Essay on Dowry System in Hindi दहेज प्रथा पर निबंध

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Essay on Dowry System in Hindi 150 Words

दहेज प्रथा पर निबंध

विचारबिंदु – • दहेजएक समस्यादहेज के दुष्परिणामसमाधानलड़की का आत्मनिर्भर बननाकानून के प्रति जागरूकता।

आज दहेजप्रथा एक बुराई का रूप धारण करती जा रही है। दहेज की माँग एक बुराई है। इसके अभाव में योग्य कन्याएँ अयोग्य वरों को सौंप दी जाती हैं। अयोग्य कन्याएँ धन की ताकत से योग्यतम वरों को खरीद लेती हैं। दोनों ही स्थितियों में पारिवारिक जीवन सुखद नहीं बन पाता। गरीब कन्याएँ तथा उनके मातापिता दहेज के नाम से भी घबराते हैं। परिणामस्वरूप उनके जीवन में अशांति, भय और उदासी घर कर जाती है। माँबाप बच्चों का पेट काटकर पैसे बचाने लगते हैं। यहाँ तक कि वे रिश्वत, गबन जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं चूकते। दहेज के लालच में बहुओं को परेशान किया जाता है। कभीकभी उन्हें इतना सताया जाता है कि वे आत्महत्या कर लेती हैं। कई दुष्ट वर अपने हाथों से नववधू को जला डालते हैं।

इस बुराई को दूर करने के सच्चे उपाय देश के नवयुवकों के हाथ में हैं। वे अपने जीवनसाथी के गुणों को महत्त्व दें। विवाहप्रेमके आधार पर करें, दहेज के आधार पर नहीं। कन्याएँ भी दहेज के लालची युवकों को दुत्कारें तो यह समस्या तुरंत हल हो सकती है। लड़कियाँ आत्मनिर्भर बनकर भी दहेज पर रोक लगा सकती हैं। यद्यपि आज हमारे पासदहेज निषेध विधेयकहै, किंतु दहेज को रोकने का सच्चा उपाय युवकयुवतियों के हाथों में है।

Essay on Dowry System in Hindi 300 Words

हम भारत समाज में रहते हैं जो विभिन्न जातियों और उप-जातियों से बना है, विभिन्न परंपराओं और संस्कृतियां हैं। कुछ परंपराएं अच्छे हैं, लेकिन उनमें से सभी नहीं हैं जैसे कि दहेज प्रणाली सामाजिक बुराइयों में से एक है, जो अभी तक चल रही है। शादी के वक़्त दुल्हन को अपने माता-पिता द्वारा दी गई संपत्ति या धन जब अपने पति के घर ले जाती है, तो उसे दहेज कहते है। लड़की के माता-पिता को दूल्हे के परिवार के लिए नकदी के रूप में उपहार देने और कीमती चीजें देना भी शामिल है।

अपरिहार्य दहेज लाने के लिए पति और उनके परिवार द्वारा अक्सर लड़की को अत्याचार किया जाता है। कभी-कभी वे अत्याचार से बचने के लिए आत्महत्या करने के लिए मजबूर होते हैं। इससे भी बदतर, लोग भी दुल्हन को दूर करने के लिए हत्या का सहारा लेते हैं, जो पर्याप्त दहेज नहीं लाती। हमारे समाज में “दहेज की मौत” बहुत गंभीर समस्या बन गई है। इस समस्या से निपटने के लिए पिछले 15 वर्षों में विभिन्न विधायी सुरक्षा उपायों को पेश किया गया है। लेकिन दुखद सत्य यह है कि दहेज की मृत्यु सहित वैवाहिक और घरेलू हिंसा बढ़ती रही है जो पहले के मुकाबले और भी फैल गई है।

दहेज कि काफी हद तक समाज द्वारा निंदा भी की जाती है, लेकिन कुछ लोगों का तर्क यह भी है कि इसका अपना महत्व है जिसे लोग परंपरा के नाम पर अभी भी इसका अनुसरण कर रहे हैं और वह इसे प्रतिष्ठा का प्रतीक मानते है। दूसरी तरफ से देखे तो यह दुल्हन को कई तरीकों से लाभ भी पहुँचा रही है।

