Adult Education Hindi Essay प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध

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Adult Education Hindi Essay 300 Words

प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध

पूरे विश्व भर में निरक्षरता लगभग हर देश की बढ़ती हुई समस्याओं का मूल कारण है। विकासशील देश भी निरक्षरता से बहुत प्रभावित हो रहे है। इसीसलिए हमारे देश ने न सिर्फ शिक्षा को हर बच्चे का मौलिक अधिकार बनाया बल्कि मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया और इसके बाद प्रौढ़ शिक्षा के प्रावधान को भी लागू किया। देश की तरक्की के लिए अभी से उठाये सही कदम बहुत जरूरी थे।

अगर बचपन में किसी भी कारन वर्श अगर कोई भी बच्चा अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी न कर पाया हो तो वह प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम के तहत अपनी शिक्षा पूरी कर सकता है। इस योजना से बच्चे ही नहीं बल्कि कोई भी व्यक्ति अपनी मूलभूत शिक्षा या व्यावसायिक प्रशिक्षण अपनी इच्छा अनुसार पूरी कर सकता है। अगर कोई व्यक्ति दिन में किसी भी कारणवश प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में नहीं जा सकता तो उनके लिए रात्रि कक्षा का भी प्रबंध किया गया है। इस तरह कोई भी अपना कार्य या व्यवसाय दिन में ख़त्म करके रात्रि को इस योजना का लाभ उठा सकता है।

1956 में इस योजना की पहली बार प्रस्तावना रखी गयी, जिसका अब तक बहुत लोग फायदा उठा चुके है। जरूरतमंद और अनपढ़ व्यक्तियों के लिए प्रौढ़ शिक्षा योजना ने नए द्वार खोल दिए है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद जरूरतमंद और अनपढ़ व्यक्तियों को नौकरी मिली जिससे वह अपने परिवार की सुख सुविधाओं का बेहतर ख्याल रख सकता है। इन वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों की पहुंच लोगो तक पहुँचाने के लिए टेलीविजन, रेडियो, वीडियो सिस्टम, फिल्म आदि के द्वारा सभी को जागरूक किया जा सकता है।

सरकार तथा अन्य समाजसेवी संस्थाओं को इनकी उच्च लागतों से हतोत्साहित नहीं करना चाहिए क्योकि कल को होने वाले दीर्घकालिक लाभ इन उच्च लागतों के बोझ से ज्यादा होंगे। शिक्षा सभी को बेहतर इंसान बनती है और अच्छाई तथा बुराई से भी अवगत कराती है। शिक्षा की शक्ति से कोई भी समाज में नया बदलाव ला सकता है।इसके साथ-साथ शिक्षित व्यक्ति अपने देश को विकसित करने में बेहतर सहयोग दे सकता है।

Adult Education Hindi Essay 800 Words

प्रौढ़ का तात्पर्य है वह स्त्री या पुरूष जो 30 वर्ष से अधिक आयु का है। अतः 30 से 50 वर्ष की आयु के लोग प्रौढ़ वर्ग में आते हैं। ऐसे निरक्षर और अनपढ़ लोगों को शिक्षित करना, प्रौढ़ शिक्षा कहलाती है। इसे हम सर्व साक्षरता भी कह सकते हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के 59 वर्षों में देश ने सभी क्षेत्रों में उन्नति और विकास किया है। शिक्षा भी इसका अपवाद नहीं है। शिक्षा का प्रचार-प्रसार तीव्र गति से हुआ है। साक्षरता बढ़ी है और निरक्षरता काफी हद तक दूर हुई है।

अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष है। विकसित देशों में शिक्षित लोगों का प्रतिशत 90-100 प्रतिशत होता है। वहाँ कोई अनपढ़ या निरक्षर नहीं होता। परन्तु भारत में यह प्रतिशत अभी बहुत नीचा है। भारत एक विकासशील देश है। इसे विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आना है। यह तभी संभव है जब यहां का हर नागरिक, स्त्री-पुरूष शिक्षित हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रौढ़शिक्षा, सर्वशिक्षा और साक्षरता अभियान का चलाया जाना अति आवश्यक है।

निरक्षरता का अर्थ है अज्ञान और अंधकार। अनपढ़ लोगों को अच्छे-बुरे का, उचित-अनुचित का और अधिकार व कर्तव्यों का उचित ज्ञान नहीं होता। वे अंधविश्वासी, निठल्ले और बोझ स्वरूप होते हैं। वे अपने परिवार, समाज और देश के विकास में अपनी भूमिका ठीक प्रकार से नहीं निभा पाते, अच्छे नागरिक नहीं बन पाते । विवेक और शिक्षा के अभाव में वे अंधविश्वासों और कुरीतियों में फंसे रहते हैं और शोषण का शिकार हो जाते हैं। भारत एक कल्याणकारी और स्वतन्त्र देश हैं। यहां जनता का जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है। जनता ही सर्वोपरि है। वही अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाती है तथा उनका निर्वाचन करती है। किसी भी लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि वहां के सभी मतदाता और नागरिक पढ़े लिखें हों और अपने मताधिकार का महत्त्व समझते हों।

