United Nations in Hindi संयुक्त राष्ट्र संघ

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United Nations in Hindi

संयुक्त राष्ट्र संघ

संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन एक ऐतिहासिक अनिवार्यता थी। विश्व दो भयंकर विश्व युद्धों का आघात झेल चुका था। इन युद्धों का अनिष्टकारी प्रभाव प्रायः पूरे विश्व पर दिखाई पड़ रहा था। उस समय विश्व का हर मानव शांति के लिए आतुर रहा था। हर देश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से विश्व-शांति चाहता था और इसी का परिणाम था संयुक्त राष्ट्र संघ। संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसी संस्था है जिसमें राष्ट्रों का सम्मिलित योगदान, भागीदारी, प्रतिनिधित्व एवं निर्णयों की शक्ति होती है। इस शक्ति को ‘वीटो’ पावर का नाम दिया गया है। सन् 1944 के आस-पास से इस संस्था की रूपरेखा निर्मित होनी आरम्भ हो चुकी थी। इस रूपरेखा का प्रस्ताव ‘डेवरल ओक्स’ बैठक में हुआ, जिसमें अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन और चीन के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसके कुछ समय बाद 26 जून 1945 को औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हो गया, इस समय जिस चार्टर को सामने रखा गया उस पर 50 देशों ने हस्ताक्षर किये। इसके पूर्व फरवरी, 1945 में ‘माल्टा’ में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, सोवियत संघ के राष्ट्रपति जोसेफ स्टालिन ने भाग लिया था। इसमें सोवियत संघ, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन को सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के रूप में मान्यता प्रदान की गई। इस प्रकार इन देशों के पास ‘वीटो पावर आ गयी। इसी वर्ष 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणा पत्र भी अपने पूर्ण अस्तित्व में आ गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ एक वृहद संस्था है। इसके सदस्यों की संख्या 191 तक पहुंच गयी है। इस संस्था का गठन जिस समय किया गया था उस समय विश्व की स्थिति अत्यंत अस्त-व्यस्त और अशांतिमय स्थिति से गुजर रहा था। विश्व में चारों ओर भय और डर का भयावह वातावरण फैला हुआ था। अगर संक्षेप में कहा जाए तो कहा जा सकता है कि तत्कालीन समय में एकमात्र आकांक्षा विश्व शांति और अहिंसक व्यवस्था की आकांक्षा थी। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के मूल में इसी आकांक्षा को देखा जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का मूल उद्देश्य विश्व के देश के बीच तनाव को समाप्त करके विश्व शांति स्थापित करना है। संयुक्त राष्ट्र संघ इसी भूमिका को काफी लम्बे अरसे से निरन्तर निभाता आ रहा है। ‘परीक्षा मंचन’ नामक पत्रिका ने ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के क्रियात्मक स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है: “विश्व राजनीति की धुरियों को जोड़ने वाला, त्रस्त, पीड़ित मानवता का रहनुमा, बच्चे, युवकों, वृद्धों, महिलाओं, निराश्रितों, जातीय राष्ट्रों को धार्मिक विश्वासों, विस्थापितों, अस्वस्थों तथा विभिन्न अल्पसंख्यकों की दु:खभरी आवाज के प्रति सहानुभूति रखने वाला विश्व शांति के लिए, सुरक्षा तथा मानवता अधिकार का संरक्षक कहा जाने वाला संयुक्त राष्ट्र संघ ही है और संयुक्त राष्ट्र संघ घोषणा पत्र से स्पष्ट है कि वह विकसित-अविकसित, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, बड़ा-छोटा सबके साथ एक समान व्यवहार करेगा, कोई भेद-भाव नहीं होगा। इसी उद्देश्य से सम्पूर्ण विश्व की जनता उसकी तरफ देखती भी रही हैं। विश्व के 191 सदस्य देश अपनी समस्यायों के समाधान में उसके सहयोग की अपेक्षा भी करते हैं। वस्तुत: संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसी संस्था है जिसने विश्व को राजनैतिक रूप से नियंत्रण प्रदान किया है। इसको संयुक्त राष्ट्र संघ की अपरिमित भूमिका नहीं तो और क्या कहना चाहिए।

