यदि मै सैनिक होता पर निबंध Agar Main Sainik Hota Essay in Hindi – If I was a Soldier

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agar main sainik hota essay in hindi

यदि मै सैनिक होता पर निबंध

यदि मै सैनिक होता पर निबंध 800 Words

पता नहीं क्यों, जब मैं बहुत छोटा था और मैंने पहली बार एक वर्दीधारी सिपाही को देखा था, तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा था। जाने-अनजाने तभी मेरे मन-मस्तिष्क में यह इच्छा पैदा हो गई थी कि मैं भी यह वर्दी धारण कर इसी की तरह रोब-दाब वाला दिखाई दूंगा। बनूँगा, तो सिपाही ही बनूँगा। फिर मैं जैसे-जैसे बड़ा होता गया, सिपाही और उसके कार्यों के प्रति मेरी जानकारी भी बढ़ती गई। कुछ और बड़ा होने पर जब मैं अपने घर से बाहर आनेजाने लगा, पढ़ाई करते हुए नौवीं-दसवीं कक्षा का छात्र बना; तब सिपाहियों का आम लोगों के साथ किया जाने वाला व्यवहार मुझे चौंका देता। मैंने पुस्तकों में पढ़ा-सुना तो यह था कि पुलिस के वर्दीधारी सिपाही जनता और उसके धन-माल की सुरक्षा के लिए होते हैं। लोगों को अन्याय-अत्याचार से बचाने के लिए इस महकमें का गठन और सिपाहियों को भर्ती कराया जाता है। लेकिन ये तो अपने वास्तविक कर्त्तव्य और उद्देश्य को भूल कर उलटे आम जनता पर अत्याचार करते हैं। लूट-खसोट में भागीदारी निभाते, रिश्वत लेते और भ्रष्टाचारी अराजक-असामाजिक तत्त्वों का साथ देकर उन्हें सज़ा दिलाने के स्थान पर उन का बचाव करते हैं। यह सब देख-सुन कर मन खट्टा हो कर भय-विस्मय से भर उठता है। सोचता हूँ कि जहाँ रक्षक ही भक्षक बन रहा है, इस देश का क्या होगा? तब साथ ही मेरे मन में एकाएक यह विचार भी अंगड़ाई लेकर जाग उठा करता है कि यदि मैं सिपाही होता, तो-?

सचमुच, यदि मैं सिपाही होता तो यह बनने के उद्देश्य की रक्षा करने के लिए सभी तरह के निश्चित-निर्धारित कर्त्तव्यों का पूरी तरह से पालन करता। वर्दी की हर तरह से प्रयत्न करके लाज बचाता और जन-सुरक्षा का जो सिपाही का प्रमुख कर्त्तव्य होता है, प्राण-पण की बाजी लगा कर भी उसका सही ढंग से निर्वाह करता। जिन के साथ किसी तरह का अन्याय हो रहा है, अत्याचार किया जा रहा है, उन सब की रक्षा के लिए, उन्हें न्याय दिलवाने के लिए सीना तान कर खड़ा हो जाता। अन्यायियों-अत्याचारियों के कदम कहीं और कभी भी एक क्षण के लिए भी टिकने न देता। आज पुलिस के सिपाहियों पर काहिली, दुर्घटना को देख कर भी अनदेखा करने, अराजक-असामाजिक तत्त्वों का बचाव करने, बात-बेबात में घूस लेने, कर्तव्य से कोताई करने जैसे जो तरह-तरह के दोषारोपण किए जाते हैं, निरन्तर प्रयत्न करके मैं इन सभी तरह के आरोपों और बुराइयों-दोषों का निराकरण कर देता।

आज व्यापक और व्यावहारिक जीवन-समाज में अन्य कई प्रकार की बुराइयाँ बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। लूट-पाट, मार-पीट, काला बाज़ार और सामान्य-सी बात पर मार-पीट हो जाने, गोली-लाठी चल जाने, घातक छुरेबाजी और चोरी-चकारी का बाज़ार चारों तरफ गर्म है। लोग यह बात उचित ही मानते और कहा करते हैं कि यदि देश की पुलिस ईमानदार हो, तो यह सब हो ही नहीं सकता। अक्सर यह सही दोषारोपण भी किया जाता है कि इस तरह के सभी कुकृत्य पुलिस-सिपाहियों की मिलीभगत से, उनकी आँख के नीचे ही किये जाते हैं। यदि मैं सिपाही होता, तो अपनी कर्तव्यपरायणता से, अपनी लगन और परिश्रम से पुलिस पर लगने वाले इस तरह के सभी धब्बों को धोकर साफ़ करने का प्रयास करता । जीवन और समाज में पनप रहीं सभी तरह की बुराइयों के विरुद्ध जहाँ तक और जिस प्रकार भी सम्भव हो पाता, अपनी सामर्थ्य के अनुसार खुला संघर्ष छेड़ देता।

मैं तो जानता और समाचारपत्रों में अक्सर पढ़ता भी रहता हूँ कि आज देश में चारों ओर चोरी-छिपे नशाखोरी तो बढ़ ही गई है, नशीले पदार्थों का धंधा भी खूब ज़ोर-शोर से फलफूल रहा है। अवैध और जहरीली शराब खुले आम बिक कर, ज़हर साबित होकर बेचारे गरीबों की जान ले रही है। शराब-माफिया राजनीतिज्ञों और पुलिस वालों का संरक्षण प्राप्त करके ही यह जानलेवा ज़हर का धंधा निरन्तर चल रहा है। ज़हरीली शराब पीकर मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। दूसरी ओर स्मैक, ब्राउन शूगर, हशीश जैसे प्राणघातक नशीले पदार्थों की बिक्री भी चल रही है और निस्संदेह प्रसिद्ध और राजनीतिज्ञों की हट पर संरक्षण पाकर चल रही है। यह जानकर ही खुले घूमने वाले मौत के इन व्यापारियों पर कोई हाथ नहीं डालता; लेकिन यदि मैं सिपाही होता, तो यह जानते हुए भी कि इतनी बड़ी पुलिस-व्यवस्था के सागर में, भ्रष्टाचार के उमड़ते सैलाब में सिपाही होने के कारण मेरी हस्ती एक नन्ही-सी बूँद के बराबर भी नहीं, इस तरह की सभी बुराइयों, छोटे-बड़े सभी तत्त्वों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा देता और सिद्ध कर देता कि सभी को एक-जैसा समझना उचित कार्य नहीं है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि मेरा मन इस प्रकार की बुराइयों, उनके साथ जुड़े लोगों की बातें सुन कर भर उठता है। भभक कर दहक उठता है। यह देखकर दुःख से भर उठता है कि सब-कुछ जानते-समझते हुए भी समर्थ लोग मचल मार कर अपनी ही मौज-मस्ती में मग्न हैं। यह ठीक है कि मेरे अकेले के करने से कुछ विशेष हो नहीं पाता; लेकिन यदि मैं सिपाही होता, तो अपने कर्तव्यनिष्ठ संघर्ष से एक बार सभी की नींद तो अवश्य ही हराम कर देता – काश! मैं सिपाही होता।

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