Essay on Truthfulness in Hindi सच्चरित्रता पर निबंध

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Essay on Truthfulness in Hindi

hindiinhindi Essay on Truthfulness in Hindi

सच्चरित्रता व्यक्ति के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। इसके साथ ही जीवन और समाज के नैतिक मूल्य भी व्यक्ति के चरित्र निर्माण में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। मानवीयता की सहज परिभाषा और पहचान समाज की परख-पहचान का मानदंड भी हुआ करती है। सच्चरित्रता व्यक्ति की हो, देश-समाज की हो, उसे महानता का लक्षण माना जाता है।

सच्चरित्रता तीन शब्दों और प्रत्यय के मेल से बना है सत्+चरित्र+ता। ‘सत्’ का अर्थ होता है अच्छाई, सज्जनता, साधुता, सच्चाई और उसके मार्ग पर चलना।’चरित्र’ शब्द का अर्थ होता है व्यक्ति का ऐसा व्यवहार जो उसके बाय स्वरुप के साथ-साथ आंतरिक निर्माण अथवा प्रवृत्तियों को भी समन्वित रूप से उजागर करने वाला हो। ‘ता’ प्रत्यय का प्रयोग एक विशेषण ‘सच्चरित्र’ को भाववाचक संज्ञा ‘सच्चरित्रता’ बनाने के लिए किया गया है। इस तरह कहा जा सकता है कि वास्तव में सच्चरित्रता एक अमूर्त भाव है, उसका अपना कोई स्पष्ट ‘मूर्त स्वरुप नहीं है। व्यक्ति के क्रियाकलाप से ही इस अमूर्त भाववाचक संज्ञा को मूर्त स्वरुप एवं आकार मिल पाता है। अर्थात व्यक्ति का ऐसा व्यवहार जो किसी को हानि नहीं पहुँचाता वरन् सभी का हर प्रकार से शुभ एवं हित करता है, जिसके लिए किसी तरह के गोपन अथवा मिथ्या भाषण की जरुरत नहीं होती, उसे सच्चरित्रता कहा जाता है। इस तरह के संयत व्यवहार वाले व्यक्ति को सच्चरित्र कहते हैं। सच्चरित्र व्यक्ति के क्रिया-कलाप और व्यवहार में सभी के हित का भाव स्पष्ट होता है। इसी वजह से सच्चरित्रता को मानवता का भूषण और सहज गौरव का विषय माना जाता है।

सच्चरित्र व्यक्ति से समाज में सभी लोग सहज ही प्रभावित हो जाते हैं। इस कारण सभी लोग उसका सम्मान तो करते ही हैं, उसकी हर बात पर यकीन भी करते हैं। उसके प्रत्येक क्रिया-कलाप को बड़े गौर से देखते और अनुभव करते हैं। बुरे-से-बुरा आदमी भी उससे प्रभावित हो मन-ही-मन सच्चरित्र व्यक्ति के प्रति एक सम्मान का भाव रखता है, उससे डरा भी करता है, यह एक सहज मनोवैज्ञानिक तथ्य है। इसी मनोवैज्ञानिक तथ्य के कारण ही सामान्यतः बुरा आदमी सच्चरित्र के सामने आने उसके सामने कुछ करने से यदि डरता नहीं तो झिझकता अवश्य है; ऐसा अपने अनुभव के आधार पर मनोवैज्ञानिकों का मानना और कहना है।

समाज व्यक्तियों का समूह है जो कि व्यक्ति एवं व्यक्तियों के व्यवहार से संचालित होता है। जिस समाज के सभी व्यक्ति चारित्रिक और नैतिक दृष्टि से परिपुष्ट, अच्छे एवं उन्नत होते हैं; वह सारा समाज स्वयं ही सच्चरित्रता के उच्च मूल्यों-मानों को स्थापित करने वाला होता है। जब समाज का जीवन सच्चरित्र एवं उच्च मूल्यों-मानों वाला बन जाता है, तब देश और राष्ट भी स्वत: ही वैसे बनकर संसार के सामने एक आदर्श स्थापित करने को सक्षम हो जाते हैं। प्राचीन काल में हमारा देश भारत जो विश्व गुरु कहलाने का गौरव प्राप्त कर सका था, उस का कारण उसकी सच्चरित्रता और महान मानवीय नैतिक मूल्यों की रक्षा कर पाने की क्षमता ही था। चारित्रिक-ह्रास ही क्रमश: हमारे देश पराधीनता और पतन का कारण बना। उसके बाद इस सत्य को समझ कर जब देश ने नैतिक मूल्यों और चरित्र-रक्षा का प्रयत्न आरंभ किया, तो उसे वह शक्ति प्राप्त हो सकी, जिसके बल पर एक बार फिर से देश को स्वतंत्र कराया जा सका।

इस तरह नैतिक मूल्यों-मानों के निर्वाह अर्थात् सच्चरित्रता की रक्षा का परिणाम स्पष्ट है; लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षों बाद से ही देशवासियों के चारित्रिक पतन का जो नया सिलसिला शुरु हुआ, वह फिर कहीं रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। आज पूरी व्यवस्था तक इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि चाह कर भी किसी व्यक्ति के लिए सच्चरित्र एवं सभी तरह के नैतिक मूल्यों से सम्पन्न बनकर रह पाना संभव नहीं रह गया। इसी कारण आज चारों तरफ मूल्यहीनता, आचार-विचार की भ्रष्टता का राज कायम है, जिसका दूर-दूर तक किनारा नहीं दीख पड़ रहा। आज के अराजकता पूर्ण वातावरण से छुटकारा पाने के लिए एक बार पुन: सहज मानवीय भावों, मूल्यों और चरित्र को जगाने की आवश्यकता है। इसके लिए हम सभी को एक साथ उठ खड़ा होना चाहिए।

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