Essay on Library in Hindi पुस्तकालय पर निबंध

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Essay on Library in Hindi

Essay on Library in Hindi

Essay on Library in Hindi 300 Words

शिक्षा के बिना मनुष्य पशु तुल्य है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति के आन्तरिक गुणों का विकास होता है और मनुष्य सभ्य तथा सुसंस्कृत बनता है। पुस्तकालय शिक्षा एवं ज्ञान के प्रचार प्रसार में हमारी सहायता करते हैं। पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की सैकड़ों पुस्तकें उपलब्ध रहती हैं। पुस्कालय में पुस्तकों की सूची एवं स्थान की तालिका के आधार पर हम अपनी पसंद की पुस्तक का चयन कर उसको प्राप्त कर सकते हैं। पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र हैं। पुस्तकालय में हमें पुस्तकों के अतिरिक्त समाचार पत्र और पत्रिकायें भी पढ़ने को मिलती हैं।

प्रत्येक विद्यालय में एक लाइब्रेरी अथवा पुस्तकालय होता है। हमारे विद्यालय का पुस्तकालय बहुत बड़ा है। हम सप्ताह में एक दिन वहाँ से पुस्तकें प्राप्त करते हैं और पढ़ने के बाद लौटा देते हैं। विद्यालय के पुस्तकालय में केवल हमारे शिक्षक एवं विद्यालय के विद्यार्थी ही जा सकते हैं। वह सार्वजनिक पुस्तकालय नहीं है।

पुस्तकालय में बैठ कर हम अपनी रूचि की पुस्तकों के साथ घण्टों बिता सकते हैं और अपनी पसन्द की पुस्तक को घर ले जाने के लिये जारी करा सकते हैं। पुस्तकालय में बहुत से लोग अपना पढ़ने लिखने का काम करने में व्यस्त होते हैं अतः वहाँ शान्ति बनाये रखना बहुत जरूरी होता है। पुस्तकालय में बातें करना, शोर मचाना, खाना पीना सब मना होता है। कुछ बच्चे विद्यालय के पूस्तकालय की पुस्तकों में से पृष्ठ फाड़ लेते हैं जिससे बाद में अन्य विद्यार्थियों को परेशानी होती है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिये। पुस्तकों को साफ एवं सुरक्षित रखना। हमारा कर्तव्य है। पुस्तकालय ज्ञान के मंदिर हैं। हमें पुस्तकालय जाने की आदत बनानी चाहिये।

Essay on Library in Hindi 800 Words

पुस्तकालय का अर्थ है – पुस्तकों का घर, मन्दिर अथवा भंडार। जहाँ पुस्तकों का संग्रह होता है, उसे पुस्तकालय कहा जाता है। पुस्तकालय में केवल पुस्तकें ही नहीं रखी जाती बल्कि वहां पत्र-पत्रिकाएं भी पढ़ने को मिलती हैं। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए पुस्तकों द्वारा ज्ञान प्राप्त करना भी अनिवार्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि यदि शरीर के किसी अंग से कार्य न लिया जाए तो उसकी क्रियाशीलता समाप्त हो जाती है। ठीक इसी प्रकार मस्तिष्क को क्रियाशीलता प्रदान करने के लिए तथा उसे गतिशीलता देने के लिए शुद्ध ज्ञान एवं नये-नये विचारों की नितान्त आवश्यकता होती है।

पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं। पहली प्रकार के पुस्तकालय वे हैं जो हमारे स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में होते हैं। इन पुस्तकालयों द्वारा अध्यापकगण तो लाभान्वित होते ही हैं, परन्तु आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के विद्यार्थी की ज्ञान पिपासा भी इन पुस्तकालयों द्वारा शान्त होती है। दूसरी प्रकार के पुस्तकालय व्यक्तिगत पुस्तकालय होते हैं। ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा रखने वाले और धनवान् व्यक्ति हज़ारों रुपये व्यय करके प्राचीन तथा अनमोल साहित्य एकत्रित करते हैं तथा अपने ज्ञान में वृद्धि करते हैं तथा आस-पास के रहने वाले व्यक्ति भी ऐसे पुस्तकालयों से लाभ प्राप्त करते हैं। कोई भी व्यक्ति अपना व्यक्तिगत पुस्तकालय खोल सकता है।