आज राष्ट्रों के क्षुद्र स्वार्थों और प्रतिस्पर्धाओं के चलते संयुक्त राष्ट्र संघ को अनेकानेक समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है। अमेरिकी प्रशासन भी इनके सामने समस्याएं खड़ा करने में पीछे नहीं है। किन्तु इस वास्तविकता से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज विश्व को ऐसी ही संस्था की आवश्यकता है जो संपूर्ण विश्व को एक-सूत्र में बाँध सके। आज आवश्यकता है कि विश्व को प्रत्येक राष्ट्र इस संस्था के व्यापक सबलीकरण में योगदान दे।

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संयुक्त राष्ट्र संघ : उद्देश्य और भूमिका

विश्व भर में शांति भंग का खतरा उत्पन्न होने की समस्या और उस समस्या से निजात पाने के लिए विश्व के प्रमुख राष्ट्रों ने मिलकर एक संघ का निर्माण किया। उसी संघ को संयुक्त राष्ट्र संघ का नाम दिया। बाद में विश्व के प्राय: सभी राष्ट्र इस संघ में शामिल हो गए। संयुक्त राष्ट्र संघ दो राष्ट्रों के बीच मध्यस्थता का काम करता है, ताकि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शांति बनी रहे। तथा सभी देश विकास करें, न कि युद्ध के चक्कर में फंसकर अपना नुकसान करें। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद दूसरे विश्व युद्ध भय सदा के लिए खत्म करने के उद्देश्य से लीग ऑफ नेशंस की स्थापना की गई। लेकिन सन् 1939 में जर्मनी के तानाशाह हिटलर तथा उनके साथियों ने द्वितीय विश्व युद्ध छेड़कर उसका महत्व समाप्त कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में अमेरिका ने जापान के दो महत्वपूर्ण शहरों – हिरोशिमा तथा नागासाकी – में परमाणु बम गिराकर जो तबाही मचाई आज भी इन शहरों में देखने को मिलता है। इस तरह की तबाही ने यह सोचने पर बाध्य कर दिया कि अगर इसी तरह युद्ध होते रहें तो मानवता ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रह पायेगी। अतः एक बार पुनः सभी राष्ट्रों के सहयोग से विश्व-शांति
और मानवता की रक्षा के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थपना की गई।

आज विश्व के प्राय: सभी देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं। अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने के लिए इसके अंतर्गत कई अन्य संस्थाए बनाई गई हैं, जिनमें प्रमुख हैं – सुरक्षापरिषद, महासभा, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय , खाद्य एवं कृषि संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतर्राष्ट्रीय पुननिर्माण एवं विकास बैंक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन। इन सबमें महासभा सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्था है, क्योंकि यह सभी देशों का प्रतिनिधित्व करती है। अंतर्राष्ट्रीय समस्या का अंतिम समाधान यही संस्था करती है। इसका अधिवेशन वर्ष में प्राय: एक बार होता है जिसमें सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष भाग लेते हैं। जरूरत पड़ने पर कई देशों के अनुरोध पर दूसरा-तीसरा अधिवेशन भी बुलाया जा सकता है। दूसरे अंग, सुरक्षा परिषद पांच विशेषाधिकार प्राप्त सदस्य देश हैं। 6 देशों के निर्वाचित प्रतिनिधि भी इसमें रहते हैं। इसके स्थायी सदस्य देश हैं – अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैण्ड, चीन, रूस। लेकिन विश्व के बदलते परिदृश्य के कारण इसके नियमित सदस्यों के बढ़ाए जाने का प्रयास चल रहा है। जापान, जर्मनी अथवा भारत इसके सदस्य बनाए जा सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ जब से अस्तित्व में आया है, तब से अभी तक कोई बड़ा युद्ध नहीं होने दिया है। लेकिन छोटे-छोटे युद्धों को रोकने में इसे सफलता नहीं मिली है। तीन बार तो भारत को ही पड़ोसियों के आक्रमण झेलने पड़े है। विश्व युद्ध न होने देना ही संयुक्त राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण सफलता है, हालाँकि कई मामलों में इसे असफलताओं का सामना भी करना पड़ा। आज तक जो भी राष्ट्र अपने मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में गया है उसे समस्या का कोई स्थायी हल नहीं मिल पाया है। सन् 1948 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू पाकिस्तानी आक्रमण का प्रश्न लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में गए थे, लेकिन पचपन-छप्पन वर्षों के बीत जाने पर भी, आज कश्मीर समस्या उसी प्रकार बनी हुई है।

