Vigyan Ke Badhte Charan Par Nibandh विज्ञान प्रगति के सोपान अथवा विज्ञान के बढ़ते चरण पर निबंध हिंदी में

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Vigyan Ke Badhte Charan Par Nibandh – विज्ञान के बढ़ते चरण पर निबंध

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Vigyan Ke Badhte Charan Par Nibandh 2000 Words

भूमिका

परिवर्तनशील विश्व में नवीनता का स्वागत होता है तथा प्राचीनता को त्याग दिया जाता है। नवीनता सदैव ही त्याज्य नहीं। परन्तु समय की शक्ति के सम्मुख मनुष्य विवश और असहाय हो जाता है। नवीनता को अपनाने के कई कारण और विवशताएं भी होती हैं। परिवर्तन के इस क्रम को जयशंकर प्रसाद के शब्दों में देखा जा सकता है –
“पुरातनता का यह निर्मोक सहन करती ने प्रकृति पल एक।
नित्य नूतनता का आनन्द किए हैं परिवर्तन में टेक॥”

बीसवीं शती में वैज्ञानिक उन्नति

बीसवीं सदी ने वैज्ञानिक प्रगति के क्षेत्र में युग को ही बदल दिया है। यह सत्य है कि यदि धरती पर सौ वर्ष पहले का कोई व्यक्ति आ जाए तो वह धरती को, इस की जीवन-पद्धति को तथा यहीं के विश्वास को समझ न पायेगा। प्राचीन काल में मनुष्य प्रकृति से डर कर उसकी पूजा किया करता था लेकिन आज विज्ञान ने उसके भय को ही दूर नहीं किया अपितु उसे प्रकृति पर नियन्त्रण करने के लिए और अपने ही अनुकूल बदलने के लिए भी बाध्य कर दिया है। रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में –
“यह मनुज ब्राह्मण्ड का सबसे सुरम्य प्रकाश,
कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश।
यह मनुज जिसकी शिखा अछाम।
कर रहे जिसको चराचर भक्ति युक्त प्रणाम।

अर्थात् मनुष्य ने किसी सीमा तक प्रकृति के चक्र में भी परिवर्तन कर दिया है तथा उसके सभी रहस्यों को अनावृत कर दिया है।

विज्ञान : विनाश और निर्माण

विज्ञान के ये बढ़ते हुए चरण जहां मानव के लिए सुखकर हैं, उसे सुविधा प्रदान करते हैं, उसके कष्टों का निराकरण करते हैं, वहां 20वीं शताब्दी में हुई यह विज्ञान की प्रगति मानव को आतंकित भी कर रही है। विज्ञान के इन संहारक तत्त्वों से ऐसा लगता है जैसे विश्व विनाश के कगार पर आ खड़ा हो। बस एक धक्के की जरूरत है। कहीं बमों की होड़ चल रही है, कहीं संहारक अस्त्रों की दौड़ लगी हुई है। वैसे विश्व का हर देश चाहता है कि युद्ध की विभीषिका से बचे। फिर भी अभिमान में अन्धे हुए देश कभी-कभी उलझ ही पड़ते हैं। कभी चीन भारत की ओर आंखें उठाता है, तो कभी पाकिस्तान आंखें दिखाता है। कुछ वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और ईराक के मध्य भीषण युद्ध भी हुआ। भीषण युद्ध का परिणाम चारों तरफ बरबादी ही बरबादी। शहरों के शहर बरबाद हो गए थे। ईरान और ईराक के मध्य भीषण युद्ध भी हुआ। वियतनाम की बात तो बहुत पुरानी हो चली है। विश्व के किसी भी कोने में दो देश लड़ते हैं तो विश्व की शान्ति को खतरा हो जाता है। विज्ञान के संहारक तत्त्वों की विभीषिका का भय सबके हृदय में है। विज्ञान के ये बढ़ते हुए चरण जहां उन्नति की ओर जा रहे हैं, मानवहित और मानव कल्याण का चिन्तन कर रहे हैं, वहाँ उसे विनाश के कगार पर भी खड़ा कर रहे हैं।

