनी संस्कृति पर किए गये अनावश्यक अत्याचारों का आज प्रतिशोध लेती हुई प्रतीत होती है।

किन्तु ऐसा नहीं था कि भारतीय समाज निरन्तर धार्मिक-वैमनस्य की आग में जलता ही रहा है। वस्तुत: वास्तविकता यह भी है कि इस आग को उकसाने में अंग्रेजों की कुटिल-बुद्धि का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने भारतीय समाज की इस आग को भड़काने का सदैव प्रयास किया। अंग्रेज कभी नहीं चाहते थे कि भारतीय समाज में हिन्दू और मुस्लिम मिलकर रहें, क्योंकि यह उनके अपने शासन के स्थायित्व के लिए खतरनाक था।

वस्तुतः आजादी के बाद से बाबरी मस्जिद को लेकर हिन्दूवादी संगठनों में व्यापक आक्रोश व्याप्त रहा है। उनका स्पष्ट मानना था कि इस मस्जिद का निर्माण बाबर ने राममन्दिर को तोड़कर करवाया था और इसलिए यह हिन्दू समाज का व्यापक रूप से किया गया अपमान था। उनका स्पष्ट मानना था कि वे इस अपमान का बदला उस बाबरी मस्जिद को तोड़कर वहाँ पुनः राममन्दिर बनाकर लेंगें।

इस संदर्भ में लम्बे समय तक छिटपुट घटनाएं घटती रही हैं। किन्तु 6 दिसबर 1992 को राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार के कार्यकाल में जिसमें भारतीय जनता पाये का भी सहयोग था, एक व्यापक कार सेवा के रूप में एकत्रित हुए जनसमूह ने एक ऐतिहासिक मस्जिद का पूर्ण ध्वंश कर दिया। हम इसे भारतीय इतिहास की एक दारुण कथा कहकर ही संतोष कर सकते है।

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