Essay on Simple Living High Thinking in Hindi सादा जीवन उच्च विचार पर निबंध

Essay on Simple Living and High Thinking in Hindi (सादा जीवन उच्च विचार) for all students of class 1, 2, 3, 4, 5, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Most students find difficulty in writing essay on new topics but you don’t need to worry now. Read and write this essay in your own words. Read सादा जीवन उच्च विचार पर निबंध।

सादा जीवन उच्च विचार Simple Living High Thinking

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सादा जीवन उच्च विचार पर निबंध 200 Words

विचार – बिंदु – • भारत में सादा जीवन उच्च विचार का महत्त्व • महापुरुषों के उदाहरण • सरल मनुष्य सबके करीब और सबके लिए प्रिय।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जीवन का मूल सिद्धांत था – सादा जीवन : उच्च विचार। भारतीय संस्कृति इसी सिद्धांत पर टिकी हुई है। भारत में जिन्हें भी सम्मान दिया गया, वे उच्च विचारों वाले सरल-सीधे इनसान थे। बुद्ध ने महानता तब अर्जित की, जब राजपाट छोड़कर वनवासी हो गए। श्रीराम को भी महिमा तब मिली जब वे राजसी वैभव छोडकर कोल-भीलों से गले मिले। कृष्ण की महानता सुदामा से मैत्री निभाने में है और सरल-सीधी गोपियों के साथ रास रचाने में है।

वास्तव में सरल-सीधा इनसान मनुष्यता की सबसे ऊँची सीढ़ी पर होता है। वह सबके करीब होता है। उसके उच्च विचार उसे प्रिय बना देते हैं तो सादा जीवन उसे सबके लिए सुलभ बना देता है। आज भी जो चाहे, किसी साधु-संन्यासी, संत-महात्मा, कवि-लेखक से मिल सकता है। लोग ऐसे लोगों से मिलकर धन्य होते हैं। किंतु आप चाहकर भी फिल्मी सितारों, बड़े-बड़े राजनेताओं से नहीं मिल सकते। उनकी चकाचौंध मनुष्य की आँखों को चौंकाती तो है किंतु पास नहीं आने देती। इसलिए जीवन को सफल बनाना है तो इस मूलमंत्र की आराधना करो।

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सादा जीवन उच्च विचार पर निबंध 400 Words

कहावत प्रसिद्ध है – सादा जीवन का विचार, लेनी एक न देनी चार अर्थात् जो सादगी से जीवन जीना जानता है, अच्छे और ऊँचे विचार रखता है, उसे न तो किसी से कुछ लेना पड़ता है और न देने की नौबत आती है। उसकी इच्छाएं-आकांक्षाएं अपने आप ही सीमित हो जाती हैं। जब आवश्यकता से अधिक कुछ पाने की इच्छा ही नहीं, तो सभी प्रकार के सांसारिक झगड़े अपने-आप समाप्त हो जाते हैं। लड़ाई-झगड़ा करने की नौबत ही नहीं आ पाती। यही कारण है कि हर देश के महापुरुषों ने सादा जीवन, उच्च विचार की कहावत को मान और महत्त्व दिया है। इच्छाओं का विस्तार आदमी को स्वार्थी बना देता है।

स्वार्थी आदमी अपने स्वार्थों के आगे औरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता तक का ध्यान नहीं रखता। दूसरों के सहन करने की भी एक सीमा होती है। अन्य व्यक्तियों का सब्र जब सीमा को पार कर जाता है, तब स्वार्थियों की क्रिया होना स्वाभाविक हो जाता है। बस, यों समझिए कि संसार में छोटे-बड़े जितने भी लड़ाई-झगड़े और फसाद हुए या हो सकते हैं, उन सब की बुनियाद एकदम इसी प्रकार से होती है। ऐसे हानिकारक अवसर न आएं, मानवता विनाश से बची रहे, यही सब सोच-समझ कर जागरुक महापुरुषों ने सादगी और ऊँचे विचारों पर बल दिया है।

