Peace in Hindi Essay शांति पर निबंध

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hindiinhindi Peace in Hindi

Essay on Peace in Hindi

शांति: एक बहुमूल्य रत्न

पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “शांति एक बहुमूल्य रत्न है, और यह किसी भी विकास कार्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।” आज के परिवेश में विश्व में शांति को कायम रख पाना अत्यंत ही कठिन हो गया है। 21 वीं सदी के इस विश्व परिवेश में मानव जाति हर पल युद्ध, अथवा युद्ध की अफवाहों के काले साये से घिरी हुई है। यदि युद्ध अंतर्राष्ट्रीय जीवन का अभिन्न अंग बन जाता है, यदि हम ऐसे अत्यधिक भय और आतंक के माहौल में रहते हैं, तो निश्चित रूप से भविष्य में हमें हमेशा के लिए इसी भय ओर आतंक के काले साये के बीच रहने के लिए विवश होना पड़ेगा। युद्ध के द्वारा कभी भी हमारी समस्याओं का निराकरण नहीं हो सकता है। युद्ध एक राष्ट्र के लिए अकथनीय मानवीय त्रासदी का सिलसिला लेकर आता है।

आक्रामकता शांति के लिए सबसे अधिक खतरनाक है। विकासशील राष्ट्रों के लिए आक्रामक रूख उन्हे विकसित होने से पहले ही नष्ट कर देता है। किसी भी राष्ट्र के द्वारा किये जा रहे ऐसे किसी भी कार्य का अविलंब निरीक्षण किया जाना चाहिए जिससे शांति बनाए रखने में बाधा उत्पन्न होती हो। हमें पूरी तरह पूरी शांति कायम रखने के लिए राजनीतिक अधीनीकरण, जातीय असमानता, आर्थिक असमानता ओर गरीबी जैसी बुराइयों को दूर करना होगा। विश्व में कुछ राष्ट्रों के बीच आर्थिक मामलों को लेकर मतभेद पैदा हो गये हैं। सभी देश, गरीब और अमीर, दो भागों में बँट गये हैं। इसका एक प्रमुख उपचार समरसता बनाये रखना है, ताकि अमीर देशों से मतभेद न हों।

भारत सदैव से शांति और अहिंसा का पक्षधर रहा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण स्वतंत्रता के लिए किया गया हमारा संघर्ष है। भारत और पाकिस्तान के युद्ध को ताशकंद संधि के द्वारा समाप्त करना, भारत के अहिंसा नीति का एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह समस्याओं को हल करने का सभ्य तरीका है, और इससे कटुता अथवा वैमनस्य का अंत भी हो जाता है। तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से किया गया निदान और समझौता अथवा युद्ध भूमि में जीत तनावपूर्ण वातावरण पैदा करती है। ऐसे में पराजित देश के अंदर कुंठा की भावना उत्पन्न होती है, जिससे भविष्य में युद्ध की संभावना बनी रहती है। ऐसी जगहों पर पूर्ण रूप से शांति कायम हो पाना असंभव होता है। बुराइयों के समक्ष आत्म समर्पण करना गलत है। खास तौर पर वहाँ, जहाँ पर बुराइयाँ शुरुआती चरण में हो। राष्ट्रों को सदैव शांति और सौहार्द वातावरण बनाये रखना चाहिए तथा उन राष्ट्रों की तरफ भी दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए जो उनके विरुद्ध हैं।

आज के आधुनिक परिदृश्य में शांति और सौहार्द से जुड़ी समस्याएं कम नहीं हुई हैं, बल्कि यह विश्व समुदाय में और बढ़ी हैं। यह केवल एक वृहद चैतन्य समुदाय द्वारा स्थायी रूप से प्राप्त की जा सकती है। कुछ आधुनिक विचारक इस बात पर जोर देते हैं, लेकिन मनुष्य को परिवार से सामाजिक सामंजस्य बनाकर आगे की तरफ बढ़ना होता है। जैसे ही वह सफलता को प्राप्त कर लेता है वह एक अलग समुदाय से जुड़ जाता है। इसी तरह राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय समुदाय का भी निर्माण होता है।

