Visit To Zoo in Hindi – Short Essay and Paragraph

Visit to Zoo in Hindi language 200, 500 and 1000 words along with paragraph and essay on Visiting a Zoo in Hindi. Students today we are going to discuss very important topic i.e visit to zoo in Hindi. Visit to zoo in Hindi is asked in many exams. The long visit to zoo in Hindi is defined in more than 600 words. Learn visit to zoo in Hindi and send it to your friends. चिड़ियाघर की सैर पर अनुच्छेद और निबंध।

hindiinhindi Visit To Zoo in Hindi

Visit To Zoo in Hindi 200 Words

चिडिया घर की यात्रा एक दिलजस्प अनुभव है। शनिवार को मैं अपने माता पिता के साथ चिडिया घर गया। वहाँ हम अपनी कार से गये। दिल्ली का चिडिया घर पुराने किले के पास है। मेरे पिताजी टिकट ले आये और हम सभी गेट के अन्दर दाखिल हुये। सड़क के दोनो तरफ तालाब था। बहुत से लोग वहाँ पहले से ही जानवर व पक्षी देख रहे थे। बतखे तालाब में तैर रही थी।

हमने वहॉ पर शेर, हाथी, हिरन और जेबरा आदि देखें। हमने वहाँ पर कई तरह के बन्दर, भालू और लोमडी देखी। तब हम चिडियों के पिंजरे की तरफ गये। वहाँ पर कई तरह के पक्षी जैसे कि मोर, तोता और कोयल थी। मैने वहाँ पर एक सफेद मोर देखा जो कि सबसे अलग और सुन्दर था। तब हम वहाँ से शेर और चीते के पिंजरे की तरह मुडे। वहाँ पर हमने सांप और कोबरा भी देखा। वहाँ पर जिराफ और जेबरा के लिए अलग जगह थी।

चिडिया घर में काफी धूमने के बाद हम सभी पेड़ के नीचे बैठ गये। हम अपना साथ लाया खाना का आनंद लिया। हमने चिडिया घर में 4 घंटे बिताये। हमने चिडिया घर में आनंद उठाया यह एक महान अनुभव मेरे लिए था।

Visit To Zoo in Hindi 500 Words

चिड़ियाघर की सैर हमेशा बहुत दिलचस्प होती है। चिड़ियाघर एक ऐसा स्थान है जहाँ बच्चे विशेष रूप से जाना पसंद करते हैं। मैं पशु प्रेमी हूँ। मैं विभिन्न प्रकार के जानवरों को देखना चाहता हूँ क्यूंकि यह हमारे ज्ञान को बढ़ाता है।

पिछले रविवार मैं अपने दोस्तों के साथ दिल्ली चिड़ियाघर का सैर किया था। यह दिल्ली का सबसे बड़ा चिड़ियाघर है। चिड़ियाघर का नाम नेशनल जूलॉजिकल पार्क है। इस चिड़ियाघर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग जंगली जीव – जन्तुओं को देखने आते हैं। यहाँ पर सबसे पहले हमने तालाब में बतख और हंस को देखा। | बतख और हंस तालाबों में तैर रहे थे जो दिखने में काफी अच्छे लग रहे थे। कुछ पंछियाँ चह-चहा और सिटी बजा रही थी। हमनें मगरमच्छ, कंगारू, हिरण और हाथी आदि को भी देखा। विभिन्न पिंजरों में बंदर थे। बंदर पेड़ की शाखाओं में यहाँ – वहाँ कूद रहे थे। यहाँ पर कई प्रजाति के बंदरों को हमने देखा।

