What is Sensex in Hindi (Sensex Kya Hai) सेंसेक्स क्या है

Sensex kya hai? In easy language we can say sensex is the stock exchange where shares are traded. Actually “Sensex Kya Hai” is ka answer aap ko ye article padh k mil jayega.

SENSEX stands for Stock Exchange Sensitive Index.

सेंसेक्स फुल फॉर्म – “स्टॉक एक्सचेंज सेंसिटिव इंडेक्स”

hindiinhindi Sensex Kya Ha

Sensex Kya Hai

सेंसेक्स पर निबंध

मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) ने दस हजार अंको के पार जाकर नया इतिहास रचा है। शेयर बाजार के खिलाड़ी निवेशकों के लिए यह जश्न की घड़ी है। देश की अर्थव्यवस्था की मजवृत स्थिति, कंपनियों की बेहतर लाभप्रदता और भविष्य के बारे में अच्छी उम्मीदों के चलते यह सुनहरा मौका नसीब हुआ है।

सेंसेक्स के जादुई स्तर पर पंहुचने की वजह से शेयर बाजार का पूरा माहौल ही बदल गया है। इस संदर्भ में लोगों की दो तरह की विचारधाराएं हैं। लोगों का एक वर्ग सेंसेक्स में आए उफान को न्यायोचित ठहरा रहा है। इस वर्ग का कहना है कि बाजार का फंडामेंटल इतना मजबूत है कि सेंसेक्स का इन बुलंदियों पर पहुंचना आश्चर्यजनक नहीं है। जबकि दूसरा वर्ग यह मानता है कि सेंसेक्स में आया उछाल कुछ ज्यादा है और इससे शेयर बाजार की सही तस्वीर नहीं झलकती है। दोनों तरह के विचार रखने वालों का अपना-अपना तर्क है। लेकिन सच्चाई यह है कि बाजार तेजड़ियों की गिरफ्त में है और सेंसेक्स नित नई बुलंदी को छू रहा है।

सेंसेक्स में आए उछाल की गहराई में जाने पर यह पता चलता है कि मुख्य अर्थव्यवस्था में दर्ज मजबूती के साथ-साथ भारत के प्रति दुनिया भर के निवेशकों का बदलता नजरिया भी हैं। ऐसा नहीं है कि देश में विदेशी निवेश आज ही या इसी समय हो रहा है। इससे पूर्व भी देश में विदेशी निवेश अच्छा-खासा हो रहा था। यह अलग बात है कि बीते वर्ष में रिकॉर्ड निवेश हुआ है । लेकिन इसमें हुई वृद्धि पूर्व वर्ष के मुकाबले कोई खास ज्यादा नहीं है। सेंसेक्स में बीते चार साल से लगातार वृद्धि हो रही है और तीन साल के दौरान इसमें खासा इजाफा हुआ है। सेंसेक्स में तेजी का बीज तो काफी समय पूर्व बोया गया था और इसका फल अब सामने आया हैं। देश की अर्थव्यवस्था में पिछले कुछ सालों से बदलाव आ रहा है। पिछले कुछ समय से सिंगापुर, मॉरीशस, अमेरिका, जापान, यूरोप, कोरिया, हालैंड इत्यादि देशों के निवेशक भारतीय शेयर बाजार को निवेश के एक बेहतर विकल्प के रूप में देख रहे हैं। ऊंची आर्थिक विकास दर और मजबूत आर्थिक कारकों के साथ-साथ विदेश मद्रा का विशाल भंडार औद्योगिक और निर्माण क्षेत्र की अच्छी विकास दर, सेवा क्षेत्र में उछाल और ढाँचागत क्षेत्र में विकास के साथ-साथ बेहतर वित्तीय प्रबंधन भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति निवेशकों में जबरदस्त विश्वास का संचार हुआ है।

