Essay on Dev Dev Alsi Pukara in Hindi

Write an essay on Dev Dev Alsi Pukara in Hindi for class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. दैव दैव आलसी पुकारा पर निबंध।

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Essay on Dev Dev Alsi Pukara in Hindi

विचार-बिंदु – • उक्ति का अर्थ • आलसी लोग भाग्य की दुहाई देते हैं • परिश्रमी जन विपत्ति में भी कर्म करते हैं • निकम्मे लोग विपत्ति में चीत्कार करने लगते हैं • संसार में सफलता के लिए निरंतर कर्म, संघर्ष और गतिशीलता आवश्यक।

आलसी व्यक्ति ही हे देव! हे देव! की पुकार लगाते हैं। परिश्रमी व्यक्ति अपने भरोसे जीते हैं। वे परिश्रम करके सुखी रहते हैं। परिश्रम करने से उन्हें आनंद और संतोष मिलता है। इसलिए उन्हें विपत्ति में भी धैर्य रहता है। वे अपनी कर्म-शक्ति के बल पर बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ सहर्ष झेल लेते हैं। इसके विपरीत आलसी लोग निकम्मे होते हैं। इसलिए मुसीबत पड़ते ही वे हाय-हाय करने लगते हैं। हाय मर गया ! मुझे बचाओ! हे भगवान! आदि कायरों जैसे शब्द वे ही बोलते हैं। उनकी दया की पुकार ही उनका सहारा होती है। इसलिए वे मुसीबत में जोर-जोर से रोने-चिल्लाने के सिवा कुछ नहीं कर सकते। इसलिए यदि दुनिया में रहकर इस हाय-हाय से बचना है तो मेहनत करो। आलस्य छोड़ो। सफलता, खुशी और आत्मनिर्भरता को यही एक उपाय है।

मनुष्य जितनी शक्ति से रोता-चीखता और छटपटाता है, उतनी ही शक्ति से अगर वह सत्पथ पर चलना शुरू कर दे तो असफलता सफलता में बदलने लगती है। आवश्यकता है अपने आलस्य को कर्म में बदलने की। निष्क्रियता को सक्रियता में बदलने की, नकारात्मक सोच को सही दिशा में लगाने की।

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