Essay on Communalism in Hindi सांप्रदायिकता का विष पर निबंध

Write an essay on Communalism in Hindi language. सांप्रदायिकता का विष पर निबंध। In this essay you will learn short essay on communal harmony in Hindi. An essay on Communalism in Hindi was asked in class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12.

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Essay on Communalism in Hindi

भारत एक विशाल और धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र है। इस देश में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही संसद व विधान परिषदों में पहुंचकर कानून बनाते हैं और देश का शासन चलाते हैं। भारत विविधताओं में अनेकता का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। यहां विभिन्न धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों और मतमंतारों के लोग निवास करते हैं। वे अनेक भाषाएं बोलते हैं। यद्यपि भारत में हिन्दुओं की प्रधानता है परन्तु फिर भी यह कोई हिन्दू राष्ट्र नहीं है। लिंग, धर्म, जाति, रंग, सम्प्रदाय, भाषा, निवास स्थान आदि के आधार पर यहां कोई भेदभाव नहीं है।

भारत में मुसलमानों की संख्या कम नहीं है। इनकी जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। केवल इंडोनेशिया ही एक मात्र देश है। जहां मुसलमानों की आबादी भारत से अधिक है। अन्य धर्म व सम्प्रदायों के लोगों की तरह मुसलमान यहां पूरी धार्मिक स्वतन्त्रता के साथ पिछली अनेक शताब्दियों से रह रहे हैं। यह हमारी धार्मिक सहिष्णुता, सद्भाव, शांति और परस्पर सहयोग का एक अनुपम उदाहरण है, परन्तु कभी-कभी यह शांति और सद्भाव छिन्न-भिन्न होते भी देखा जा सकता है। यह बड़ी चिंता का विषय है। साम्प्रदायिकता का विष हमारे देश के जीवन को निर्बल कर रहा है।

साम्प्रदायिकता का तात्पर्य है किसी धर्म या सम्प्रदाय के लोगों में भारत के प्रति देश-प्रेम व निष्ठा का अभाव। साम्प्रदायिकता के कारण इन धर्म और सम्प्रदायों के लोगों के लिए राष्ट्र गौण और महत्त्वहीन हो जाता है और वे अपने संकीर्ण स्वार्थों और अनुचित धार्मिक निष्ठा से प्रेरित होकर राष्ट्र विरोधी कार्यों में संलग्न हो जाते हैं। हिन्दू धर्म में भी अनेक सम्प्रदाय, पंथ और मतमंतार हैं। मुसलमानों में सुन्नी और शिया सम्प्रदाय हैं। जैनियों में दिगम्बर व श्वेताम्बर हैं तो इसाईयों में रोमन कैथालिक, प्रोटेस्टेंट आदि। हिन्दुओं में एक और विभाजन रेखा स्वर्ण और हरिजनों के रूप में देखी जा सकती है। जब कभी इन विभिन्न सम्प्रदायों, धार्मिक वर्गों और जातियों में टकराव व संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है तो स्थिति बेकाबू हो जाती है। इससे देश को धन-जन की अपार हानि होती है, वातावरण प्रदूषित हो जाता है तथा विकास की गति रुक जाती है।

देश में साम्प्रदायिकता, धार्मिक टकराव व संघर्ष अंग्रेजों की देन है। अंग्रेज स्वार्थी, दुष्ट और लोलुप लोग थे। उन्होंने कभी भारत का हित चिंतन नहीं किया। “बांटो और राज करो” उनकी प्रधान नीति थी। उन्होंने भारतीय समाज को स्वर्णदलित, हिन्दू-मुसलमान जैसे वर्गों में बांटने के प्रयत्न किये। कभी हरिजनों को स्वर्ण हिन्दुओं से अलग किया, तो कभी हिन्दुओं और मुसलमानों को संघर्ष के लिए आमने-सामने ला खड़ा किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा और वह देश का भारत और पाकिस्तान में विभाजन करते गए।

देश का यह विभाजन दो धर्मों के आधार पर किया गया था जो सर्वथा अनुचित और अव्यावहारिक था। मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनाया गया परन्तु आज भी भारत में लाखों मुसलमान प्रायः शान्तिपूर्वक रहते हैं। इस विभाजन के कारण हिंसा, आगजनी, बलात्कार, मारकाट और अराजकता का जो तांडव नत्य देखने को मिला, वह आज भी भयभीत कर देता है।