प्रगति के सोपान

यातायात के साधनों को ही लीजिए। पहले मनुष्य ने गाड़ी का आविष्कार किया। गाड़ी में भी कुछ समय अधिक लगता हुआ अखरा, इसलिए पहले मोटर फिर कार और हवाई जहाज आदि का क्रमशः आविष्कार होता गया। अब तो इस तरह के हवाई जहाज़ बन रहे हैं जो वज़न में बहहुत हल्के होंगे, अपने मकान की छत से उड़ाए जा सकते होंगे और हर तरह की सुविधा रहेगी। आवाज़ से भी तेज चलने वाले राकेट हैं। इस तरह यातायात के साधनों में विज्ञान नए से नए चमत्कार दिखा रहा है।

वैज्ञानिक उन्नति को देख कर कवि कहता है –
आज की दुनिया विचित्र नवीन।
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरष आसीन।
है बंधे नर के करों में वारि, विद्युत भाप।
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान।
लांध सकता नर, सरित-गिरि-सिन्धु एक समान ॥

चिकित्सा क्षेत्र में भी विज्ञान ने आज के युग में काफी प्रगति की है। पहले किसी को फोड़ा या फुन्सी हो जाती थी तो डॉक्टर के पास उसे ले जाते। रोगी चिल्लाने लगता, पर अब रोग के सहज निदान आविष्कार चल पड़े हैं। ऐक्सरे का आविष्कार अब पुराना हो चुका है। अब एक ऐसी गोली का आविष्कार हुआ है जो रोगी के पेट में उतार दी जाती है। शरीर के जिस भाग में रोग हो, गोली वहीं जाकर टिक जाती है। डॉक्टर प्रकाश से उसी स्थान को देखता है। रोग का निदान करता है और फिर गोली को मल द्वारा बाहर निकाल देता है। अभी एक नया आविष्कार हुआ है। बैटरी के बल्ब के समान एक छोटा-सा बल्ब होता है, उस के साथ बैटरी जैसे ही सैल लगे होते हैं। डॉक्टर रोगी के मुंह में उसे लगाता है। अनुभूति वैसी होती है जैसे बैटरी को मुंह में डाल रहे हों। स्विच ऑन करके भीतरी एक-एक नाड़ी को देखता है। इस यन्त्र का प्रकाश बहत तेज़ होता है। विभिन्न प्रकार के ‘एक्स-रे’ के द्वारा मानव के आंतरिक अंगों का अध्ययन सुगमता से किया जा सकता है तथा रोग का कारण भली-भांति समझा जा सकता है।

पहले रोगी के इलाज के लिए औषधियां चलती थीं। पर अब्र विद्युत् शक्ति का प्रयोग भी किया जाता है। हल्के पागलपन को दूर करने के लिए दिमाग में विद्युत् शक्ति का प्रयोग किया जाता है। धीरे-धीरे वह पागलपन ठीक हो जाता है। और तो और जिसे हृदय का रोग हो, उसका हृदय बदला जा सकता है। अनेक ऐसे सफल प्रयोग हुए हैं कि एक व्यक्ति का हृदय निकाल कर उसमें नकली हृदय डाला गया और वह बहुत देर तक जीवित रहा। वैज्ञानिक यन्त्रों में प्लास्टिक से भी काफी काम लिया गया है। एक व्यक्ति के शरीर में प्लास्टिक का हृदय डाला गया और वैज्ञानिक यन्त्रों से उसे हृदय स्थल पर ठीक तरह से सैट कर दिया। उस में वैसी ही संवेदनशीलता थी जैसी कि असली हृदय में होती है। युद्ध के क्षेत्र में काफ़ी सामग्री प्लास्टिक की बन रही है। अन्तरिक्षीय उड़ान में भी प्लास्टिक का बड़ा महत्त्व है। अनेक उपकरण प्लास्टिक से बनाये गए हैं।

