Desh Prem Essay in Hindi देश प्रेम पर निबंध

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Desh Prem Essay in Hindi

Desh Prem Essay in Hindi देश प्रेम पर निबंध

Desh Prem Essay in Hindi 500 Words

देश-प्रेम ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी’ के अनुसार माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं। जिस देश में हमारा जन्म हुआ है, जिसकी धरती से उत्पन्न हुए अन्न को खाकर हम शारीरिक दृष्टि से हष्ट-पुष्ट हुए हैं, जहां की पवित्र नदियों का अमृत के समान पवित्र और शीतल जल पीकर हमें तृप्ति मिली है, जहां की शीतल, मंद और सुगन्धित वायु हमारी प्राणवायु में निहित है और जिस वसुधा पर गृह-निर्माण कर हम समस्त सुखों का उपभोग कर रहे हैं, उस देश के कण-कण से, उसके प्रत्येक जीव एवं उसकी प्रत्येक वस्तु के प्रति हमारा अनंत प्रेम होना स्वाभाविक ही है। मैथिलीशरण गुप्त ने तो स्वदेश प्रेम से रहित हृदय वाले व्यक्ति को पत्थर की संज्ञा देते हुए उसे निरे पशु के समान माना है,

‘जिनमें न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं नर-पशु निरा, और मृतक-समान है।

केवल इतना ही नहीं, वे तो यहां तक लिखते हैं कि

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।’

संस्कृत और हिन्दी के कवियों ने ही नहीं, अंग्रेजी के कवियों ने भी स्वदेश-प्रेम की महानता को स्वीकार किया है। नायन हेल की इस पंक्ति में उनके देश-प्रेम की सुंदर एवं पवित्र भावना देखी जा सकती है –

‘मुझे दुख है कि मैं केवल एक बार जीवन को स्वदेश पर अर्पित कर सकता हूं।’

मनुष्य के हृदय में स्वदेश के प्रति प्रेम होना स्वाभाविक ही है। मनुष्य ही क्या, पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों में भी यह पावन प्रवृत्ति देखी जा सकती है। पक्षी परे दिन कोसों तक घमकर सायंकाल अपने नीड़ों में लौटते हैं। पेड़-पौधे भी अपनी जन्मभूमि में जितने फलते-फूलते हैं, वैसे किसी अन्य स्थल पर नहीं। उदाहरण के लिए-कश्मीर में उत्पन्न होने वाला सेब विश्व में अन्यन्त्र कहीं वैसा उत्पन्न नहीं हो सकता। दिनकर की ‘देश-प्रेम’ कविता की कुछ पंक्तियों में इसके दर्शन किये जा सकते हैं,

‘हिमवासी जो हिम में तम में,
जीता है नित कांप-कांप कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृभूमि से।

जिस देश के वासी स्वदेश की उन्नति में ही अपनी उन्नति देखते हैं, ऐसे देश की उन्नति ही संभव हो सकती है। वर्तमान समय में विदेशों में दृष्टिगोचर होने वाली उन्नति देश-प्रेम के परिणामस्वरूप ही दिखाई देती है। इसके विपरीत, भारतवर्ष की अवनति का मूल कारण भारतवासियों में देश-प्रेम का अभाव है। हमारे देश के लिए यह लज्जा की बात है कि कोई व्यक्ति देश-हित के लिए स्व.हित की बलि नहीं दे सकता।

संसार के प्रत्येक देश में समय-समय पर देश-प्रेमी जन्म लेते रहे हैं। भारत का इतिहास तो देश-प्रेम की कथाओं से भरा पड़ा है। शिवाजी, राणाप्रताप, लक्ष्मीबाई, भगतसिंह, सुभाष चन्द्रबोस, रामप्रसाद बिस्मिल आदि देश-प्रेमियों को विस्मृत नहीं किया जा सकता है। इन महान आत्माओं की त्याग-भावना के परिणामस्वरूप ही देश की स्थिति में परिवर्तन हो सका है। हम भारतवासियों के हृदय में देश-प्रेम की भावना को कूट-कूट कर भरने वाले इन सभी देश-प्रेमियों का स्वागत करते हैं।

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