नरक चतुर्दशी कहानी हिंदी में Narak Chaturdashi Story in Hindi

नरक चतुर्दशी कहानी हिंदी में Narak Chaturdashi Story in Hindi

नरक चतुर्दशी त्यौहार को छोटी दिवाली (दीपावली) भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी की कहानी नरकासुर पर आधारित है, जो बहुत ही लोकप्रिय और दिलचस्प कहानी है।

नरकासुर विष्णु अवतार और माँ भूदेवी से पैदा हुआ था। जब नरकासुर में राक्षस के संकेत साफ़ दिखाई दे रहे थे तब भूदेवी माँ को दर लग रहा था के भविष्य में भगवन विष्णु उसको मार डालेंगे। तो पृथ्वी माँ (भूदेवी) ने भगवन विष्णु से प्राथना की और उनके हाथो नरकासुर का वध न हो, ऐसा वचन लिया। तब भगवन विष्णु ने थोड़ी देर सोच कर खा “ढीक है, में तुमको एक वरदान देता हु के तुम्हारे इलावा कोई भी नरकासुर को मार नहीं सकता”। यह सुन कर पृथ्वी माँ बहुत खुश हो गयी क्योकि उन्हें विश्वास था कि अपने ही हाथो वो अपने ही बेटे को कभी भी मार नहीं सकती।

समय के साथ साथ नरकासुर बहुत ही शक्तिशाली होता गया। यहां तक कि देवता इन्दर भी नरकासुर के हाथों हार गया था। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। भगवान विष्णु ने उनको भरोसा दिलाया के नरकासुर का अंत जल्द ही होने वाला है। जल्द ही भगवान विष्णु “श्री कृष्ण” के रूप में और पृथ्वी माँ “सत्यभामा” के रूप में पैदा होने और इसी दौरान नरकासुर का अंत हो जाएगा।

दूसरी तरफ नरकासुर का अत्याचार ओर भी बढ़ गया और ऋषि मुनियो को सताने लगा। नरकासुर राजाओं को चुनोतियां देने लगा, ऐसे ही एक मौके पर उनका सामना खुद श्री कृष्ण से हुआ। श्रीकृष्ण को पता था कि नरकासुर की मृत्यु “पृथ्वी मां” का हाथ से ही होगा इसलिए सत्यभामा ने जब तक लड़ाई देखने की कामना की तो श्री कृष्ण ने उन्हें मना नहीं किया। श्रीकृष्ण और नरकासुर कि लड़ाई शुरू हुई। लड़ाई जमकर चली, थोड़ी देर के बाद नरकासुर ने श्रीकृष्ण को बेहोश कर दिया तब सत्यभामा खुद नरकासुर के आगे लड़ाई के लिए तैयार हो गयी। वह बड़ी हिम्मत से नरकासुर के साथ युद्ध करने लगी और अपने तीर को सीधा नरकासुर पर चलाया। अंत में नरकासुर को सत्यभामा के हाथों मरना ही पड़ा। इस दिन को “नरक-चतुर्दशी” कहा जाता है। अगले दिन लोगो ने दीप और पातको के साथ इस त्यौहार को मनाया।

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