हम अपने ऐतिहासिक समुदाय को उनके मुखिया के साथ देखते हैं कि कैसे बढ़ते-बढ़ते उन्होंने राष्ट्रीय समुदाय का रूप ले लिया। इससे इस बात का पता चलता है कि विश्व समुदाय का गठन राज्य की रचनात्मकता से अधिक संबंधित नहीं है। इस युग की विचारधारा ने विश्व समुदाय को पहले ही बहुत सीमित कर दिया है। हमें पूरी कर्मठता के साथ अंतर्राष्ट्रीय समझ विकसित करने में मदद करनी चाहिए, तथा इस कार्य में लगे हुए लोगों को भी सहयोग प्रदान करना चाहिए, जिससे पूरे विश्व में एक शांति और सौहार्द पूर्ण वातावरण तैयार किया जा सके।

सार्वजनिक विचारों और शिक्षा के माध्यम से लोगों में सही और गलत, अच्छे और बुरे को स्वीकार करने की क्षमता को अत्यधिक मजबूत और प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता है। यदि यह स्थायी रूप से लगातार प्रयोग में लाया जाता रहा तो निश्चित रूप से इस विश्व में शांति और सौहार्द पूर्ण वातावरण तैयार किया जा सकेगा। कोई भी जनसंचार का माध्यम, ईष्र्यालु संगठन और नकारात्मक विचारधारा से जुड़ने की सहमति प्रदान नहीं करेगा। इससे दूसरी तरह दो राष्ट्रों के बीच की आपसी समझ में विकास होगा। हमारी रुचियों को जितना संभव हो सके उतना दूर रखना चाहिए तथा ईष्र्या, द्वेष को भुलाकर प्रयत्नपूर्वक दोस्ताना सबसे के लिए प्रयास करने चाहिए। जितना ज्यादा संभव हो सके दूसरे राष्ट्रों के निजी मामलो में दखल अंदाजी नहीं की जानी चाहिए। विदेशी प्रत्यायोजकों से सम्मानपूर्ण व्यवहार के साथ मिलना चाहिए। वहां पर बहुत से अलग-अलग देशों के कलाकार, छात्र, वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर और खिलाड़ियों के लिए नि:शुल्क शिक्षा व्यवस्था भी की जाती है।

विश्व में कई समस्याएँ मानव जाति में विद्यमान असमानता के कारण उत्पन्न होती हैं। हमें सर्वप्रथम अपने राष्ट्र को महत्व देना चाहिए, उसके बाद किसी अन्य को। आज उपस्थित पीढ़ी निरुद्देश्य इधर-उधर भटक रही है, उसका कोई निश्चित उद्देश्य ही नहीं रह गया है। इससे न तो अंदरुनी और न ही बाहरी वातावरण में शांति पायी जा सकती है। ये स्वयं को कामुक कायों द्वारा संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं। ये लोग जीवन को खाली ओर व्यर्थ समझते हैं। और सदैव जीवन के विषय में नकारात्मक विचारों से ग्रसित रहते हैं लेकिन यह अंदर से जोश और आत्मविश्वास से परिपूर्ण है। इसके द्वारा सफलता अर्जित की जा सकती है। बुद्धिमान नवयुवक सदैव सकारात्मकता से परिपूर्ण होते हैं तथा वे ईश्वर में श्रदा रखते हैं। हमें अपनी आंखों पर से निराशा की काली चादर को हटा कर प्रकाश की तरफ अग्रसर होना चाहिए तथा अपनी जिम्मेदारियों का पूर्णरुप से निर्वहन करना चाहिए। युवापीढ़ी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। उसे नये जोश के साथ विश्व में शांति कायम करने की चुनौती को पूरी तरह से परास्त करना होगा।

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