फेफड़े की टी.वी. और कैंसर के रोग भी अब ठीक होने लगे हैं। आंखों की पुतलियों पर ऐसे ‘कांटैक्ट लैंस’ चिपको जाते हैं जो बुरे भी नहीं लगते और आंख झपकने में भारी भी मालूम नहीं होते। कुरूप को सुरूप भी विज्ञान द्वारा बनाया जा सकता है। शरीर की त्वचा को सफेद करना तथा भद्दे अंग को प्लास्टिक सर्जरी द्वारा ठीक कर देना, यह आज के युग में विज्ञान का अद्भुत चमत्कार है। इस तरह मनुष्य रोगों की चिकित्सा के लिए भी नए-नए आविष्कार चले हैं।

सन्तान के क्षेत्र में भी विज्ञान के नए चमत्कार हैं। पुरूष और स्त्री के संयोग के बिना ही विज्ञान की सहायता से सन्तान पैदा की जा चुकी है। पशुओं पर यह प्रयोग बहुत सफल रहा है। अच्छी नसल के पशु पैदा करने के लिए बुरी नसल के मादा पशुओं की अच्छी नसल के नर पशुओं के इन्जेक्षन से गर्भाधान कराते हैं और देखा गया है कि बलवान् पशु पैदा हुए हैं। ऐसे ही स्त्रियों के भी बच्चे हो सकते हैं। परखनली शिशु को वैज्ञानिकों ने जन्म दे दिया है। जुलाई 1979 में इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने यह अद्भुत अविश्वसनीय चमत्कार कर दिखाया। आज डॉ. हरगोबिन्द खुराना जैसे वैज्ञानिक ‘जीन्स’ के सम्बन्ध में खोज कर रहे हैं जिनसे मनचाही सन्तान उत्पन्न की जा सकती है। वंश परम्परा से उत्पन्न रोगों को दूर करने में भी उनके प्रयोग सहायक होंगे।

आज हमारे दैनिक जीवन की आवश्यकता केवल विज्ञान ही पूरी करता है। प्रातः काल उठते ही दांत साफ करने के लिए ब्रुश और पेस्ट का प्रयोग करना तथा रात्रि को सोने तक प्रयोग में आने वाले साधन किसी न किसी रूप में विज्ञान से जुड़े हैं। घर में विद्युत के बिना क्या कुछ कार्य सम्भव है? फ्रिज हो या पंखे, कपड़े धोने की मशीन हो या बाल सुखाने की मशीन, मिक्सी हो या चूल्हा, पिसाई की मशीने हो या बुनने की, रेशमी वस्त्र हों या टेरालीन के, सभी विज्ञान की ही देन है और उनके बिना आज जीवन की कल्पना असम्भव सी लगती है।

विज्ञान ने खेती-बाड़ी में भी अभूतपूर्व उन्नति की है। पहले किसान स्वयं हल जोतते, भूमि-संशोधन करते, बीज डालते, पानी सींचते अर्थात् सब काम खुद करते थे। फिर भी फसल का झाड़ बहुत अधिक नहीं होता था। पर अब विज्ञान के यन्त्रों के कारण सब काम मशीनरी से होता है। बुवाई से लेकर जुताई, गुड़ाई, कटाई, निराई, यहां तक बोरे भरना और उन्हें ट्रकों पर रखना, यह सब काम मशीनरी करती है और झाड़ भी बहुत होता है। रूस ने तो विज्ञान के आविष्कारों से मौसम को भी बदल दिया है। जैसी इच्छा हो वैसा मौसम बन लेना अर्थात् समयानुसार गर्मी और वर्षा पैदा कर लेना, ये विज्ञान के अद्भुत चमत्कार है। अब तो बन्द कमरों में खेती आरम्भ हो गई है। कुछ प्रयोग ऐसे भी हो चुके हैं कि जिनके माध्यम से भूमि के बिना अनाज पैदा किया गया है। ऐसा जल में आवश्यक उर्वरकों को डालकर हो सकता है। अन्तरिक्ष की खोज में विज्ञान ने बड़ा ही प्रयास किया है। मनुष्य कई बार चन्द्रमा के तल पर उतर चुका है। मंगल ग्रह तक मनुष्य द्वारा बनाये राकेट पहुंच चुके हैं। अन्तरिक्ष के शून्य वातावरम में मनुष्य तैर चुका है। वह दिन दूर नहीं जब मनुष्य चन्द्रमा के अतिरिक्त सौर-परिवार के अन्य ग्रहों तक भी पहुंच सकेगा। आज विज्ञान ने मनुष्य को स्रष्टा के आसन पर बिठाने का प्रयास किया है।

