Rohini Satellite in Hindi Essay with Images रोहिणी उपग्रह हिंदी में

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Rohini Satellite in Hindi

रोहिणी उपग्रह – महत्वपूर्ण उपलब्धि

भारतीय वैज्ञानिक इतिहास में सन् 1980 का दिन स्वर्णअक्षरों में लिखा रहेगा। यह भारतीय विज्ञान की अन्तरिक्ष विजय का दिन कहा जाएगा। यह एक ज्ञात तथ्य है कि भारत ने अपना वैज्ञानिक विकास करने की चेष्टाएं को आजादी के बाद से ही प्रारम्भ कर दी थी। भारत में वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास के लिए आयोगों की स्थापना की गयी थी। डॉ जहाँगीर भाभा का नाम इस संदर्भ में सदैव याद रखा जाएगा। सन् 1948 में परमाणु उर्जा आयोग की स्थापना की गई, जिसका प्रधान उद्देश्य भारत के वैज्ञानिक विकास की रूप-रेखा तैयार करना था। इस आयोग ने डॉ भाभा की अध्यक्षता में अपने इस कार्य-उद्देश्य को भलीभांति संपन्न भी किया था। ‘अन्तरिक्ष’ में अपनी शक्ति और भागीदारी को अत्यधिक बढ़ाना आज के समय में प्रत्येक देश के लिए पूर्णतः अनिवार्य सा हो गया है। कोई भी देश आज अपने राष्ट्रीय विकास को अन्तरिक्ष में अपनी शक्ति को बढ़ाए बिना, समुचित रूप से गतिशील नहीं कर सकता है। आज समाज अपनी बहतांश प्रोद्योगिकी आवश्यकताओं के लिए अन्तरिक्ष पर ही निर्भर हो गया है।

आज का समय भूमण्डलीकरण का समय है। इसे संचार-क्रांति का काल भी कहा जाता है। सूचना एवं संचार ही आज के समय की वह रीड़ की हड्डी है जिसके बल पर विश्व खड़ा हुआ है। आज हमारा विश्व जिस द्रूत गति से विकास की दिशाओं को निरन्तर तय करता जा रहा है, वह इसी क्रांति का परिणाम है । रेडियो, टी वी, इन्टरनेट जैसी आधुनिक सुविधाएं आज हमें उपग्रह प्रणाली से ही प्राप्त हो रही है। भारत ने इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को अपने प्रयासों से निरन्तर मजबूत और सुनिश्चित किया है, भारत इस क्षेत्र में आज भी अनेक प्रयोग कर रहा है। इन्सेट इस संदर्भ में भारत की उल्लेखनीय उपलब्धि कहा जा सकता है। किन्तु इसे नहीं भूला जा सकता कि भारत की समसामयिक अन्तरिक्ष उपलब्धियां जिस मूल आधार पर खड़ी हुई हैं, वह है सन् 1980 में किया गया भारत का ऐतिहासिक अनुसंधान कार्य। सन् 1980 से पूर्व भारत ने ‘आर्यभट्ट’ और ‘भास्कर’ नाम के उपग्रह अन्तरिक्ष कक्षा में स्थापित किए थे, जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिकता को महत्वपूर्ण रूप से विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। किन्तु इन उपलब्धियों का पूरा श्रेय भारत को प्राप्त नहीं हो सका था क्योंकि 1975 और 1979 में क्रमशः छोड़े गए उपर्युक्त दोनों उपग्रहों को रूस के स्थापित राकेटों की सहायता से अन्तरिक्ष कक्षा में छोड़ गया था। भारत के पास अपने यंत्र नहीं थे। इससे भारत को ये दोनों महान उपलब्धियाँ उन्हें पूरी संतुष्टि प्रदान नहीं करती थीं। किन्तु सन् 1980 में, ‘रोहिणी’ उपग्रह छोड़ा गया, वह पूर्णत: भारतीय कार्यक्षमता का परिणाम था। इस उपग्रह को जिस यान ‘एस।एल।बी-3’ की सहायता से अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था वह स्वदेशी था। इसने भारतीय गौरव को सम्पूर्ण विश्व में पूर्णतः स्थापित कर दिया। इससे भारत की वैज्ञानिक अनुसंधान की साख पूरे विश्व में स्थापित हो गयी।

18 जूलाई, 1980 को आन्ध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर स्थित श्रीहरिकोटा परीक्षण स्थल से, रोहिणी उपग्रह को करीब आठ बजकर चार मिनट पर अन्तरिक्ष में छोड़ा गया जो कुल 8 मिनट बाद अंतरिक्ष में स्थापित हो गया। रोहिणी उपग्रह का कुल भार 35 किलोग्राम था। जिस एस-एल-बी-3 यान के माध्यम से इसे सफलता पूर्वक अंतरिक्ष में छोड़ा गया था, उसकी गति 28 हजार मील प्रति घंटा थी। इस कार्य में जुटे वैज्ञानिकों ने अति हर्षित भाव से समस्त देशवासियों को यह शुभ सूचना दी कि राकेट एस-एल-वी-3 द्वारा रोहिणी उपग्रह पूर्णत: सफल रहा है।

इस उपग्रह का निर्माण विक्रम सारा भाई अंतरिक्ष केन्द्र में किया गया था। इससे पूर्व भारत को अपने उपग्रह निर्माण कार्यों के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। पर अब ऐसी स्थिति नहीं थी। भारत अपने अन्तरिक्ष कार्यों के लिए पूर्णत: आत्मनिर्भर था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री ने हर्षित होकर उस समय लोकसभा में कहा भी था- “कि मैं अपने वैज्ञानिकों तथा औद्योगिकों को इस सफलता पर बधाई देती हूँ। राष्ट्र को उन पर गर्व है। भविष्य में उन्हें ऐसी ही सफलता मिले, इसके लिए मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।” हम भी यह शुभेच्छा अपने हृदय में रखते हैं कि भारत अपने वैज्ञानिक विकास के मार्ग पर सदा द्रुत गति से आगे बढ़ता रहे।

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