तीसरी प्रकार के पुस्तकालय सरकारी पुस्तकालय होते हैं। इनकी व्यवस्था स्वयं सरकार करती है परन्तु यह साधारण लोगों की पहुंच से बाहर होते हैं, इसलिए जनसाधारण को ऐसे पुस्तकालयों का कोई विशेष लाभ नहीं होता।

चौथी प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक पुस्तकालय होते हैं। इन पुस्तकालयों से सभी लाभ उठाते हैं। इन पुस्तकालयों में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार पुस्तक निकलवा कर पढ़ सकता है और एक निश्चित शुल्क देकर सदस्य बन कर कुछ दिनों के लिए पुस्तक घर ले जाकर भी पढ़ सकता है। ऐसे पुस्तकालयों के साथ वाचनालय का भी प्रबन्ध होता है। बहुत से व्यक्तियों को अखबार पढ़ने की सनक होती है और वे इसी बहाने पुस्तकालय पहुंच जाते हैं। यदि ऐसे वाचनालय-जिनमें पत्र-पत्रिकाएं, मैगज़ीन आदि न हों तो जनसाधारण पुस्तकालयों से अधिक लाभ प्राप्त नहीं कर सकता। पांचवें प्रकार के पुस्तकालय चल पुस्तकालय होते हैं। ऐसे पुस्तकालय भारत में न के बराबर हैं परन्तु विदेशों में ऐसे पुस्तकालय अधिक संख्या में होते हैं। इन पुस्तकालयों का स्थान गाड़ी में होता है। स्थान-स्थान पर ये पुस्तकालय जनता को नवीन साहित्य से परिचित करवाते रहते हैं जिससे देश का प्रत्येक नागरिक राष्ट्रीय साहित्य तथा देश की गतिविधियों से परिचित होता रहता है।

पुस्तकालयों से छात्रों तथा अध्यापक वर्ग को ही नहीं परन्तु जन साधारण को भी ज्ञान वृद्धि में सहायता मिलती है। किसी विषय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए उस पर केवल एक या दो पुस्तकें पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है परन्तु उसी विषय पर लिखी गई अधिक से अधिक पुस्तकों का अध्ययन करके ही अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञान वृद्धि के अतिरिक्त पुस्तकालयों द्वारा ज्ञान का प्रसार भी होता है जिससे मनुष्य कुसंगति, कुवासनाओं और प्रलोभनों आदि से बचा रहता है।

पुस्तकालय मनुष्य को सत्संग भी प्रदान करता है। पुस्तकों के अध्ययन से हमें मानसिक शान्ति मिलती है। मन कुछ समय के लिए संसार की चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है। कबीर, तुलसीदास और भर्तृहरि के श्रृंगार, नीति और वैराग्य शतक पढ़ कर ऐसा कौन सहदय पाठक नहीं होगा जिसके मन में संसार की विशालता का आभास नहीं होता होगा। महापुरुषों की जीवनियां हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं, जिन्हें पढ़कर परम सन्तोष और परमानन्द का अनुभव तो होता ही है परन्तु साथ-साथ उनके द्वारा दिखाए मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को भी सफल बना सकते हैं।

ज्ञान के अतिरिक्त पुस्तकालय श्रेष्ठ मनोरंजन का भी भंडार है। मनोरंजन के अन्य साधनों – रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा आदि पर पैसा खर्च करके आदमी अपना मनोरंजन करता है जबकि पुस्तकालय में आदमी बिना पैसे खर्च करके देश-विदेश के समाचार जान सकता है।

व्यक्तिगत लाभ के अतिरिक्त पुस्तकालयों द्वारा समाज का भी व्यापक हित होता है। विभिन्न देशों की पुस्तकों के अध्ययन से विभिन्न देशों की सामाजिक, परम्पराओं, मान्यताओं एवं व्यवस्थाओं का भी परिचय प्राप्त होता है जिससे हम अपने समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियाँ, अव्यवस्था इत्यादि को सुधारने में सफल हो सकते हैं।

पुस्तकालय मानव जीवन और सभ्यता का एक प्रमुख अंग है। भारतीय लोगों को पुस्तकालय की जितनी अधिक से अधिक सुविधाएं मिलेंगी उतना ही वे अधिक उन्नति करेंगे और उन्नतशील देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकने में योग्य हो सकेंगे।

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