दूसरी तरफ अन्य उभरते हुए बाजारों में सीमित निवेश अवसर होने की वजह से भारत को खासा लाभ मिल रहा है। निस्संदेह मौजूदा मूल्यांकनों के आधार पर शेयरों के मूल्य अपने वास्तविक स्तर से कछ ज्यादा जरूर नजर आ रहे हैं, लेकिन भविष्य में और बेहतर संभावनाएं दिख रही हैं। लिहाजा यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वह भारतीय अर्थव्यवस्था की वहद तस्वीर है जिससे यह संकेत मिलता है कि आने वाले दिन भी संभावना वाले रहेंगे, जिससे शेयर बाजार में जारी उछाल को न्यायोचित ठहराया जा सकता है। अर्थव्यवस्था में तेजी का दूसरा पहलू यह है कि कंपनियों की आय में लगातार वृद्धि हो रही हैं, जिससे भारतीय कंपनियों के शेयर काफी आकर्षक हो गए हैं। इतना ही नहीं, भविष्य में कंपनियों के व्यवसाय में भारी बढ़ोत्तरी होने का अनुमान लगाया जा रहा है। दूसरी तरफ विदेशी कंपनियां भारत से बड़े पैमाने पर आउटसोर्सिंग कर रहीं हैं, जिससे घरेलू कंपनियों के लिए विकास की व्यापक संभावनाएं हैं। उदाहरणस्वरूप देश के ऑटो एंसिलियरी उद्योग के आकर और टर्नओवर में कई गुना बढोत्तरी हुई है। इसी तरह इन कपनियों के शेयरों में भी भारी वृद्धि हुई है। लिहाजा इन कंपनियों के शेयरों के दाम में हुए इजाफे को तर्कसंगत कहा जा सकता है। सच तो यह है कि इन कंपनियों में व्यवसाय की अपार संभावनाएं छिपी हुई हैं। बहुराष्ट्रीय ऑटो कंपनियों द्वारा इनसे बड़ी मात्रा में आउटसोर्सिंग की जा रही है। शेयरों के मूल्य का आकलन करने वाले सामान्य नियमों के आधार पर देखें तो कहा जा सकता है कि भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों के शेयरों की कीमत वास्तविक स्तर से काफी अधिक हैं। हालांकि यह वर्ष 2000 के दौरान नास्डैक में आईटी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट के बाद कही जा रही थी। उस समय आईटी कंपनियों के शेयरों की कीमत उनकी मौजूदा वास्तविक कीमत से काफी अधिक हो गई थी। दरअसल शेयरों का मूल्यांकन करते समय उनकी छिपी हुई क्षमता को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे लोगों को यह लगता है कि शेयर की कीमत अपने वास्तविक स्तर से काफी ज्यादा है। यहां यह समझना जरूरी है कि शेयरों के दाम का मूल्यांकन काफी व्यापक स्तर पर होता है और व्यवसाय में परिवर्तन के साथ-साथ इसमें बदलाव होता रहता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि कई भारतीय कंपनियों के शेयरों की कीमतें भले ही इस समय कुछ ऊंची नजर आ रही हैं, लेकिन उनमें पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं।

निम्न ब्याजदर, नियंत्रित मुद्रा स्फीति की दर और विदेशी निवेश का निरंतर प्रवाह का भी सेंसेक्स की मौजूदा तेजी में खासा योगदान है। हालांकि कच्चे तेल की ऊंची कीमतें, विदेशी मुद्रा विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव आदि कुछ ऐसे कारक हैं, जो सेंसेक्स में जारी तेजी को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन दूसरी तरफ काफी लंबे समय से कच्चे तेल की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं, जबकि अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपए में सीमित उतार-चढ़ाव हो रहा है, जिससे इनके द्वारा सेंसेक्स के फिलहाल प्रभावित होने की कोई आशंका नहीं है। इसके साथ ही भारतीय लोगों की क्रय शक्ति लगातार बढ़ रही है, जिससे उपभोक्ता उत्पादों की मांग और खपत भी निरंतर बढ़ती जा रही है। मौजूदा अनुमान के आधार पर कहा जा सकता है कि आने वाले कुछ वर्षों के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी का रुख रहेगा, जिससे सेंसेक्स न सिर्फ दस हजार अंक, बल्कि इससे ऊपर जाएगा।

निवेशकों को यह मानकर चलना चाहिए कि शेयर बाजार में तकनीकी संशोधन अपरिहार्य है। जब कभी बाजार ने तेजी की छलांग भरी है, तो उसमें तकनीकी सुधार देर-सबेर अवश्य आता है। इसे बाजार की तंदुरूस्ती के लिए जरूरी माना गया है, लेकिन इस दौरान अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालने वाला अप्रत्याशित घटना क्रम हो जाए, तो शेयर बाजार अप्रभावित नहीं रह सकता। हर्षद मेहता और केतन पारिख जैसे तेजड़ियों के जमाने में बाजार ने नई बुलंदियां छुई थी, तो अचानक उजागर हुए घोटालों ने सेंसेक्स को जमीन पर पटक दिया था। यद्यपि वर्तमान में ऐसे घोटालों की संभावना नहीं है, पर उम्मीदों और हकीकतों की विभाजक रेखा के बारे में चौकस रहना जरूरी है।

भारतीय बाजार की निर्भरता विदेशी निवेशकों पर अधिक है और यदि किसी समय वे अपना निवेश खाली कर दें, तो मंदी के झटके लग सकते हैं। उनके देश में ब्याज दरों में वृद्धि या अन्य कुछ कारणों से यह संभावना नकारी नहीं जा सकती। दूसरी बात, उसके प्रावधानों से न केवल सरकार की भावी आर्थिक नीतियों की दिशा अधिक स्पष्ट होगी, बल्कि उद्योग जगत पर पड़ने वाले प्रभाव का भी पता चलेगा। तीसरी, आर्थिक नीतियों पर सरकार व वामपंथी दलों में मतभेद जारी हैं और यदि ये मतभेद मुठभेड़ में बदलते हैं, तो राजनीतिक स्थायित्व खतरे में पड़ सकता है। अतएव, शेयर बाजार की भावी चाल इन मामलों पर काफी निर्भर करेगी।

Essay on Money in Hindi

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