Agra Summit in Hindi – Agra Shikhar Varta आगरा शिखर वार्ता

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Agra Summit in Hindi

भारत और पाकिस्तान का संबध ठीक वैसा ही नहीं है, जैसा भारत का विश्व के बाकी देशों के साथ है। यह संबंध अच्छा है या बरा-प्रश्न यह नहीं है, अपित प्रश्न, संबंध की विशिष्टता का है। इसका कारण स्पष्ट है। भारत और पाकिस्तान इस ढंग से दो भिन्न एवं अलग-अलग देश सदा से नहीं हैं। वो एक देश के दो टुकड़े हैं, विभाजन के परिणाम स्वरूप निर्मित हुए दो देश हैं। जो पहले एक थे, अब विभाजित होकर दो अलग-अलग देश हो गये हैं। इसी कारण इन दोनों देशों के बीच निर्मित संबंध कुछ विशिष्ट और निजता लिये हुए हैं।

भारत और पाकिस्तान के मध्य चाहे राजनैतिक संबंध हों, चाहे आर्थिक संबंध या फिर सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध होड़, उन पर इस विभाजन से उत्पन्न मनोभाव की छाया स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। एक आन्तरिक तनाव और स्पर्धा 1947 के बाद से ही दोनों देशों के बीच लगातार विद्यमान रही है। यही कारण है कि कभी-कभी दोनों देश युद्ध की अग्नि में भी जल उठे, किन्तु कभी भी एक-दूसरे के खिलाफ आर-पार की लड़ाई नहीं कर पाये। शायद अपने साझे अतीत और स्मृतियों के परिणामस्वरूप। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत-पाक विभाजन एक राजनैतिक-स्पर्धा और स्वार्थपूर्ति का परिणाम था, जिसका कटुता अनुभव एक साझे भारतीय समाज को भुगतना पड़ा और उसे दो टुकड़ों में सदा-सदा के लिए बँट जाना पड़ा। यह घटना हमारे इतिहास की एक अत्यंत दुखद घटना रही है।

एक लम्बे समय से भारत ने पाकिस्तान के साथ मधुर संबंध बनाने की कोशिश की है। इसी प्रकार की एक कोशिश 2001 में भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा की गयी। पाकिस्तान के शासन की डोर राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के हाथों में थी। भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा उन्हें राजनैतिक मसौदों पर चर्चा करने के उद्देश्य से भारत आमंत्रित किया गया था। इस कार्यक्रम को संपन्न करने एवं उसे पूरी तरह से सफल बनाए जाने के लिए पाकिस्तानी प्रतिनिधि मंडल एवं भारतीय अधिकारियों के द्वारा अनेक तैयारियां एवं विचार-विमर्श की गतिविधियां की गयी थी। इसी प्रयास में इस भेट कार्यक्रम को चार चरणों में बांटकर व्यवस्थित किया गया था। पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ 14 जुलाई को नई दिल्ली पहुँचे। उनका स्वागत अत्यंत भव्य रूप से भारत सरकार द्वारा किया गया था। उनके सम्मान में लाल कालीन विछाया गया जो सम्मान और आदर का प्रतीक होता है। इसी के साथ उन्हें 21 तोपों की गर्जनापूर्ण सलामी भी प्रदान की गयी थी। उनके ठहरने का शाही प्रबंध सरकार की ओर से किया गया था। यह आयोजन जिसे महनीय उद्देश्य को केन्द्र में रखकर तैयार किया गया था, उसे आगरा में रखा गया था। दिल्ली से अगरा तक की दूरी प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सड़क मार्ग से तय की थी। यह बात इस कार्यक्रम की गम्भीरता को प्रकट करती थी। किन्तु, इस पूरे कार्यक्रम के दौरान इस बात को सहज रूप से रेखांकित किया जा सकता था कि इस होने वाले कार्यक्रम पर अतीत की घटनाओं की काली छाया छायी हुई है। एक तनाव दोनों ही देशों की ओर से सहज ही देखा जा सकता था। मानो कहीं कोई असुरक्षा की भावना गहरी बैठ गयी हो। अन्तत: इसका परिणाम यही निकला कि यह समझौता असफल रहा। इसमें बड़ी भूमिका पाकिस्तान ने निभाई। वह बाकी मुद्दों को गैर-जरूरी मानकर, मात्र कश्मीर-समस्या को लेकर बैठ गया। उसकी हठधर्मिता का यही परिणाम निकला कि कार्यक्रम बिना किसी सकारात्मक-समझौते के समाप्त हो गया।

वस्तुत: भारत और पाकिस्तान वर्तमान समय में एक-दूसरे के लिए अत्यंत लाभदायक देश हैं। अगर दोनों देश अपने बीच व्यापक आर्थिक संबंध निर्मित करते हैं तो इस कार्य से दोनों देशों के घरेलु उद्योगों को बहुत बड़ा फायदा पहुँच सकता है। अभी भी अनेक प्रकार की वस्तुओं का आदान-प्रदान गुप-चुप रूप से होता है। किंतु अगर इसे कानूनी और सरकारी मान्यता एवं सहायता मिलने लगती है तो इससे दोनों देशों की आम जनता को फायदा होगा और दोनों देशो की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

आगरा शिखर-वार्ता की असफलता के बाद दोनों देशों को ऐसे मुद्दों से बचना चाहिए, जो आपसी तनाव और क्लेश को बढ़ाने वाले मुद्दे हैं। उन्हें वैश्विक स्थितियों को देखते हुए अपने परस्पर संबंधों को निश्चित रूप से नया रूप प्रदान करना चाहिए, ताकि आगे आने वाले भविष्य में दोनों देश स्वयं विकसित एवं सबल बना सकें।

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