साम्प्रदायिकता के आधार पर देश के विभाजन में जिन्ना तथा उनकी मुस्लिम लीग ने भी बहुत बड़ी परन्तु अवांछित भूमिका निभाई। जिन्ना अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए पाकिस्तान निर्माण की अपनी जिद्द पर अड़े रहे। अंग्रेज तो यह चाहते ही थे और देश को विभाजन के साथ-साथ हमें जिस भीषण त्रासदी व हिंसा से गुजरना पड़ा, उसे सब जानते हैं। पाकिस्तान के निर्माण ने साम्प्रदायिकता की, आग में घी का काम किया और देश में कभी-कभी साम्प्रदायिक दंगे व हिंसा भड़कने लगी। कश्मीर की समस्या भी इसी साम्प्रदायिक सोच और विचारधारा का ही परिणाम है। इसके कारण भारत व पाकिस्तान में निरन्तर कटुता व संघर्ष बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान के प्रोत्साहन पर ही भारत में उग्रवाद और आतंकवाद बढ़ रहे हैं। अयोध्या का मन्दिर-मस्जिद विवाद भी इसी संदर्भ में देखे जा सकते हैं। साम्प्रदायिकता के इस विषमय वातावरण ने कई सेनाओं, धार्मिक दलों, हिंसक वर्गों और संस्थाओं को जन्म दिया है।

गुजरात में जो साम्प्रदायिक दंगे पिछले कुछ समय में हुए, वे दिल-दहला देने वाले हैं। इस में पाकिस्तान और पाकिस्तान समर्थित मुसलमान और फिरकापरस्त शक्तियों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। साम्प्रदायिकता की इस आग में सैकड़ों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए, हजारों स्त्रियां विधवा हो गईं, भीषण नरसंहार हुआ तथा सरकारी व निजी संपत्ति की अपार हानि हुई । साम्प्रदायिक दंगों के कारण समाज और मनुष्य जाति को जिस त्रास एवं विषाद से गुजरना पड़ता है, उसे शब्दों में कहना असंभव है। इंस साम्प्रदायिक हिंसा पर नियंत्रण तो पा लिया गया है परन्तु हम कह नहीं सकते कि कब और कैसे, किसी और जगह यह फूट पड़े। साम्प्रदायिक शक्तियों का निर्मूल किया जाना आवश्यक है।

कोई भी धर्म हिंसा, घृणा और बैर नहीं सिखाता। सभी धर्म व सम्प्रदाय मनुष्य को नैतिकता, सहिष्णुता व शांति का पाठ पढ़ाते हैं। परन्तु कुछ असामाजिक तत्व मुल्ला-मौलवियों, पंडों-संतों के वेश में लोगों में धार्मिक भावनाएं भड़काकर अशांति, उपद्रव, हिंसा व अराजकता फैलाने में लगे रहते हैं। कुछ लोग उचित शिक्षा, समझबूझ और ज्ञान के अभाव में उनके बहकावे में आ जाते हैं और उनके कहने पर चलकर साम्प्रदायिक विद्वेष को फैलाते हैं। इस संदर्भ में कवि इकबाल ने ठीक ही कहा है –

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा॥

हमारे देश में सांप्रदायिक दंगो क्यों होते हैं ? इसके बारे में अपने विचार दीजिए।

भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित है। जातियों का निर्माण पेशे पर आधारित है। धीरे-धीरे वर्ण व्यवस्था ने जाति व्यवस्था का रूप धारण कर लिया है। जातिवाद के साथ ही सांप्रदायिक दंगों की संभावना बढ़ गई है। इसके निम्नलिखित कारण हैं:

1. भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। यहां पर प्रत्येक सम्प्रदाय आपस में मिलजुल कर रहना पसन्द करते हैं, लेकिन कुछ समाज-विरोधी तत्त्व धर्म के नाम पर सांप्रदायिक दंगों को बढावा देते हैं।

2. सांप्रदायिक दंगों के लिए राजनीतिक दल भी जिम्मेदार हैं। राजनीतिक नेता अपने निजी स्वार्थ के लिए धर्म की आड़ में विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों में आपसी मतभेद पैदा कर देते हैं। कई बार ये मतभेद गम्भीर रूप धारण कर लेते हैं। जिससे ऐसी संकटकालीन स्थिति पैदा हो जाती है कि सरकार भी इससे अछूती नहीं रह सकती और यह स्थिति देश की अखण्डता को मुसीबत में डाल देती है।

3. आर्थिक कारणों से भी सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है। इसका कारण है एक सम्प्रदाय के लोग दूसरे सम्प्रदायों की आर्थिक उन्नति से ईर्ष्या करते हैं।

4. अधिक से अधिक धन प्राप्ति की इच्छा से व्यापारी लोग अपने उद्योगों को सुदृढ़ और अच्छा बनाने के लिए अपने प्रतियोगियों को आगे आने से रोकते हैं। जिससे गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और यह गतिरोध ही बाद में भयानक साम्प्रदायिक रूप धारण कर लेता है।

5. बेरोजगारी कई सांप्रदायिक दंगों को बढ़ाने में सहायक होती है। सांप्रदायिक दंगे हमारे देश के लिए हानिकारक होते जा रहे हैं।

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