सादगी पसन्द व्यक्ति की इच्छाएँ बहुत सीमित, एकदम कम रह जाती है। वह थोडे में गुजारा कर लेने का आदि हो जाता है। इस प्रकार का अभ्यास पड़ जाने से व्यक्ति के विचार भी अपने-आप बदल जाते हैं क्योंकि उस का ध्यान फालतू बातों की तरफ नहीं जा पाता, अतः विचारों में भी किसी तरह का भड़काव नहीं आता। ऐसा व्यक्ति संसार के लिए कुछ कर भी कर सकता है। संसार के दु:खी और पीडित लोगों को कुछ भी दे सकता है। महात्मा टॉलस्टॉय, महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि महान् व्यक्तियों की जीवनियाँ और कार्य हमारे सामने हैं।

टॉलस्टॉय का जन्म एक बहुत बड़े जमींदार परिवार में हुआ था। लेकिन दुःखी मानवता के दु:ख ने उन्हें सब कुछ छोड़ कर उसकी सेवा में लग जाने को प्रेरित किया। आज सारी दुनिया महान् मानवतावादी कह कर उनके सामने नतमस्तक होती है। इसी प्रकार कौन नहीं जानता कि महात्मा गांधी धनी परिवार के और नामी-गिरामी वकील थे। चाहते तो लाखों-करोड़ों कमाकर आराम और विलासिता का जीवन जी सकते थे। पर नहीं, उनके विचार में जो सुख सादगी में हैं, जिस प्रकार की शान्ति मानवता का हित साधन करने वाले विचारों से मिल सकती है, वह सब विलासिता या भड़कीला जीवन व्यतीत करने में कहाँ मिल सकती है?

सादा जीवन उच्च विचार पर निबंध 800 Words

‘सादा जीवन, उच्च विचार’, यह सूक्ति जीवन के दो अलग तथ्यों, रूपों को प्रदर्शित करने वाली होते हुए भी मूलतः एक ही सत्य को स्वरूपाकार देने या उजागर करने वाली है। सादा जीवन उन्हीं का हुआ करता है कि जो उच्च विचारशील व्यक्ति हुआ करते हैं या फिर उच्च विचार वाले व्यक्ति ही सादगी का रहस्य पहचान कर जीवन के रहन-सहन, खान-पान, कार्य-पद्धति आदि को सादा बना कर व्यवहार किया करते हैं। ऐसा कर के वे संसार के लिए आदर्श तो स्थापित करते ही हैं, आदरणीय एवं चिस्मरणीय भी बन जाते हैं।

सूक्ति के पहले भाग यानि ‘सादा जीवन’ पर पहले विचार कर लेना अच्छा एवं उचित रहेगा। यदि आदमी अपने जीवन के प्रत्येक कर्म और व्यवहार में सादगी को अपना लेता है, तो उसके लिए स्वभावतः प्रत्येक हाल और परिस्थिति-पर्यावरण में जीना सहज हो जाया करता हैं। जीवन कठिन एवं समस्यापूर्ण नहीं लगा करता। किसी वस्तु के अभाव होने, दुष्प्राप्प होने पर सादा जीवन जीने वाले व्यक्ति के मन में कभी भी असहजता नहीं आती। उसे खिन्नता, निराशा या किसी तरह के पछतावे की भावना बौद्धिक-मानसिक स्तर पर कभी पीड़ित नहीं कर पाती। इसी तरह यह देख कर कि अन्य लोगों के पास तो यह वह सभी कुछ है उस के पास इस यह-वह का अभाव है, सादा जीवन जीने वाले व्यक्ति के मन में अपने प्रति धिक्कार का भाव नहीं जागा करता। किसी प्रकार की कोई हीनता की भावना भी मन-मस्तिष्क को आतंकित-उत्पीड़ित नहीं किए रहती। उस का जीवन सहज-सरल होकर सहज-सरल ढग से ही व्यतीत हो जाया करता है। इस ढंग से जीवन जी लेना यों तो हर युग में एक महान् उपलब्धि रही है; पर आज तो निश्चित तौर पर इसे एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कहा जाएगा।

