Essay on Autumn Season in Hindi शरद ऋतु पर निबंध

Today we are sharing essay on Autumn Season in Hindi शरद ऋतु पर निबंध (Sharad Ritu par Nibandh). Read शरद ऋतु पर निबंध essay on Autumn Season in Hindi.

Essay on Autumn Season in Hindi शरद ऋतु पर निबंध

Essay on Autumn Season in Hindi

प्राकृतिक दृष्टि से भारत का विशेष महत्त्व है। प्रकृति ने इसे हर तरीके से सजाया-संवारा है। वैसे तो भारत में ऋतु-चक्र के अनुसार क्रम से छ: ऋतुओं का आना-जाना होता है। ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा और वर्षा ऋतु का अंत होने के साथ-ही साथ भारत में सुहावनी शरद् ऋतु का आगमन हो जाता है। अपने सुहावनेपन और सुंदरता के कारण शरद् को भारतीय मनीषियों ने ‘ऋतुओं की रानी’ कह कर संबोधित किया है। हिंदी महीनों के हिसाब से आश्विन-कार्तिक मास और अंग्रेजी महीनों के हिसाब से अक्तूबर-नवम्बर मास को शरद् ऋतु माना जाता है। हम सभी जानते और महसूस करते हैं, कि इन दिनों में वर्षा का प्रकोप समाप्त हो कर वातावरण धीरे-धीरे साफ होकर निखर आता है। वर्षा ऋतु की उमस का अंत हो जाता है और पूरा वातावरण गुलाबी ठंडक से परिपूर्ण हो उठता है। दिन का तापमान जरूर कुछ कम पसंद आता है; पर सुबह, शाम और रातें क्रमश: ठंडी-से-ठंडी होती जाती हैं।

शरद् ऋतु के प्रभाव से वर्षा ऋतु से होने वाला कीचड़ और उसका प्रभाव भी समाप्त होकर पूरा वातावरण पहले निर्गध एवं स्वच्छ हो जाता है। फिर प्रकृति में नव खिलाव और विकास होने के कारण वायुमंडल और निर्गंध वातावरण भीनी, मधुर सुगंध से भरकर महक जाता है। मजा यह है कि इस समूचे परिवर्तन का प्रत्यक्ष अथवा स्पष्ट रूप से कतई कोई अहसास नहीं हो पाता। एकाएक मंद सुगंध को ढोती हवा बह कर अहसास दिला जाती है कि ऋतुओं की रानी शरद् का आगमन हो गया है। फल-फूलों से लदे वृक्षों की घनी डालियों पर मदमाते स्वरों में चहक कर विहगगण भी अचानक ऋत-बदलाव का एहसास करा देते हैं।

शरद् ऋतु का स्वच्छ आकाश धुल कर जैसे किसी सुंदरी का गहरा नीला सितारों जड़ा कोमल-कांत आँचल सा प्रतीत होने लगता है। अंधेरी निशा में तारों से आच्छादित नीला और सघनाता आकाश कई बार मन-मस्तिष्क में एक तरह का अलक्षित-सा भय का भाव भी भर देता है। दिन में आकाश पर उड़ते हुए पंक्तिबद्ध खंजन पक्षियों के झुण्ड और उनके कलरव बड़े ही मधुर और सुहावने प्रतीत होते हैं। कभी-कभी सफेद पड़े बादलों के टुकड़े भी फिर आकर गरज तो जरूर उठते हैं; पर बरसने के लिए उनके पास पानी बिल्कुल भी नहीं रहता। ऐसे बादलों की तुलना ओछे आदमियों से करते हुए रहीम जी ने कहा है:

“छूछे बादल कवार के ज्यों रहीम भहरात।”

शरद् ऋतु में समस्त दिशाएँ भी नहाई-धोई, साफ-सुथरी नव वधुओं के समान मुस्कराती एवं उजली हुई स्पष्ट होती हैं। नदी-नालों के आस पास कास के लंबे-श्वेत पुष्प, खिलकर-गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में- वर्षा ऋतु का बुढ़ापा प्रस्तुत करने लगते हैं। गोस्वामी जी ने ऐसे दृश्य देखकर उचित ही लिखा है:
“फूले कास सकल मही छाई। जनु वर्षा कृत प्रगट बुढाई।”

शरद् ऋतु की चाँदनी का तो क्या कहना। हर भाषा के महान् कवयिों और लेखकों ने हमेशा इस चाँदनी का खुलकर बखान किया है। इसे अमृत वर्षा करने वाली बताया है। लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि शरद् पूर्णिमा की रात में खीर पकाकर छत पर खुले में रात भर के लिए छोड़ देते हैं और सुबह उठकर यह मान कर खाते हैं कि वह अमृतमय हो गई है। इन दिनों कई तरह के रोगों का इलाज करने का भी प्रचलन देते है। सरोवरों में खिले कुमुद और कमल प्राकृतिक वातावरण को एक नया रूप देते हैं। सरोवरों, नदियों का पानी तक शरद के प्रभाव से एकदम स्व्च्छ होकर दर्पण सा उज्जवल दिखाई देने लगता है।

भारत में शरद ऋतु का आध्यात्मिक महत्त्व भी स्वीकार किया जाता है। वह यह कि इस ऋतु के कार्तिक महीने में लोग प्रतिदिन सुबह उठकर नजदीकी सरोवरों, नदियों आदि में स्नान करते हैं। उसके पश्चात मन्दिर अथवा उपलब्ध धार्मिक स्थलों पर जाकर भजन-कीर्तन करते हैं। बहुत से लोग महीना भर व्रत उपवास करने, फलाहार करने के नियम का पालन भी करते हैं। शरद् पूर्णिमा का स्नान करने के लिए लोग हरिद्वार, गंगासागर, गढ़गंगा अथवा जहाँ कहीं भी जिस रूप में गंगा उपलब्ध है, उसमें स्नान करके अपने आप को धन्य करते हैं। इस ऋतु में, विशेपकर कार्तिक महीने में, दान-पुण्य करने को भी अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। इस प्रकार यह ऋतु आध्यात्मिक और पवित्र सिद्धि देने वाली भी है।

इन सारे विवेचनों से स्पष्ट है कि प्राकृतिक, आध्यात्मिक एवं सौंदर्य-वैभव, हर नजरिये से शरद ऋतु को ‘ऋतुओं की रानी’ ऊचित ही कहा जाता है। दीपावली का पावन पर्व भी अधिकांशतः इसी ऋतु में आता है। शरद् ऋतु की आयु में जैसे-जैसे वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे शीत ऋतु उसकी उँगली पकड़ कर ठुमक-ठुमक चलती हुई मानव जीवन के आंगन में प्रवेश करने लगती है। कहा जा सकता है कि शरद् ऋतु का आगमन शीत ऋतु के आने अथवा अपने घर से आने के लिए चल पड़ने का अलार्म भी है। यही मानकर लोग प्राय: शरद् का सुख भोगते हुए शीत के स्वागत की तैयारी करने लगते हैं।

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