पर मुझे लगता है कि इस प्रणाली को कानून द्वारा प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। शादी के समय सभी शिक्षित लड़कियों और लड़कों को इस प्रणाली को हतोत्साहित करना चाहिए और ऐसी बुराइयों से बचना चाहिए। लड़कियों के माता-पिता को अपनी बेटियों को अच्छी तरह से शिक्षित करना चाहिए। अगर लड़कियों को शिक्षित किया जाए, तो उन्हें अच्छे पति मिल जाएंगे। किसी भी कीमत पर, इस प्रणाली को एक सुसंस्कृत और सभ्य समाज के लिए हमारा सफाया होना चाहिए।

Essay on Dowry System in Hindi 1000 Words

हमारे समाज में अनेक त्रुटियां और कुरीतियां है जो समाज को घुन की तरह लग कर अंदर ही अन्दर खोखला कर रही हैं। दहेज एक ऐसी ही सामाजिक बुराई है, जो समाज के माथे पर कलंक है। दहेज लड़की के लिए, लड़की के माता पिता के लिए तो अभिशाप है ही, साथ ही यह भारतीय समाज के लिए भी एक दु:खद और घृणित अभिशाप है।

दहेज शब्द अरबी के शब्द ज़हेज़ का बदला हुआ रूप है जिसका अर्थ है, विवाह के अवसर पर वर को दिया जाने वाला धन या उपहार। संस्कृत में यौतुक शब्द है जिसका अर्थ है “वर और वधू को दिया जाने वाला”। मनुस्मृति में विवाह के भेदों के अन्तर्गत आर्य विवाह में दो गौएं देने का उल्लेख है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बहुत पुराने समय में वर पक्ष की ओर से मांग कर या जबरदस्ती कुछ नहीं लिया जाता था। माता-पिता पुत्री को विदा करते समय प्रेम के कारण कुछ उपहार देते थे या उनके मन में यह भावना होती थी कि उन्होंने नई गृहस्थी बसानी है, कुछ सहायता हम भी कर दें।

दहेज के रूप में अधिक धन सम्पत्ति देने का रिवाज राजाओं और जागीरदारों से आरम्भ हुआ। वे लोग अपने बराबर के या अपने से बड़े के यहां ही अपनी लड़की का रिश्ता करते थे ताकि उनका राज्य या जागीर सुरक्षित रहे। उनके लिए लड़की-लड़के का सम्बन्ध उनकी महत्ता नहीं रखता था जितनी महत्ता सैनिक या राजनैतिक सम्बन्धों की होती थी। फलस्वरूप प्रलोभन के लिए अधिक से अधिक सोना, चांदी तथा अन्य वस्तुएं और नौकर-नौकरानियां भी दहेज में दी जाती थीं। धीरे-धीरे यह बीमारी समाज के अन्य वर्गों में भी फैलती गईं।

अब तो यह हाल है कि कई बिरादरियों में रिश्ता तय करते समय पहले सौदा होता है कि लड़की वाले इतना दहेज़ देंगे तब विवाह होगा। लड़का जितना अधिक पढ़ा लिखा या जितनी बड़ी नौकरी पर होता है उसी के अनुसार दहेज का मूल्य भी निश्चित किया जाता है। दहेज के लाभ में कुरूप लड़कियां भी वर पक्ष द्वारा स्वीकार कर ली जाती हैं। बाद में लड़के-लड़की का मन न मिलने पर कई प्रकार की उलझनें उत्पन्न होती हैं।