यहाँ पर सबसे मनोरंजक चंचल चिम्पांजी थे जो कभी – कभी अजीब हरकतें करते थे, जिसे देख हम सभी दोस्त बहुत जोर से हँसते थे। चिम्पाजीओं के साथ कुछ समय बिताने बाद हम पक्षियों के पिंजरों में आए, वहाँ कबूतर, तोता, मोर, चील इत्यादि जैसे विभिन्न प्रकार के पक्षी थे। हमने सफेद मोरे भी देखा जो बहुत ही अदवितीय और सुंदर था। कुछ समय पंछियों के साथ बिताने के बाद हम सांप को देखने गये, वहाँ अलग – अलग प्रजाति के सांप को अलग-अलग पिंजरों में रखा गया था। कई अन्य पिंजरों में शेर, बाघ, ज़ेबरा, लोमड़ी, भेड़िया और भालू रखा गया था। वहाँ पर एक शेर सो रहा था और शेरनी अपने | शावकों के साथ खेल रही थी। शेरनी के बच्चे बहुत प्यारे थे, शेरनी के बच्चे खुले मैदान में इधर उधर कूद रहे थे और उसकी माँ बच्चों को अपने जबड़े में पकड़कर अपने पास ले आतीं थी।

हमनें चिड़ियाघर में लगभग चार घंटे बिताए। हमने इस चिड़ियाघर में बहुत सारी यादगार तस्वीर ली और हम सभी दोस्तों ने वहाँ बहुत मज़ा किया। यँह मेरे जीवन की वास्तव में सबसे अच्छी यात्रा थी। फिर हमें सभी दोस्त रात में अपने – अपने घर वापस आ गये। हम सभी दोस्त इस चिड़ियाघर में बिताए गए अच्छे पल को कभी भूल नहीं पाएंगे।

Visit To Zoo in Hindi 1000 Words

रूपरेखा – चिड़ियाघर देखने की योजना, दिल्ली के चिड़ियाघर में प्रवेश, पशु-पक्षियों का वर्णन, पशु-पक्षी क्षेत्र का आकर्षण, हिंसक जंतुओं का वर्णन, शेर के पिंजड़े का विशिष्ट आकर्षण, उपसंहार।

परीक्षा की समाप्ति के साथ ही मेरी व्यस्तता के दिन बीत गए। मैं पुस्तकालय जाकर कुछ पुस्तके लाने की बात सोच ही रहा था कि मामाजी ने पूछा, “तुमने चिड़ियाघर देखा है?” मैंने ”नहीं” कहने के लिए सिर हिलाया ही था कि मामाजी बोले, “तो ठीक है। मैंने भी यहाँ का चिड़ियाघर नहीं देखा है। चलो, चलकर देख आते हैं।”

जल्दी से तैयार होकर मैं मामाजी के साथ बाहर निकला। बस मिलने में देर नहीं लगी। शीघ्र ही हम चिड़ियाघर पहुँच गए और टिकट लेकर अंदर घुसे। फाटक के एक ओर पुराना किला था जिसका प्रतिबिंब पास के स्थिर जल में पड़ रहा था। जल के समीप नरकुल की झाड़ियों में जलमुर्गियाँ छिपी हुई थीं।

आगे बढ़ने पर पक्षियों के बड़े-बड़े पिंजड़ेनुमा वासस्थान मिले। उनके भीतर भाँति-भाँति के पक्षी किल्लोल कर रहे थे। कई पक्षियों को मैं पहचानता था; जैसे – तीतर, मैना, चैती, दुबकी आदि। जिनको मैं नहीं पहचानता था, उनके नाम बाहर की नाम पट्टिका में पढ़ लेता था। नाम पट्टिका में पक्षी का जीवविज्ञानी नाम हिंदी और अंग्रेज़ी में लिखा था। नाम के दो हिस्से थे – एक पक्षीकुल का नाम और दूसरा उस कुल की उपजाति का नाम। पक्षी का लोकप्रचलित नाम भी अंत में दिया हुआ था। पक्षी की आदतें भी दी हुई थीं।

आगे हंस-कुल के पक्षियों के लिए खुला बाड़ा बना था। ये पक्षी जल में रहते हैं, इसलिए बाडे में तालाब भी बना था। इनको आज़ादी से विचरने देने के लिए यह बाड़ा ऊपर से खुला हुआ था। बीच-बीच में पेड़ लगे थे। पानी में सफ़ेद रंग की बतखें तैर रही थीं। हंस भी तैर रहे थे। तैरते हुए हंस बड़े सुंदर लग रहे थे। उनकी लचीली घुमावदार गरदन बड़ी प्यारी लग रही थी। आगे अनेक पक्षियों के घर बने थे, किंतु उन्हें छोड़कर मैं उस ओर मुड़ गया जिधर हिरनों के बाड़े थे। मैंने हिरन की आँखें बड़े ध्यान से देखीं। कितनी प्यारी आँखें थीं। आज मृगनयनी शब्द का अर्थ ठीक-ठीक समझ में आ गया।

