Venkatraman Ramakrishnan in Hindi वेंकटरामन रामकृष्णन्

वेंकटरामन रामकृष्णन् – Venkatraman Ramakrishnan in Hindi. कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए वेंकटरामन रामकृष्णन् का जीवन परिचय हिंदी में। Venkatraman Ramakrishnan Biography in Hindi will teach you how to live life.

Venkatraman Ramakrishnan in Hindi

Venkatraman Ramakrishnan in Hindi
Venkatraman Ramakrishnan in Hindi – वेंकटरामन रामकृष्णन्

भारत को जीनियस लोगों का देश भी कहा जाता है। कला, विज्ञान, संस्कृति आदि सभी क्षेत्रों में यहाँ ऐसी होनहार प्रतिभाओं ने जन्म लिया है, जिन पर पूरी दुनिया को नाज़ है। ऐसी ही एक प्रतिभा हैं, वेंकटरामन रामकृष्णन्। वेंकटरामन एक जीववैज्ञानिक हैं, जिन्हें अपनी महत्त्वपूर्ण खोज के लिए 2009 के रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। तमिलनाडु राज्य के चिदंबरम कस्बे में 1952 में जन्मे वेंकटरामन को यह पुरस्कार कोशिका के अंदर प्रोटीन निर्माण करने वाले राइबोसोम की कार्यप्रणाली और संरचना के शानदार अध्ययन के लिए दिया गया है। इजराइली महिला वैज्ञानिक अदा योनोथ और अमेरिका के थॉमस स्टीज को भी संयुक्त रूप से इस सम्मान के लिए चुना गया है। तीनों वैज्ञानिकों ने तीन आयामों वाले चित्रों के जरिए दुनिया को समझाया कि किस तरह राइबोसोम अलग-अलग रसायनों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। इसके लिए उन्होंने एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी का सहारा लिया, जो राइबोसोम्ज की हजारों गुना बड़ी छवि सामने लाती है। ऐसा कर उन्होंने उन लाखों अणुओं में से प्रत्येक की स्थिति का पता लगाया, जो, राइबोसोम बनाते हैं।

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि राइबोसोम कैसे होते हैं और आणविक स्तर पर कैसे कार्य करते हैं। राइबोसोम्ज़ रासायनिक स्तर पर जीवन का निर्माण और नियंत्रण करते हैं। नए एंटीबायोटिक्स के लिए ये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। कई एंटीबायोटिक दवाएँ बैक्टीरियल राइबोसोम्ज़ की सक्रियता को खत्म करती हैं, जिससे कई बीमारियों का इलाज होता है। इस खोज से नई एंटीबायोटिक्स विकसित करने में खासी मदद मिली है।

वेंकटरामन सातवें भारतीय हैं, जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु के चिदंबरम में ही हुई। इसके बाद उन्होंने 1971 में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक स्तर तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद अमेरिका के ओहियो विश्वविद्यालय में शोध-कार्य करना प्रारंभ किया और 1976 में उन्हें पी-एच०डी० की डिग्री प्राप्त हुई।

नोबेल पुरस्कार के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपने सहयोगियों, छात्रों और शोधार्थियों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में काम करने के लिए सहभागिता महत्त्वपूर्ण है, इसलिए यह पुरस्कार केवल उनका नहीं, उनका सहयोग करने वाले हर व्यक्ति का है।

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