Essay on Sweet Speech in Hindi मधुर भाषण पर निबंध

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hindiinhindi Essay on Sweet Speech in Hindi

Essay on Sweet Speech in Hindi

भक्तिकाल के एक अत्यंत महान् नीति-कवि रहीम ने लिखा है:
‘ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।।
औरन को शीतल करें, आपहु शीतल होय॥”

अर्थात् मनुष्य को अपने जीवन में सदैव ऐसी ‘वाणी’ का प्रयोग करना चाहिए जिससे श्रीता का हृदय आनन्द से भर उठे। उसे अत्यंत सुखद अनुभव प्राप्त हो सके। साथ ही ऐसी वाणी उस वक्ता को भी आत्मसंतुष्टि प्रदान करती है जो उस का व्यवहार अपने जीवन में करता है। इसी के साथ यह मधुर वाणी सम्पूर्ण समाज को भी अतीव शीतलता प्रदान करती है। सम्पूर्ण समाज को, उसके सभी निवासियों को मधुर भाषा और वाणी का उपयोग करने का आह्वान करने वाले रहीम एकमात्र कवि नहीं हैं, अपितु सम्पूर्ण भारतीय-संस्कृति और साहित्य का कोना-कोना ऐसे असंख्य अमूल्य कवियों से भरा पड़ा है, जो मधुर भाषा और वाणी को हमेशा महत्व देते रहे हैं।

हम अपने आस-पास के परिवेश में वाणी के मधुर व्यवहार और उसके कठोर व्यवहार के उदाहरण निरन्तर देखते हैं। प्रायः हम सबने इस बात को अनुभव किया होगा कि हमारे आस-पास कुछ ऐसे लोग रहते हैं जिनसे समाज का हर छोटा-बड़ा आदमी हँसकर मिलता और उससे खुलकर बातचीत करता हैं। आपने कभी इसके कारणों का पता लगाने का प्रयास किया है, या फिर आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? वस्तुतः इसका कारण है उस व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त वह सरस, मधुर और मीठी वाणी, जिसकी महत्ता सदा-सर्वदा रही। है। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने ठीक ही लिखा है:

वशीकरण यह मन्त्र है, तज दे बचन कठोर।
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर॥”

अर्थात् अगर आप अपने आस-पास के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं, या यदि आप चाहते हैं कि सभी लोग आप से सहर्ष मिलें और बातचीत करें, तो इसका एक मात्र मंत्र है कि आप जिन कठोर शब्दों का व्यवहार अपने जीवन में नित करते हैं उन्हें तुरंत छोड़ दें। तुलसीदास के अनुसार, मधुर और मीठे वचनों के व्यवहार से चारों ओर सुख-वर्षण होता है। अर्थात् मधुर वचन समस्त समाज में सुख की सृष्टि करने वाले होते हैं। मनुष्य जब इस प्रकार की मधुर भाषा का व्यवहार करता है तो इससे व्यक्तियों में परस्पर प्रेम-भाव, श्रद्धा और विश्वास की मजबूत नींव निर्मित होती है। जो व्यक्ति इस प्रकार की मधुर वाणी का प्रयोग नित् अपने जीवन में करता है उस व्यक्ति के संपर्क और सहचर्य में जितने भी लोग आते हैं। वो सभी अनायास ही उसके सुशील व्यवहार से बँध जाते हैं। कौआ और कोयल रूप-रंग में प्रायः समान होते हैं। किन्तु वो दानों समान रूप से समाज के भाव और विचार को आकर्षित नहीं करते। इसका क्या कारण है? वस्तुतः इसका कारण है वाणी की मधुरता और उसकी कठोरता। एक तरफ कोयल जहाँ अपनी मधुर वाणी से प्रत्येक सहदय मनुष्य का ध्यान को अपनी ओर पूर्णतः आकर्षित कर लेने की क्षमता रखती है, वहीं अपने रूप-रंग में कोयल की समानता करते हुए भी, कौआ अपनी वाणी की कठोरता वश मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाता, साथ ही इसी कारण वह समाज की निन्दा और उपेक्षा का भी भागीदार बनता है। महात्मा तुलसीदास ने अपनी काव्य पंक्तियों में इसकी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार की है:

कागा काको धन हरै, कोयल का देत।
तुलसी मीठे वचन से, जग अपनो करि लेत॥”

अर्थात कोयल ऐसा क्या दे देती है कि लोग उससे स्नेह करने लगते हैं और कौआ हमसे क्या छीन लेता है जो हम उससे किंचित भी स्नेह नहीं करते। इसके माध्यम से कवि ने समाज को यह संदेश देने की चेष्टा की है कि जो मनुष्य अपने जीवन में सभी से स्नेह और मीठे शब्दों का व्यवहार करते हैं वे सम्पूर्ण समाज के लिए सदा-सदा के लिए आदर और स्नेह के पात्र हो जाते हैं।

हम लोगों ने भी अपने आस-पास के परिवेश में इस बात को भली-भांति अनुभव किया और देखा-समझा भी है कि जो मनुष्य नित्य-प्रति मधुर भाषण का व्यवहार करते हैं, उनकी ओर हम अनायास ही आकर्षित हो जाते हैं। यही है मधुर भाषण का परिणाम।

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