Sumitranandan Pant in Hindi Biography सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

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Sumitranandan Pant in Hindi

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

सुमित्रा नन्दन पंत का जन्म सन् 1900 में अल्मोड़ा जिला के कौसानी ग्राम में हुआ था। यह क्षेत्र अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा हुआ है। इस क्षेत्र का ही यह प्रभाव है की पंत का समस्त काव्य भी प्राकृतिक संवेदना से भर गया। प्रकृति और उसका सौन्दर्य ही पंत की कविता की प्रकृति और उसका सौन्दर्य बन गये। अपनी पुस्तक ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में डा. नगेन्द्र ने पंत के संदर्भ में लिखा है: “जन्म के कुछ घण्टे बाद ही मातास्नेह से वंचित हो जाने के कारण अल्मोड़ा की प्राकृतिक सुषमा ने इन्हें बचपन से ही अपनी ओर आकृष्ट किया और प्रकृति के उस मनोरम वातावरण का इनके व्यक्तित्व पर गम्भीर प्रभाव पड़ा। पन्त में यथार्थ के विषय और दारुण रूप के अभाव के कारण भी कुछ सीमा तक प्रकृति के उस प्रभाव को माना जा सकता है। इनके मन में प्रकृति के प्रति इतना जोर पैदा हो गया था कि ये जीवन की नैसर्गिक व्यापकता और अनेकरूपता से पूर्ण रूप से आसक्त न हो सके।”

छाड़ दुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी काया,
बाले तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दें लोचन।
छोड़ अभी से इस जग को।

सुमित्रानन्दन पंत की कतिपय महत्वपूर्ण काव्य कृतियाँ इस प्रकार हैं:”उच्छ्वास, ग्रन्थि, वीणा, पल्लव गुंजन आदि इसी के साथ युगान्त युगवाणी, रश्मिशिखर आदि भी उनके भिन्न विचारों और दार्शनिक रुझानों को अभिव्यक्त करने वाली रचनाएँ हैं। इस दृष्टि से देखने पर, पंत छायावाद के एक अन्य कवि निराला के सदृश्य दिखाई पड़ते हैं।” डॉ. नगेन्द्र ने पंत की कलात्मक सजगता और सचेष्टा का उल्लेख करते हुए एक स्थान पर लिखा है: “पल्लव की भूमिका में पंत ने भाषा, अलंकार, छन्द, शब्द और भाव पर विचार व्यक्त किये हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि कवि भाषा के प्रयोग के संबंध में कितना जागरूक हैं। पंत की शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं- “लाक्षणिक वैचित्य, विशेषण-विपर्जय, विरोध चमत्कार, मानवीकरण, प्रतीक-विधान, अन्योक्ति विधान आदि।”

पंत को भाव, प्रकृति और मानव सौंदर्य आदि का स्पष्ट रचनाकार ही माना गया है। कहीं-कहीं उनमें दार्शनिकता और रहस्यवाद का भी का पुट देखने को मिलता है। किन्तु पंत की गहन युगधर्मिता का जो युगबोध इन कविताओं से प्राप्त होता है, वह कतिपय कुछ ऐसी कविताओं के भी माध्यम से प्राप्त होता है जो उन्होंने इनसे भिन्न शिक्षा, संस्कृति और समाज-व्यवस्था आदि को आधार बना कर लिखी हैं। शिक्षा-पद्धति के प्रति पंत छायावाद के एकमात्र बड़े कवि हैं। उन्होंने ब्रिटिश शासन द्वारा लागू की गई शिक्षा-व्यवस्था की विसंगतियो का जो वर्णन किया है वह आज हमें तत्कालीन विमर्श को उजागर करने वाला दीख पड़ता है। यथाः

शिक्षा ने पथभ्रष्ट कर दिया नवयुवकों को,
कुण्ठा का दिग अन्धकार ही उनके सम्मुख
क्या मनुष्य है उनका थोथी शिक्षा के वे
बलि पशु बनकर, मनुष्यत्व भी आज खो रहे

अर्थात् पंत तत्कालीन भारतीय समाज में जिस शिक्षा प्रणाली को गतिशील देख रहे थे उसका विश्लेषणात्मक वर्णन अपनी रचना में कर रहे थे। इतना व्यापक और स्पष्ट वर्णन अन्य किसी छायावादी कवि ने नहीं किया है। इस संदर्भ में पंत का एक अन्य चित्रण भी दृष्टव्य है जैसेः

शिक्षा क्या, हम
मात्र सूचनाएँ भर देते
विविध विषय की नवयुवकों को
रचनात्मकता छू भी उन्हें नहीं पाती।

अभिप्राय यह है कि पंत जी छायावाद के एक मात्र ऐसे कवि और रचनाकार हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं को निरन्तर युग सापेक्ष बनाए रखा हैं। शिक्षा पर अपने विचार कविता के रूप में प्रकट करना, किसी वृहद परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण वाले कवि का शगल हो सकता है।

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