Essay on Aids in Hindi एड्स पर निबंध

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Essay on Aids in Hindi

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एड्स पर निबंध

एड्स एक घातक रोग और महामारी है जिसका प्रकोप सारे संसार में अत्यन्त तीव्र गति से हो रहा है। एड्स, एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशियेन्सी सिंड्रोम (Acquired Deficiency Syndrome) का संक्षिप्त रूप है। इस महामारी से कोई देश, प्रदेश या प्रांत अछूता नहीं बचा है। संसार के सभी भागों में इसका विनाशकारी प्रकोप देखा जा सकता है। यह रोग बच्चों, बूढों, युवकों, नारियों आदि सभी को होता है। इसके इतने तीव्र प्रसार ने सब को हतप्रभ कर दिया है। लेकिन यह उन लोगों में सबसे ज्यादा पाया जाता है जो नशा करते हैं, समलिंगी हैं, ट्रक चलाते हैं, चकलों तथा सैक्स वर्कर्स के पास जाते रहते हैं या फिर ढाबों आदि स्थानों में रहते हैं। एड्स की समस्या एक विश्व व्यापी समस्या है और बहुत गंभीर व जटिल भी। दुःख की बात यह है कि अभी तक इसका कोई उपचार नहीं पाया गया है। अपार धनराशि इसके उपचार खोजने में खर्च की जा रही है परन्तु अभी तक यह लाईलाज ही है। हां लगातार और बहुत मंहगी दवाइयों के सेवन से एड्स से होना वाली मृत्यु को कुछ समय के लिए टाला अवश्य जा सकता है।

एड्स का विषणु या वायरस एच-आई-वी (ह्यूमन इम्यूनो डेफिंशियेन्सी) कहलाता है। इससे प्रभावित व्यक्ति की रोगों से लड़ने की शक्ति समाप्त हो जाती है । परिणाम स्वरुप इस व्यक्ति पर अनेक रोगों का आक्रमण हो जाता है और रोगी तिल-तिल दम तोड़ता हुआ मर जाता है। पिछले २०-25 वर्षों में लाखों लोग एड्स के कारण काल के गाल में समा चुके हैं और लाखों मरने की कगार पर हैं। समझा जाता है कि एड्स के विषाणु अफ्रीका के एक विशेष बंदर (चिपांजी) से मनुष्यों में फैले हैं। लेकिन यह वायरस बंदरों में कोई गंभीर रोग नहीं फैला सका। पहले बंदरों ने कुछ मनुष्यों को अपने दांतों से काट लिया या पंजों से घाव कर दिये और ये लोग एड्स के शिकार हो गये। फिर दूसरे लोगों में एड्स उनके संपर्क में आने से फैल गया। प्रारंभ में एड्स का रूप इतना घातक नहीं था। अफ्रीका में इस रोग के फैलने का मुख्य कारण वहां की जनजातियों में मुक्त यौन-संबंध रहा होगा। वहां से यह विश्व के सभी द्वीपों और महाद्वीपों में बड़ी तीव्र गति से फैल गया। जब तक इसके बारे में पता चला, बहुत विलम्ब हो चुका था और लाखों लोग इससे प्रभावित हो चुके थे।

मुक्त यौन-संबंधों, समलैंगिक यौनाचार के अतिरिक्त एड्स दूषित रक्त के प्रयोग, नशे के लिए एक ही सूई के विभिन्न लोगों द्वारा प्रयोग से भी यह महामारी फैलती है। इस रोग से प्रभावित माता-पिता के बच्चे भी इस रोग को लिये हुए ही पैदा होते हैं। एड्स के विषाणु शरीर और रक्त में प्रवेश करके हमारे रक्त को विषाक्त और दूषित कर देते हैं जिससे हमारी महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रणाली नष्ट हो जाती है। सबसे खतरनाक बात यह है कि इन विषाणुओं के प्रभाव का शरीर में प्रवेश कर जाने के कई वर्षों बाद पता लगता है। इसका अर्थ यह है कि एड्स के स्पष्ट लक्ष्ण दिखाई देने में लगभग पांच वर्ष का समय लग जाता है। इस अवधि में प्रभावित व्यक्ति अनजाने में ही दूसरे लोगों में यह रोग फैलाता रहता है। कई मामलों में तो एड्स के स्पष्ट लक्ष्ण प्रकट होने में दस वर्ष तक का समय लग सकता है और इस लम्बी अवधि में यह रोग कई गुणा फैल सकता है।

जब इस एड्स का पता लगता है तब तक सर्वनाश हो चुका होता है और उपचार की कोई संभावना नहीं रह जाती। इसके परिणामस्वरूप दूसरी घातक बीमारियां जैसे टीबी, मलेरिया, डायरिया आदि भी आ घेरती हैं। अत: एड्स से पीड़ित व्यक्ति प्राय: एक एड्स से नहीं कई बीमारियों से ग्रसित पाया जाता है। इससे उपचार बहुत जटिल और महंगा हो जाता है। रोगी को प्रायः जीवनपर्यंत अनेक दवाइयां बहुत अधिक मात्रा में खानी पड़ती हैं। बीच में तनिक भी व्यवधान आने पर घातक परिणामों से बचना कठिन हो जाता है। अतः एड्स से पीड़ित व्यक्ति मानसिक दृष्टि से भी नितांत असहाय और पंगु हो जाता है। उसे हताशा और निराशा आ घेरती है। फिर ऐसे रोगी की सहायता, सेवा-सुश्रूषा के लिए भी कोई तैयार नहीं होता।

जानता है कि जैसे ही लोगों, सम्बन्धियों आदि को इस सत्य का पता लगेगा, वे उससे नफरत करने लगेंगे और उसके निकट नहीं आयेंगे। लोग सब तरह से उसका बहिष्कार कर देंगे। इस प्रकार इस रोग के सामाजिक, पारिवारिक तथा आर्थिक पहलू भी बड़े भंयकर हैं। एड्स को लेकर भ्रांतियां भी बहुत है। एड्स से प्रभारित मनुष्य से बातचीत करने, उसके साथ उठने-बैठने या हाथ मिलाने से यह रोग दूसरों में नहीं फैलता। एड्स के रोगियों में हताशा, निराशा और कुंठा के अतिरिक्त पाप भावना भी घर कर जाती है और कई बार एड्स का रोगी आत्महत्या भी कर लेता है।

एड्स के रोगी कई बार अनजाने में या फिर जान-बूझकर विवाह कर लेते हैं। या दूसरों से यौन संबंध स्थापित कर लेते हैं। वे सोचते हैं कि वे क्यों इन सुखों से वंचित रहें और इस तरह बीमारी के प्रचार-प्रसार में सक्रिय योगदान देते हैं। यह सब बडी विषम स्थितियां हैं और इन पर नियंत्रण पाना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।

एड्स जैसी घातक, दुखदाई, सर्वनाशक व भयंकर बीमारी दूसरी कोई नहीं है। इससे बचाव ही इसका एक मात्र उपाय है। तात्यर्प यह है कि इसे पैदा ही नहीं होने दिया जाए। जिसके लिए आवश्यक है कि सुरक्षित यौन संबंध हो, समलैंगिकता और नशों से बचा जाए। कभी रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़े तो पूरी तरह और जांचा-परखा, शुद्ध और एच-आई-वी मुक्त रक्त ही चढ़ाया जाए। अनजान व अनेक लोगों से सैक्स संबंध इस दृष्टि से सचमुच खतरनाक हैं। सावधानियों के साथ-साथ संयम इस मामले में बहुत आवश्यक है।

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