हिरन के बाद नीलगायों का बाड़ा था। यह नाम विचित्र है क्योंकि नाम के साथ तो गाय लगा है और पशु हिरन जाति का है। मुझे याद आया कि यह पशु खेतों की फ़सलों को बहुत नुकसान पहुँचाता है। मैं नीलगाय को देख ही रहा था कि मामाजी पुकार उठे – “कंगारू ! गोपाल देख!”

कंगारू को पहचानने में मुझे कोई कठिनाई नहीं हुई। कंगारू का चित्र मैंने अनेक बार देखा था। यदि मामाजी न भी बताते तो भी मैं कंगारू को पहचान लेता। तभी कंगारू ने अजीब तरह से उचक कर छलांग लगाई। कंगारू के पेट में विचित्र-सी थैली बनी थी जिसमें उसका बच्चा बैठा हुआ था, जो चकित दृष्टि से इस अनजाने संसार को देख रहा था।

निकट में ही सफ़ेद भालू दिखाई पड़ा। उसके विचरने के लिए काफ़ी बड़ा भूभाग छोड़ा गया था जिसे देखकर जंगल का भ्रम होता था। भालू को गरमी लग रही थी, इसीलिए वह स्थिर नहीं बैठ पा रहा था। यह भालू मदारी द्वारा खेल में दिखाए जाने वाले भालू से बड़ा था और इसका रंग भी काला नहीं था।

तभी बड़े ज़ोर की दहाड़ सुनाई पड़ी। सभी लोगों के कान खड़े हो गए। हम समझ गए कि कहीं पास में ही शेर दहाड़ रहा है। लोग पास वाले बाड़े की ओर मुड़े। वहाँ सींखचे दोहरे और ऊँचे थे। अंदर देखने पर दूर-दूर तक शेर के दर्शन नहीं हुए। तभी एक दहाड़ फिर सुनाई पड़ी। इस बार ध्वनि के स्रोत को ढूंढने में कठिनाई नहीं हुई। पीछे बने कृत्रिम वन के नीचे कृत्रिम जलाशय बना था। वहीं शेर बेचैनी से टहल रहा था।

तभी शेर के लिए बने पिंजड़े के ऊपर चिड़ियाघर का एक कर्मचारी दिखाई पड़ा। वह शेर के लिए भोजन लेकर आया था। तब पता लगा कि शेर की बेचैनी भूख के कारण थी। शेर के भोजन में थे – मांस के बड़े-बड़े लोथड़े। कर्मचारी ने पिंजड़े का एक फाटक खोलकर मांस के टुकड़े पिंजड़े में रख दिए। फिर वह फाटक बंद कर बाहर आ गया। इसके बाद उसने पिंजड़े पर चढ़कर अंदर वाला फाटक ऊपर से ही ऊपर की ओर खींच लिया जिससे बंद पिंजड़ा कृत्रिम वन से जुड़ गया। देखते-ही-देखते भूखा शेर मांस की गंध पाकर इधर दौड़ आया और मांस पर टूट पड़ा।

मामाजी ने घड़ी देखी। दोपहर हो चली थी। हम लोगों ने तीन बजे तक घर लौटने का कार्यक्रम बनाया था। निर्धारित कार्यक्रम ठीक-ठीक चल सके, इसलिए हम लोग जल्दी-जल्दी बाकी पशुओं को देखने लगे। सिंह, चीता, तेंदुआ, हाथी, ज़ेबरा, जिराफ़ आदि देखते-देखते दो बज गए। मामाजी ने कहा, “अब बस ! जल्दी से बाहर निकलो, नहीं तो तीन बजे तक घर नहीं पहुँच पाएँगे।” हम दोनों चिड़ियाघर के रोचक अनुभवों को मन-ही-मन याद करते हुए घर की ओर चल दिए।

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