हमारे देश में प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों का अनुपात बहुत अधिक है। उनकी आयु इतनी है कि वे अब विद्यालय में जाकर शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते। दिन में वे किसी काम-काज और नौकरी में व्यस्त रहते हैं। उनके पास आर्थिक साधनों और सुविधाओं का भी अभाव रहता है। ऐसे लोगों के लिए शिक्षा और विद्यालयों को उनके घर द्वार तक ले जाने की आवश्यकता है। उनके लिए रात्रि-पाठशालाओं और चलते-फिरते विद्यालयों की आवश्यकता है। उनके घर तथा कामकाज के स्थानों के निकट ही पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था होनी चाहिए। इन्हीं सब उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हमारी सरकार ने साक्षरता अभियान तथा प्रौढ़ शिक्षा शुरू की है।

प्रौढ़ लोग संकोचवश भी पढ़ने से कतराते हैं। बच्चों के सामने वे पढ़ना नहीं चाहते। इस आयु में आकर उन्हें अपने अशिक्षित होने के बोझ से मनसिक ठेस पहुंचती है। प्रौढ़शिक्षा केन्द्रों पर आने से वे हिचकिचाते हैं फिर दिन भर मेहनत मजदूरी करने के कारण थके होते हैं। काम के लिए कई बार पैदल और बहुत दूर उन्हें जाना पड़ता है। अत: इस बात की बहुत आवश्यकता है कि उन्हें समझा-बुझा कर प्रौढ़-शिक्षा केन्द्रों तक लाया जाये। पढ़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहन दिया जाए। विद्यार्थी और समाज सेवी संस्थाएं प्रौढ़ शिक्षा में बहुत योगदान कर सकते हैं। साक्षरता अभियान के अधीन बहुत बड़ी धनराशि हमारी सरकार खर्च कर रही है। परंतु वांछित परिणाम नहीं आ रहे हैं।

सर्वशिक्षा और साक्षरता अभियान में संस्थाएं केवल अपने बलबूते पर पूरी तरह सफल नहीं हो सकतीं। उन्हें समाज और जनता का सहयोग तथा सहायता मिलनी चाहिए। प्रौढ़ स्त्री पुरुषों को घर-घर जाकर साक्षर करने के लिए एक प्रतिबद्ध, जागरूक और समाज सेवी सेना की जरूरत है। ऐसी कर्मठ और समाज सेवी सेना केवल गैर-सरकारी संस्थान समाज सेवी संस्था, व्यापारी वर्ग और शिक्षक वर्ग प्रदान कर सकता है। व्यापारी वर्ग इसमें धन द्वारा सहायता कर सकता है। शिक्षकों तथा विद्यार्थियों को आगे आकर इस अभियान को सफल बनाना चाहिए। उनके पास समय भी है और योग्यता भी।

शिक्षा-दान से श्रेष्ठ दान कोई नहीं। वे घर-घर जाकर स्त्री पुरुषों को साक्षर बना सकते हैं। उनमें शिक्षा के प्रति जागरूकता और चेतना पैदा कर सकते हैं। लेकिन उन्हें इस नेक काम के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। शिक्षक वर्ग को भी इस कार्य में बढ़-चढ़ कर हाथ बंटाना चाहिए। उन्हें भी साक्षरता अभियान में सक्रिय सहयोग देने के लिए किसी-न-किसी प्रकार पुरस्कृत किया जाना चाहिए। यदि प्रत्येक विद्यार्थी और अध्यापक अपने स्तर पर कम-से-कम एक-दो प्रौढ़ व्यक्तियों को शिक्षित करने का प्रण ले लें तो समस्या बहुत ही सरल हो सकती है।

साक्षरता अभियान को रोजगार और बेहतर जीवन की सुविधाओं से जोड़ा जाना चाहिये। प्रौढ़ शिक्षा को सरल, तथा रोचक बनाया जाना चाहिये। प्रौढ़-पुरूषों के लिए विशेष पाठ्य-सामग्री, पुस्तकें आदि होनी चाहिये। उनके लिए चल विद्यालय तथा पुस्तकालय होने चाहियें। उन्हें पढ़ने-लिखने की सामग्री मुफ्त मिलनी चाहिये। उनकी शिक्षा की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिये कि वे खाली समय में पाठशाला आ सकें।

विद्या जीवन में अति आवश्यक है। इसके अभाव में प्रगति और विकास की कल्पना भी असंभव है। शिक्षा के प्रकाश व ज्ञान के बिना सर्वत्र अंधकार और अज्ञान ही व्याप्त रहता है। शिक्षा व्यक्ति को जागरूक और विचारशील बनाती है।

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