Essay on Inflation in Hindi महंगाई की समस्या पर निबंध

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hindiinhindi Essay on Inflation in Hindi

Essay on Inflation in Hindi

भारत एक बहुत प्राचीन, विशाल तथा महान देश है। जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। विश्व में हर छठा-सातवां व्यक्ति भारतीय है। लेकिन हमारे देश में अनेकों समस्याएं भी हैं और उनका विस्तार भी असाधारण। कभी तो लगता है जैसे भारत एक समस्याओं का ही देश है। गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई जैसी भीषण समस्याएं आज हमारे सामने हैं। महँगाई तो एक महामारी की तरह है जो सर्वत्र एक कोने से दूसरे कोने तक फैलती हैं। इसकी मार से कोई नहीं बचता। लेकिन निम्न तथा मध्यवर्ग के लोग इससे सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। महामारी की तरह महँगाई घातक तो नहीं होती और न प्राण लेती है परन्तु आर्थिक दृष्टि से लोगों को पंगु और असहाय अवश्य बना देती है।

महँगाई या निरन्तर मूल्यों में वृद्धि एक बड़े चिंता का विषय है। इसके प्रभाव से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। लोग निराशा और हताश के शिकार हो जाते हैं। परिणामतः जीवन सहज नहीं रह पाता और जीवन स्तर निरन्तर गिरता जाता है। भारत में जनसाधारण का जीवन स्तर अभी भी बहुत नीचा है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के 59 वर्षों के बाद भी इस में कोई वांछित सुधार नहीं हुआ है। देश की एक बहुत बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन-यापन कर रही है।

जीवन-उपयोगी आवश्यक वस्तुओं जैसे अनाज, ईंधन, कपड़े, मकान, उपचार की वस्तुएं, बिजली, पानी आदि की कीमतों में अत्याधिक वृद्धि ने सबको परेशान कर रखा है। इसकी कहीं कोई सीमा नहीं दिखाई देती। स्थिति ने एक भयावह मोड़ ले लिया तथा जन साधारण बहुत त्रस्त और व्याकुल दिखाई देता है। अतः यह अति आवश्यक है कि इस पर तुरन्त काबू पाया जाए और खाद्य-पदार्थों आदि के मूल्यों में वृद्धि को कारगर ढंग से नियंत्रित किया जाये।

मूल्यों में निरन्तर और तीव्र वृद्धि के अनेक स्पष्ट कारण हैं। इन कारणों की पहचान करके इनका निवारण आज एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। यदि समय रहते महँगाई को नहीं रोका गया तो इसके भीषण परिणाम हो सकते हैं। महँगाई उग्रवाद तथा आतंकवाद जैसी बुराइयों को प्रोत्साहन देती हैं। महँगाई का एक सबसे बड़ा कारण हमारी जनसंख्या है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरा देश है। अन्य विकासशील और विकसित राष्ट्रों की तुलना में हमारी जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इस जनसंख्या विस्फोट ने हमारी प्रगति, उन्नति और विकास की सभी योजनाओं को जैसे असफल कर दिया है।

जनसंख्या नियंत्रण के लिए हमें तुरन्त प्रभावी कदम उठाने चाहियें तथा कुछ कड़े निर्णय लेने से नहीं डरना चाहिए। हमें ‘‘एक युगल, एक बच्चा” का नियम अपनाना चाहिये तथा इस नियम का बड़ी सख्ती से पालन करना चाहिए। इस संदर्भ में हम चीन जैसे देश से बहुत कुछ सीख सकते हैं। परिवार नियोजन तथा परिवार कल्याण पर हमें विशेष ध्यान देना चाहिये। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे यहां समान नागरिक आचरण संहिता (यूनीफॉर्म सिविल कोड) नहीं है। अत: कुछ धर्म व सम्प्रदायों के लोग एक से अधिक विवाह करने को स्वतन्त्र हैं। परिणामत: वे अनेक बच्चों के माता-पिता बन रहे हैं। जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के अभाव में महँगाई, बेरोजगारी, भुखमरी जैसी समस्याओं पर विजय पाना बहुत मुश्किल है।

निरन्तर बढ़ती जनसंख्या के कारण मांग व आपूर्ति में संतुलन बिगड़ जाता है। वस्तुएं कम होती हैं और उनके ग्राहकों की संख्या बहुत अधिक। अत: वस्तुओं के दाम असाधारण रूप से बढ़ने लगते हैं। देश में संसाधन व प्राकृतिक स्रोत सीमित हैं। एक सीमा तक ही इसका दोहन किया जा सकता है। निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या के असाधारण दबाव से हमारी सारी व्यवस्थाएं चरमराने लगी हैं। आज भारत वर्ष की आबादी 100 करोड़ के लगभग हैं। यह विश्व का 16वां भाग है परन्तु हमारे पास धरती का मात्र 2-42 प्रतिशत भाग ही है। इससे समस्या की गंभीरता को सरलता से समझा जा सकता है। उचित संसाधनों के अभाव में अशांति, हिंसा, महँगाई जैसी समस्याओं का उग्र हो जाना स्वाभाविक ही है।

हमारी योजनाएं व्यावहारिक, संतुलित और शीघ्र परिणाम देने वाली होनी चाहियें। उन्हें भविष्य की आवश्यकताओं, उपलब्ध साधनों आदि को ध्यान में रख कर बनाया जाना चाहिये। किसानों, मजदूरों, खेतीहर, कामगरों, स्त्रियों आदि की उचित शिक्षा के अभाव में महँगाई पर रोक लगाना संभव नहीं दिखाई देता । शिक्षा के अभाव में बिचौलिये ग्रामीण जनता का निरन्तर शोषण करते रहते हैं। वे जमाखोरी पर वस्तुओं की कीमतें बढ़ाते रहते हैं। परिणामस्वरूप जनसामान्य और कमजोर वर्ग के लोगों का शोषण होता रहता है।

प्रशासन व व्यापारियों की मिलीभगत स्थिति को और भयावह बना देती है। मूल्य नियंत्रण की कई सरकारी योजनाएं तो बनती हैं पर भ्रष्ट सरकारी अफसरों व लालफीतेशाही के चलते उन पर अमल नहीं हो पाता। सरकार व प्रशासन को कड़े कदम उठाने चाहिये। सरकार को खुद को चाहिये कि वह अपने खर्चे पर नियंत्रण रखे और जनता के धन की बर्बादी न होने दे। किसी भी दफ्तर में चले जाओ, सभी लोग समान रूप से रिश्वतखोर और कामचोर मिलेंगे। घाटे में चलने वाले उपक्रमों, कारखानों आदि को तुरन्त बंद किया जाना चाहिए । सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या में कमी की जानी चाहिए तथा उनकी कार्यकुशलता बढ़ाकर जिम्मेदारी सुनिश्चित की जानी चाहिये।

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