Foreign Policy of India in Hindi

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Foreign Policy of India in Hindi

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अगस्त 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध पूरी तरह समाप्त हो गया था। लेकिन यह युद्ध विश्व को दो अलग-अलग खेमों में बाँटा गया था। पहला खेमा था पूँजीवादी विश्व का, जिसका अगुआ अमेरिका था। दूसरा खेमा था, साम्यवादी देशों का जिसका नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। इस अलगाववादी स्थिति ने तीसरे विश्व युद्ध की संभावना और शीत युद्ध को जन्म दिया। दो वर्ष बाद, अगस्त 1947 में भारत स्वाधीन हुआ। वर्षों की पराधीनता और आर्थिक शोषण ने देश को विपन्न बना दिया था। ऐसे में देश को एक सफल घरेलू नीति के साथ-साथ सार्थक और सकारात्मक विदेश नीति की ज़रूरत थी। देश किसी भी अनचाही परिस्थिति में पड़ने को तैयार नहीं था। इसी मनोदशा और विश्व परिदृश्य के चलते भारत ने तटस्थ नीति अपनाई।

अपने इस कदम से भारत नवं स्वतंत्र देशों के साथ-साथ पूँजीवादी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, साम्यवादी सोवियत संघ (अब रूस) और उसकी शासन पद्धति को मानने वाले देशों को शांति का संदेश भी देना चाहता था। इसी राष्ट्रनीति के चलते भारत ने पंचशील सिद्धांत और गुट-निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के नीति-निर्धारकों ने विश्व राजनीति की तत्कालीन संघर्षपूर्ण स्थिति के प्रति तटस्थ रहने का निश्चय किया। वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी भारत अपनी इसी नीति पर कायम है। तटस्थ नीति, भारत का समयोचित कदम था। जिसके अभाव में भारत का सामाजिक, आर्थिक विकास संभव नहीं था।

भारत ने अमेरिका और रूस के साथ संबंध स्थापित करने के साथ-साथ अन्य छोटे-छोटे राष्ट्रों के साथ भी मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित। ये संबंध देश के पुनर्निमाण और विकास के लिए आवश्यक थे। विश्व-बन्धुत्व की अपनी इसी भावना के कारण वह दो परस्पर विरोधी राष्ट्रों का तटस्थ मित्र बना हुआ है और उसे दोनों महा शक्तियों का विश्वास भी प्राप्त है। तटस्थता की नीति के संदर्भ में, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का कहना था:

“हमने तटस्थता की नीति न केवल इसलिए अपनाई है कि हम विश्व शांति के लिए उत्सुक हैं, बल्कि इसलिए भी की हम अपने देश की पृष्ठभूमि को नहीं भूल सकते। हमें विश्वास है कि आजकल की समस्याएँ शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाई जा सकती हैं। केवल युद्ध का न होना ही शांति नहीं है, बल्कि शान्ति एक मानसिक स्थिति है, जो आजकल के शीतयुद्ध जगत में नहीं पाई जाती। यदि युद्ध प्रारम्भ हो जाए तो हमे उसमें सम्मिलित नहीं होना चाहते। ऐसा हमने घोषित किया है क्योंकि हम शान्ति के क्षेत्र को विकसित और विस्तृत करना चाहते हैं।”

देश की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखते हुए उसे विकास पथ पर ले जाना देश की प्राथमिक आवश्यकता थी। अपनी इस तटस्थता की नीति को प्रसारित करने के उद्देश्य से पं जवाहर लाल नेहरू ने यगोस्लाविया के मार्शल टीटो और मिस्र के कमाल नासिर के साथ मिलकर गुट-निरपेक्ष आंदोलन का आरम्भ किया। वर्तमान में इसे सौ से अधिक देशों का समर्थन प्राप्त है। भारत का स्पष्ट विचार अपने साथ विश्व को शांतिमय और सुखमय बनाने का रहा है क्योंकि हमारा आदर्श है।

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग् भवेत्॥”

विश्व-बंधुत्व के अपने आदर्श के कारण भारत केवल अपनी ही शांति की चिंता नहीं करता वरन् पूरे विश्व में शांति और सुख देखना चाहता है। इसी विश्व-दृष्टि प्रतिफल तटस्थ-नीति का रूप सामने आता है, जो भारत का प्रासंगिक कदम था।

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