दहेज के इस अभिशाप ने मध्यवर्ग की बुरी दशा कर दी है। मध्यवर्ग वास्तव में मजदूर वर्ग ही होता है क्योंकि बिना काम या मेहनत के इसका निर्वाह नहीं चल पाता, परन्तु आकांक्षाएं उच्चवर्ग में पहुंचने की होती है। हर मध्यवर्गीय युवक और उसके माता-पिता भी यह चाहते हैं कि उनके पास कोठी, कार, फ्रिज, टैलीविज़न, कीमती गहने, बढ़िया कपड़े आदि सभी वस्तुएं हों। नौकरी या सामान्य काम धंधे से सिर्फ रोटी ही मिलती है, ये सब कुछ नहीं बन पाता। फलस्वरूप दहेज से सब कुछ पाने की कोशिश की जाती है। उधर लड़की के मध्यवर्गीय माता-पिता भी अपनी नाक रखने के लिए अपनी समायं से बढ़ कर दहेज देने का यत्न करते हैं तो भी वर पक्ष का पेट नहीं भर पाते।

एक भयानक चक्र आरम्भ हो जाता है। लड़की की सास या ननदें उसे दिनरात तानें उलाहने देने लगती हैं और उसका जीना दूभर कर देती हैं। कई बार पति भी साफ शब्दों में धन की मांग रखते हैं कि मायके से इतना लेकर आओ। लड़की माता-पिता के पास आकर रोती है, वे उसे बसती देखना चाहते हैं और किसी न किसी तरह प्रबन्ध करके धन दे देते हैं। लड़के वालों के मुंह लहू लग जाता है। मांग पूरी न होने की दशा में या तो लड़की को छोड़ दिया जाता है या तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं। समाचार पत्रों में नवविवाहिता युवतियों के स्टोव से जलने के अनेक समाचार आते हैं। ऐसे समाचार भी पढ़ने में आए हैं कि दहेज कम लाने के कारण विष देकर या गला घोंट कर युवतियों की हत्या कर दी गई।

इस अभिशाप के लिए नई और पुरानी दोनों पीढ़ियां दोषी हैं। यदि लड़के के माता-पिता दहेज के लालची हैं तो लड़का उनका विरोध क्यों नहीं करता ? यदि लड़की के माता-पिता दहेज देना चाहते हैं तो लड़की को भी स्पष्ट रूप से कह देना चाहिए कि वह दहेज के लालची लड़के से कदापि विवाह नहीं करेगी। इसमें कोई सन्देह नहीं कि पिछले दिनों अनेक जगह युवकों और युवतियों ने सामूहिक रूप से दहेज लेने-देने के विरुद्ध प्रतिज्ञाएं की हैं किन्तु भीड़ में की गई वे प्रतिज्ञाएं क्या हृदय से निकली हुई सच्ची भावनाएं थीं ?

इस अभिशाप को मिटाने के लिए सर्वप्रथम युवक और युवतियों को कटिबद्ध होना चाहिए। माता-पिता को भी सोचना चाहिए कि विवाह दो हृदयों का मिलन है, कोई व्यापार नहीं है। सरकार को चाहिये कि कानूनों को कठोरता से लागू करे और उल्लंघन करने वालों के साथ किसी भी प्रकार की रियायत न की जाए। समाज के प्रतिष्टित व्यक्तियों को भी चाहिए कि वे अपने लड़कों और लड़कियों के विवाह बिना किसी दहेज और बिना किसी धूमधाम के बड़ी सादगी के साथ करके अन्य लोगों के सामने आदर्श प्रस्तुत करें। इसके अतिरिक्त धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक सभी मंचों से धन के लोभ का विरोध होना चाहिए, क्योंकि यही दहेज का मुख्य कारण है। यदि दहेज का यह अभिशाप न मिटा तो न जाने कितने अनमोल विवाह कितने हृदयों का खून करेंगे और कितनी नवयुवतियों को भरी जवानी में मृत्यु की भेंट चढ़ा दिया जाएगा अथवा स्वयं आत्म-हत्या करने पर विवश होंगी। इस अभिशाप को मिटा कर ही समाज का माथा उज्जवल तथा गौरव से ऊंचा रखा जा सकेगा।

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