मनोरंजन के क्षेत्र में भी विज्ञान ने अद्भुत प्रगति की है। पहले ग्रामोफोन चला करता था, फिर आकाशवाणी का प्रचलन हुआ। टैलीविज़न की बात भी बहुत पुरानी हो गई है। अब तो एक ऐसा यन्त्र चल पड़ा है जो ग्रामोफोन की शक्ल का है। 12 इंच के व्यास का यन्त्र जो लगातार 20 मिनट तक मनोरंजन कर सकता है। कभी-कभी हम किसी अच्छे मनुष्य के विचारों को मरने के बाद भी सुनना चाहते हैं। पहले हमारी यह लालसा पूर्ण न हो पाती थी पर अब तो टेप-रिकार्डर के आविष्कार ने हमारी यह इच्छा भी पूर्ण कर दी और हम अच्छे नेताओं के मरने के बाद भी उनके अच्छे भाषण सुन सकते हैं। आज विज्ञान की नई प्रगति ने मंगल, चन्द्र आदि ग्रहों के मार्ग की खोज भी कर ली है और इन पर पहुंचने की मनुष्य की इच्छा बलवती हो रही है। चन्द्र पर तो मानव पहुंच गया है।

सन् 1997 में मानव की विजय-यात्रा मंगल ग्रह तक भी पहुंच गई है, अमेरिका ने ‘पाथ फाइंडर’ को मंगल ग्रह पर उतार दिया है जोकि उस ग्रह का अध्ययन कर उसकी समस्त गतिविधियों को निरंतर धरती तक भेजता जा रहा है। रूस का भेजा अंतरिक्षयान जो मानव रहित है। अनेक वर्षों से स्टेशन बना कर अंतरिक्ष में स्थित होकर अध्ययन से आँकड़े भेज रहा है। संचार के क्षेत्र में आज मोबाइलफोन तथा पेजर नवीन उपलब्धियाँ हैं।

कंप्यूटर की अद्धभुत खोज ने आँकड़ों की सुरक्षा को विश्वसनीय बना दिया है। प्रत्येक क्षेत्र की सभी सूचनाएँ उसमें सुरक्षित रहती हैं। इससे कार्यालय के कार्यों में तीव्रता और अधिक विश्वसनीयता आई है। ऊर्जा के क्षेत्र में अब सौर ऊर्जा, तरंगीय ऊर्जा आदि नवीन प्रयोगों से ऊर्जा की समस्या से सफलतापूर्वक निबटने के प्रयास हो रहे हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में मानव मस्तिक और आंतरिक धमनियों, शिराओं का विवेचन किया जा रहा है। आज संपूर्ण जीवन ही विज्ञान से भावित एवं लाभन्वित है।

उपसंहार

अब विज्ञान के संदर्भ में अविश्वास करना व्यर्थ है। अत: इस सत्य को स्वीकार करना ही बुद्धिमानी है। परन्तु इस सम्बन्ध में भी यह सोचना आवश्यक है कि विज्ञान मानव के कल्याण के लिए हो। उसकी अनन्त वरदायिनी शोध मानव जाति को निर्धनता तथा रोगों से मुक्ति दे। उसके मारक शस्त्र विश्व को रेगिस्तान में बदल सकते हैं तथा जीवनहीन बना सकते हैं। विनाश के इन पक्षों से मनुष्य यदि दूर रह सके तब ही विज्ञान वरदायी हो सकेगा।

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