मानना होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ पर अमेरिका का ही वर्चस्व रहा है। ‘वीटो’ के अधिकार को उपयोग करके अमेरिका ने हमेशा से ही अपनी मनमानी की है। वह चाहे इराक का मामला हो अथवा अफगानिस्तान का, उसने इन सब देशों पर आक्रमण करके अपनी मनमानी की। जब तक सोवियत संघ के रूप में एक अन्य विश्वशक्ति वहां मौजूद रही, कुछ संतुलन बना रहा, लेकिन सोवियत संघ का विघटन हो जाने के बाद तो अमेरिका ही सर्वेसर्वा हो गया तथा उसका वर्चस्व पूरी तरह से संयुक्त राष्ट्र संघ पर कायम हो गया।

वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ पर अमेरिका के वर्चस्व को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ठीक तरह से कार्य नहीं कर पा रहा है। हालांकि चीन, रूस अब भी कुछ बातों पर उन पर दबाव बनाए रखते हैं लेकिन इस समय अर्थव्यवस्था के स्तर पर वे अमेरिका की बराबरी नहीं कर पा रहे हैं। कुछ समय पूर्व भारत, रूस, चीन एक त्रिगुट बनाने की बात कर रहे थे लेकिन इसके पूर्ण रूप से अस्तित्व में आने से पहले ही यह केवल कागज पर ही रह गया। विश्व इस समय एक ध्रुवीय हो गया है और इससे असंतुलन को स्थिति बनी हुई है। ऐसे में अमेरिका का विकल्प तैयार करना बहुत जरूरी हो गयी है – चाहे उसमें एशिया के कुछ महवपूर्ण देशों को एक गुट ही बनाना पड़े। तभी संयुक्त राष्ट्र संघ ठीक तरह से काम कर सकेगा, तथा जो इसके संस्थापकों ने सोचा था वह पूर्ण हो सकेगा।

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संयुक्त राष्ट्र संघ

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे बड़ा योगदान संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के रूप में सामने आया। 24 अक्तूबर 1945 ई० को स्थापित इस विश्व संस्था का मुख्यालय उत्तरी अमेरिका के न्यूयार्क शहर में है। इस संस्था के गठन में अमरीका, रूस, इंग्लैंड, प्रांस, चीन आदि देशों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तब से लेकर अब तक इस संस्था के सदस्य देशों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है और दुनिया के प्राय: सभी देश आज इसके सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के अंगों में महासभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्, न्यास परिषद्, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय तथा सचिवालय का नाम प्रमुख है। इसकी कार्यपालिका को सुरक्षा परिषद् के नाम से जाना जाता है जिसके पांच स्थाई सदस्य अमरीका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन हैं। यह संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली अंग है तथा पांचों स्थाई सदस्यों को किसी भी मामले में वीटो का अधिकार प्राप्त है।

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय इसके सदस्यों की संख्या मात्र 50 थी जो आज बढ़कर लगभग 200 तक पहुँच गई है। यह तथ्य इस संस्था की बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण कहा जा सकता है। परन्तु इस संस्था की स्थापना से लेकर अब तक दुनिया में लगभग 50 युद्ध हो चुके हैं जो इसकी विफलता की कहानी को बयान करते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं शांति बनाए रखना है लेकिन आंकड़े कहते हैं कि विश्व के शक्तिशाली देशों ने संयुक्त राष्ट्र के मूल सिद्धान्तों की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हमारा देश आरम्भ से ही इस विश्व संस्था का सदस्य रहा है परन्तु आजादी के बाद हमने तीन बड़े युद्ध झेले हैं। जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो संयुक्त राष्ट्र कुछ न कर सका, सिवाय अपील करने के।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय से ही दुनिया पर शीत युद्ध की छाया पड़ने लगी। दुनिया के देश सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरीका के अघोषित झंडे तले लामबंद होने लगे। कई बार तो ऐसा लगा कि तीसरा प्रलयंकारी विश्व युद्ध होने ही वाला है परन्तु परमाणु अस्त्रों की उपलब्धता ने मानव समुदाय को ऐसा करने से रोके रखा। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् इसके मुख्य घटक रूस की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी और इस तरह शीत युद्ध का खतरा टला।