सादा जीवन जीने पर विश्वास करने वाला व्यक्ति ईर्ष्या-द्वेष जैसे उन मनो-विकारो से भी बचा रहता है कि जिन्होंने आज पूरी मानवता को आक्रान्त कर रखा है। उन निहित-स्वार्थी से भी सादगी पसन्द आक्रान्त नहीं हुआ करता कि जो अनेक प्रकार के भ्रष्टाचारों के कारण बन कर केवल अपने प्रति ही नहीं, सारे विश्व की मानवता के प्रति हीन और आक्रामक बना दिया करते हैं। अपने और सारी मानवता के शत्र प्रमाणित हुआ करते हैं। इस प्रकार वह घृणित कार्य करने से बच जाता है। अमानवीय नहीं हो पाता। मानवता की कल्याण-कामना उसके मन से कभी भी मरती या समाप्त नहीं हो पाती जैसा कि महत्वांकाँक्षाओं से भरे फैशनेबल जीवन जीने के इच्छुक व्यक्तियों के मन से मर-खप कर समाप्त हो जाया करती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सादे जीवन का मानवीय मूल्यों की दृष्टि से बहुत अधिक महत्त्व है। इसीलिए हम प्रत्येक ज्ञानी सन्त के जीवन को एकदम सीधा-सादा पाते हैं। आधुनिक युग पुरुष महात्मा गान्धी से बढ़ कर सादगी का और अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है?

अब सूक्ति के दूसरे भाग ‘उच्च विचार’ पर विचार करें। उच्च यानि जीवन को सामान्य स्तर से कहीं ऊपर ले जाने वाले आदर्श विचार। बिना विचारों की उच्चता के न तो आदमी की आत्मा ही ऊँची उठ सकती है और न ही वह कोई ऊँचा या महत्त्वपूर्ण कर्म करने के लिए ही अनुप्राणित हो सकता है। उच्च विचारों से रहित व्यक्ति न तो स्वयं सामान्य स्तर से; साँसारिक ईर्ष्या-द्वेष, माया-मोह आदि के मनोविकारों और स्वार्थों से, दुनियावी झंझटों से छुटकारा पा सकता है और न ही इस प्रकार की बुराइयों से ग्रस्त लोगों के छुटकारे का कारण ही बन सकता है। वह छोटी चीज़ों और बातों के लिए स्वयं तो झगड़ता रहेगा ही, दूसरों को भी लड़ाता-भिड़ाता रहेगा। इसी कारण सन्तजन सादगी के साथ-साथ विचार भी उच्च बनाए रखने की बात कहा और प्रेरणा दिया करते हैं।

संसार ने आज तक आध्यात्मिक, भौतिक, वैज्ञानिक क्षेत्रों में जितनी और जिस प्रकार की भी प्रगति की हैं; वह उच्च विचार एवं धारणाएँ बना कर ही की है। धारणाओं और विचारों को उच्च बनाए बिना जीवन-संसार के छोटे-बड़े किसी भी तरह के किसी आदर्श को प्राप्त कर पाना कतई संभव नहीं हुआ करता । श्रेष्ठ एवं उच्च विचार होने पर सहज सामान्य को तो पाया ही जा सकता है। उच्च शिखर का लक्ष्य सामने रख कर चढ़ाई कर देने पर यदि उसे नहीं, तो उस से कम ऊँचे शिखर तक तो पहुँचा ही जा सकता है। इसलिए उन्नति और सफलता के इच्छुक व्यक्ति को अपनी चेतना को हीन भावों-विचारों से ग्रस्त कभी नहीं होने देना चाहिए।

इस प्रकार स्पष्ट है कि शीर्षक-सूक्ति के दोनों भाग ऊपर से अलग-अलग प्रतीत होते हए भी अपनी अन्तरात्मा में एक ही सत्य को निहित किए हुए हैं। वह सत्य केवल इतना और यही है कि जीवन में सादगी अपना कर ही उच्च विचार बनाए और पाए जा सकते हैं। विचारों की उच्चता पा लेने वाले व्यक्ति के पास सादगी स्वतः ही आ जाया करती है। इस प्रकार के सादगी और उच्च विचारों से सम्पन्न कर्मयोगियों ने ही संसार को भिन्न आध्यात्मिक एवं भौतिक क्षेत्रों में हई प्रगति के आदान दिए हैं। अतः सूक्ति में व्यक्त आदर्श को अपनाने में ही मानवता का सच्चा कल्याण अन्तर्निहित है।

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