Essay on Parents in Hindi माता पिता पर निबंध

Read essay on Parents in Hindi. माता पिता पर निबंध। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए माता पिता पर निबंध हिंदी में।

Essay on Parents in Hindi – माता पिता पर निबंध

hindiinhindi Essay on Parents in Hindi

Essay on Parents in Hindi 150 Words

मुझे अपने माता-पिता से बहुत प्यार है। वह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मै उनसे एक दिन भी अलग नही रह सकता हूँ। मैं हमेशा खुश रहता हूँ, जब मेरे माता-पिता मेरे साथ होते है। मेरे पिता जी अध्यापक है। उनका जन्म दिल्ली में हुआ था। मेरे पिताजी बहुत मेहनती इंसान है। मेरे पिता जी बडी ही खूबसूरती से गिटार बजाते है और वह शतरंज के भी बहुत अच्छे खिलाडी है।

मेरे पिताजी हमेशा गरीबो की मदद करते है। मेरी मॉ बहुत सुन्दर और वह बहुत अच्छा खाना बनाती है। मेरे मॉ भी दिल्ली से ही है। वह एक गृहिणी है। रात को मेरी माँ मेरे को बहुत सुन्दर कहानी सुनाती है। मेरे माता पिता मेरी पढ़ाई में मदद करते है। वह हमेशा मुझे सिखाते है कि झूठ न बोलो। हर हफते वह हमें कही न कही घुमाने ले जाते है। मुझे अपने माता पर गर्व है।

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Essay on Parents in Hindi 600 Words

माता-पिता के प्रति हमारे कर्तव्य

हमें जन्म देने और इस संसार में लाने वाले हमारे माता-पिता ही होते हैं। वे हमारे जीवनदाता होते हैं। हमें मात्र जीवन प्रदान करते हैं, ऐसा नहीं है; बल्कि हमें इस जीवन को सुखपूर्वक और आनन्द के साथ जीने के काबिल भी बनाते हैं। वे हमारी देखभाल ही नहीं करते हैं अपितु स्थिति के अनुकूल अथवा प्रतिकूल होने पर भी वो हमारी शिक्षा आदि की अपनी क्षमता से अधिक प्रभावशाली व्यवस्था भी करते हैं; ताकि हम न केवल मानवीय-सामाजिक जीवन व्यवहार के लायक बन सकें, अपितु अपने व्यक्तिगत जीवन को भी सुन्दर और सुखद बना सकें।

हमारे जीवन में हमारे माता-पिता की अविस्मरणीय भूमिका होती है। हम अपने जीवन में जो स्थान या पद प्राप्त करते हैं उसमें हमारी मेहनत और परिश्रम की जितनी भूमिका होती है, उससे कहीं अधिक हमारे आदरणीय माता-पिता का योगदान होता है। सच पूछा जाए तो माता-पिता की मजबूत हथेलियाँ उस सुदृढ़ नींव का काम करती हैं जिस पर हमारे भविष्य की सुन्दर इमारत खड़ी होती है।

किन्तु आज-कल स्थिति अत्यंत सोचनीय होती जा रही है। इधर कुछ वर्षों से हमारे सामाजिक-पारिवारिक संबंधों में अभूतपूर्व परिवर्तन आए हैं, जिनका हमारे भावी समय पर अत्यंत गंभीर प्रभाव पड़ने वाला है। हमारे सामाजिक-पारिवारिक संबंध आज कमजोर और शिथिल पड़ते हुए नजर आ रहे हैं। अगर हमारा समाज अपने संबंध, चेतना और परम्परा को लेकर इसी भांति उदासीन और विमुख होता गया तो निश्चित है कि हमारा आदर्शात्मक अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

वस्तुत: संबंध का आधार होता है समर्पण और कर्तव्य-पालन की भावना ही है। जिस समय और जिस संबंध में से यह चेतना समाप्त अथवा गौण हो जाती है उस संबंध की आयु तेजी से क्षीण होती चली जाती है। अत: हमें सदैव इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि अपने संबंधों के प्रति पूर्णतः समर्पित और कर्तव्य-परायण बने रहें । इसी से हमारे संबंध चिरायु हो सकेंगे।

हमारा सबसे ज्यादा करीबी और मन के पास का संबंध हमारे माता-पिता से ही होता है। यह संबध और लगाव हमें हमारे जन्म के साथ ही प्राप्त होता है और फिर कभी भी वह संबंध समाप्त नहीं होता। सदैव, हमारे साथ भी हमारे बाद भी वह संबंध बना रहता है।

आज इस अत्यंत महत्वपूर्ण और करीबी संबंध की सर्वाधिक उपेक्षा हो रही है। आज भौतिकवाद का प्रभाव आम आदमी पर इतना ज्यादा चढ़ चुका है कि उसमें मूल्य-हीनता का सा वातावरण व्याप्त है। घर के बुजुर्ग, जो आज शारीरिक रूप से शिथिल हो चुके हैं और स्वयं अपने प्रयास से ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते, उन्हें हम समुचित आदर और सम्मान बिलकुल भी नहीं देते। हम उन्हें घर में पड़ी अन्य पुरानी वस्तुओं से ज्यादा कुछ भी नहीं समझते। और जल्द से जल्द उनसे छुटकारा पाने की चेष्टा रखते हैं।

आज वह समय आ गया है, जब बुजुर्ग लोग रिक्शा चलाते, बोझा ढोते अथवा अत्यंत जीर्ण अवस्था में भीख मांगते हमें सहज ही दिख जाते हैं। ऐसा नहीं है कि वे दुनिया में अकेले होते हैं। सोचने की बात है कि उनका पूरा परिवार उसी शहर में आराम की जिंदगी जी रहा होता है, जिसमें वह बुर्जुग हमें भीख मांगता दिखाई देता है।

हम भारतीयों को अपने उन कर्तव्यों का स्मरण आज अनिवार्य रूप से करना ही होगा जिन्हें हम छोड़ चुके हैं। जो माता-पिता जिन्दगी भर हमें सुख-सुविधाओं की प्राप्ति कराते रहते हैं। उन्हें हम उनके बुढ़ापे में आराम न दे सकें, यह हमारी और हमारे समाज की अमानवीयता ही कहलाएगी।

आज समय आ गया है जब हमें अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन पूरी ईमानदारी और सहजता के साथ अनिवार्यत: करना होगा। अन्यथा यह समाज कब ढह जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।

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