ऐसे एक नहीं कई उदाहरण मिल जाएंगे कि प्रभुत्व संपन्न राष्ट्रों ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ के सामूहिक उद्देश्यों को दरकिनार कर दिया और मनमाना आचरण किया। यही कारण है कि जब इस्राईल के विरुद्ध सुरक्षा परिषद् में कोई प्रस्ताव लाया जाता है तो अमरीका उस पर वीटो कर देता है। वर्तमान विश्व के लिए आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा बन गया है परन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ इस दिशा में कुछ भी कर पाने में असमर्थ दिखाई दे रहा है। विभिन्न राष्ट्र आतंकवाद से लड़ाई लड़ने के मामले में दोहरे मापदंड अपना रहे हैं। 11 सितम्बर सन् 2001 के दिन अमरीका पर जघन्य आतंकवादी हमले हुए तो अमरीका सहित दुनिया के देशों की नींद खुली। भारत में आतंकवाद बहुत पहले से अपना कहर ढा रहा है जो मुख्यत: पाकिस्तान के समर्थन का नतीजा है। लेकिन ब्रिटेन, अमरीका आदि देश भारत में फैले आतंकवाद को क्षेत्रीय समस्या मानकर भारत और पाकिस्तान दोनों की पीठ थपथपा रहे हैं जो इनकी तुष्टीकरण की नीति को बयान करता है।

इन जटिलताओं के बावजूद संयुक्त राष्ट्र की उपयोगिता भी है क्योंकि सामाजिक क्षेत्रों में इसने उल्लेखनीय कार्य किया है। राजनैतिक हल्कों में संयुक्त राष्ट्र संघ की राय उपयोगी मानी जाती है जो एक मापदंड का कार्य करती है। कई देशों की आंतरिक अशांति अथवा घरेलू विप्लव की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना ने उत्तम कार्य किया है। इसने विभिन्न राष्ट्रों की सेना की मदद से शांति और सुरक्षा के लिए कार्य किए हैं।

दूसरी ओर संसार भर के सांस्कृतिक धरोहरों की पहचान कर उनके रख-रखाव में अच्छा-खासा योगदान दिया है। कई देशों में कुपोषण से पीड़ित बच्चों की भी इस विश्व संस्था ने मदद की है। संयुक्त राष्ट्र संघ दुनिया के गरीब देशों में शिक्षा एवं स्वास्थ्य से संबंधित विशेष अभियान चलाकर एक तरह से सामाजिक समानता और उत्थान का कार्य करता है। सबके लिए स्वास्थ्य संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत जैसे देशों में बाल श्रम विरोधी अभियान चलाए हैं क्योंकि यह संस्था दुनिया के सभी बच्चों के कल्याण के प्रति समर्पित है। ये सभी कार्य संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी विभिन्न एजेंसियों की सहायता से करता है।

अत: कहा जा सकता है कि कई त्रुटियों के होते हुए भी वर्तमान विश्व के समक्ष संयुक्त राष्ट्र का कोई विकल्प नहीं है। यह संस्था अपने सदस्य देशों के आर्थिक एवं अन्य तरह के सहयोग से ही चलती है। अत: सदस्य देश जब तक इसे और सुदृढ़ नहीं बनाएंगे तब तक यह पंगु ही रहेगी। इसके ढांचे में सुधार की मांग भारत सहित दुनिया के कई देश लंबे अरसे से कर रहे हैं लेकिन अब तक इस और ध्यान नहीं दिया गया है। सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि अब आवश्यक हो गई है क्योंकि दुनिया पिछले 60 वर्षों में काफी बदल गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ को जितना प्रभावी बनाया जाएगा, उतना ही विश्व स्वयं को सुरक्षित अनुभव करेगा, इसमें कोई शक नहीं है।

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