बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय Bura Jo Dekhan Main Chala Bura Na Milya Koi

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Bura Jo Dekhan Main Chala Bura na milya koi

Bura Jo Dekhan Main Chala Bura Na Milya Koi

Bura Jo Dekhan Main Chala Bura Na Milya Koi 800 Words

अच्छा और बुरा, जीवन और समाज के प्रत्येक व्यक्ति के ये दो रूप या पक्ष हुआ करते हैं। यह भी एक तथ्य है कि प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर देवता और राक्षस का यानि कि अच्छाई एवं बुराई का समानान्तर पर अधिवास हुआ करता है। कब देवता अथवा राक्षस जाग कुछ-कुछ अच्छा-बुरा कर दे; कहा नहीं जा सकता। जहाँ तक आदमी के आम स्वभाव का प्रश्न है, हर आदमी अपनी बड़ी-से-बड़ी बुराई की तरफ ध्यान न दे दूसरों की सामान्य-से-सामान्य बुराई पर नक्ताचीनी करता रहता है। कहावत भी है न, आदमी को अपनी आँख का शहतीर नजर नहीं आता, जबकि दूसरे की आँख में पड़ा तिनका तक वह देख और ढूँढ लिया करता है। लेकिन यदि मनष्य अपनी आँख में गढ़े शहतीर मात्र को देखने लगे, यानि सभी लोग अपनी बुराइयाँ खोज कर उन्हें दूर कर लें, तो निस्सन्देह जीवन स्वर्ग-सा सुखदायक बन जाएगा।

वास्तव में जिस व्यक्ति के अपने भीतर बुराई रहा करती है, उसे सारा संसार बुरा दीख पडता है। ठीक यह बात उक्त व्यक्ति के बारे में भी सत्य है। इसलिए आदमी की पहली आवश्यकता है अपने भीतर की बुराई दूर करे, फिर दूसरों की बुराइयों की तरफ ध्यान दे। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर ही सत्य के शोधक और मानवता के उच्च भाव के आराधक कविवर सन्त कबीर ने अपने अनुभव के आधार पर कहाः
“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलयो कोय।
जो दिल खोजों आपुना, मुझ-सा बुरा न होय।।

अर्थात जब मैं संसार में बुरे स्वभाव वाले प्राणियों को खोजने चला, तो मुझे कहीं एक भी व्यक्ति बरा दिखाई न दिया। इसके बाद जब मैंने अपने भीतर बराई की खोज आरम्भ की, तो पाया कि वास्तव में इस संसार में मुझ से बढ़ कर बुरा व्यक्ति और कोई नहीं है। स्पष्ट है कि कबीर जैसे सन्त और सत्य के उपासक ने ऐसा कह कर हमें आत्मविश्लेषण करने की प्रेरणा दी है। इस ओर संकेत किया है कि व्यक्ति को अपनी वास्तविकता जान कर ही दूसरों की अच्छाई-बुराई की खोज या विश्लेषण करना चाहिए। दूसरे शब्दों में कुछ कहने-करने का अधिकारी बनने के बाद ही दूसरों से कुछ कहना या कोई व्यवहार करना चाहिए। अंग्रेजी में भी एक कहावत है – ‘First deserve then desire’ अर्थात् कोई माँग रखने या करने से पहले यह देख-परख लेना जरूरी है कि हम उसके या वैसा सब करने के योग्य भी हैं कि नहीं।

इस तरह आत्मविश्लेषण करने का सन्देश ही शीर्षक सूक्ति का मूल सार एवं तत्त्व है। इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं कि आत्मविश्लेषण द्वारा ही अपने तथा जीवन-संसार में सभी के तथ्य या सत्य को पाया जा सकता है। यदि हम स्वयं अच्छे हैं, तो सारा संसार अच्छा है, यद्यपि आज के माँस-मज्जा तक गलत हो चुके संसार में इस तरह के कथनों को सत्य नहीं कहा जा सकता; फिर भी यह तथ्य है कि बुरे-से-बुरा व्यक्ति भी किसी अच्छे पर हाथ डालने से पहले एक बार नहीं सौ-सौ बार सोचा करता है। इस क्रिया-प्रक्रिया से अच्छाई को कुछ तो प्रश्रय मिलता ही है। बुराई पर भी थोड़ा बहुत नियंत्रण तो लगा ही करता है या कुछ देर के लिए ही सही, नियंत्रण लगता ही है। महापुरुषों का कथन है कि कोई महान् उपलब्धि यदि क्षण भर के लिए भी बनी रह पाती है, तो निश्चय ही वह क्षण महान् रेखांकित किया जा सकता है। इसीलिए कवि ने अपने भीतर उतरने, अपने भीतर झाँकने और अपने अच्छे-बुरे रूप का विवेचन-विश्लेषण करने की प्रेरणा प्रदान की है।

मोती पाने के लिए सागर की गहराई में उतरना आवश्यक है। किनारे पर बैठे रहकर या तटस्थ बने रह जीवन-सागर के भीतर का यथार्थ नहीं पाया जा सकता। बैठे रह कर मंज़िल को अपने पास भी नहीं बुलाया जा सकता। उसके लिए चलना, प्रयत्न करना परम आवश्यक हुआ करता है। उसी प्रकार वास्तविक अच्छाई या बुराई, अच्छा या बुरा कौन एवं क्या है, अपने-आप को केन्द्र में रख कर ही यह सही रूप में जाना-परखा जा सकता है। इस तथ्य को उजागर करने के लिए ही कबीर जैसे सन्त स्वभाव और नितान्त अच्छे व्यक्ति ने अपने-आप को सर्वाधिक बुरा कहने का साहस किया है-ऐसा साहस कि जैसा हमारे जैसे तथाकथित सभ्य, सुशिक्षित, पण्डित एवं ज्ञानी व्यक्ति कभी नहीं कर सकते। कोई कबीर-सा मरजीवा ही कर सकता है। हाँ, हम लोग कम-से-कम उस का निहितार्थ तो समझ ही सकते हैं। समझ कर उसमें बताई राह पर चलने का प्रयास भी अवश्य कर सकते हैं।

अन्त में निष्कर्ष यही है कि यदि जीवन के सत्य के दर्शन करने हैं, यथार्थ को पहचानना और पाना है, तो उसके लिए सब से पहले अपने भीतर उतरो । गहरे में झाँक कर देखो। आत्म-रूप एवं तत्त्व को पहचानने-पाने का प्रयास करो। तब यदि औरों को, दुनिया वालों को कुछ कहने, कोई मार्ग दिखाने का प्रयास करोगे, तो उसका प्रभाव भी अवश्य पडेगा। बिना आत्मविश्लेषण और आत्मशुद्धि किए संसार को सुधारने के सारे प्रयास एकदम व्यर्थ साबित होंगे, यह तथ्य पत्थर पर खिंची लकीर है।

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