Essay on Festivals of India in Hindi भारत के पर्व और त्यौहार पर निबंध

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Essay on Festivals of India in Hindi 700 Words

भारतीय पर्व एवं त्योहार

भारत विभिन्नताओं एवं विविधताओं से समृद्ध राष्ट्र है। यहाँ कई जातियाँ, धर्म, सभ्यता और संस्कृतियाँ राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ मिलकर रह रही हैं। सभी को अपने-अपने विश्वासों के साथ जीने-मरने, साधनों और शक्ति के तहत कार्य करने की पूर्ण आजादी है। इस रंग-बिरंगी विभिन्नता के साथ-साथ यहाँ पर विविध तरह के त्योहार भी मनाए जाते हैं। परिणाम, यहाँ का हर दिन-वार किसी न किसी त्योहार जैसा ही गुजरा करता है। धर्म, जाति, सभ्यता और संस्कृति की विविधता के कारण भारत में मनाए जाने वाले पर्वो, त्योहारों में विविधता तो है ही, भूगोल और प्रकृति ने भी इस धराधाम को विभिन्नता और विविधता प्रदान कर दी है। इस वजह से भी यहाँ के त्योहारों-पर्वो के रूप-रंग में विभिन्नता और विविधता आ गई है।

ऊपर के विश्लेषण से स्पष्ट है कि कई तरह के कारणों ने भारतवर्ष को तमाम पर्वो-त्योहारों वाला राष्ट्र बना दिया है। जो हो, उन सभी तरह के त्योहारों-पर्वो को प्रमुख रूप से निम्न तीन खंडो में विभक्त किया जाता है:
1 राष्ट्रीय तयोहार एवं पर्व: स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, शिक्षक दिवस, गांधी जयंती, शहीद दिवस, झंडा दिवस, बाल दिवस आदि सभी त्योहार एवं पर्व राष्ट्रीय त्योहार या पर्व कहे जाते है। भारतवर्ष के सभी धर्मों, जातियों, वर्गों, आदि के लोग बिना किसी भेदभाव के इन सभी त्योहारों को मिलकर मनाया करते हैं।
2 ऋतु से संबंधित त्योहार: भारतवर्ष में बहुत से त्योहार इस तरह बड़े हर्मोल्लास से मनाए जाते हैं जिनका संबंध ऋतु-विशेष से होता है। शरदोत्सव, वसंतोत्सव अथवा वैशाखी, कौमुदी महोत्सव, फाग अथवा होली आदि त्योहार विशुद्ध ऋतु-संबंधी ही हैं। यों दीपावली और विजयादशमी आदि भी किसी न किसी रूप में ऋतुओं से जुड़े हुए हैं। मकर संक्रान्ति और सावनिया तीज भी ऋतु-परिवर्तन से ही संबंधित है; बड़ा दिन भी ऋतु-परिवर्तन का सूचक है। पर इसके साथ अनेक प्रकार की धार्मिक एवं जातीय कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं। इस वजह से इसे देश के समस्त धर्मों, जातियों के लोग नहीं मना पाते। ‘बड़ा दिन’ ईसाइयों द्वारा ही प्रमुखतया विधिपूर्वक मनाया जाता है, जबकि शेष सभी त्योहार हिन्दू जाति द्वारा धूमधाम से मनाए जाते हैं।
3 धार्मिक एवं जातीय त्योहार: त्योहारों का यह तीसरा वर्ग देश में निवास करने वाली किसी जाति विशेष और धर्म के माध्यम से ही मनाया जाता है,जबकि एक तरह का उत्साह अन्य जाति-धर्मावलंबियों में भी जरूर बना रहता है। महावीर जयंती यदि जैन-मतावलंबियों का त्योहार है, तो बुद्ध जयंती बौद्धों का। वैशाखी, रामनवमी, रक्षाबंधन, दशहरा, जन्माष्टमी, नवरात्र, गणेशोत्सव, दुर्गापूजा, विजयदशमी अथवा दीपावली पूजा, वर्ष प्रतिपदा, शिवरात्रि, नव संवत्सर पोंगल, ओणम् आदि हिन्दू-समाज द्वारा मनाए जाने वाले त्योहार एवं पर्व हैं। ईद और महर्रम आदि केवल मुसलमान मनाते हैं, तो गुरुपर्व सिक्ख समाज द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है। बड़ा दिन और गुड फ्राइडे प्रमुखतया इसाई समाज के त्योहार हैं।

इन तीन तरह के मुख्य त्योहारों के अलावा हर जाति, हर प्रांत और हर धर्म वर्ग के कई ऐसे अप्रचलित त्योहार भी हैं जो केवल स्थानीय स्तर पर ही मनाए जाते हैं। निश्चित रूप से ही उन सभी का अपना-अपना महत्त्व भी है। वे अंचल विशेष की अलग पहचान कराने वाले भी हैं। उन सभी की भी यदि गणना संभव हो सके, तो निस्संकोच यह कहा जा सकता है कि वर्ष में एक दिन भी ऐसा नहीं जाता कि जब इस देश की पावन धरती पर एक न एक पवित्र त्योहार न मनाया जा रहा हो। यही वजह है कि भारत को त्योहारों एवं पर्वो का देश माना जाता है ।

भारत में मनाया जाने वाला हर छोटा बड़ा, प्रत्येक जाति-धर्म का अथवा राष्ट्रीय अथवा ऋतु-संबंधी त्योहार वैयक्तिक स्तर पर नहीं, अपितु सामूहिक स्तर पर मनाया जाता है। इस वजह से वह सामूहिक आनन्दोल्लस को ही प्रस्तुत करता है। उसमें अपनी माटी की सोंधी गंध तो रहती ही है, मानवीयता और राष्ट्रीयता के सभी तरह के तत्त्व भी अवश्य ही अन्तर्निहित होते हैं। इस दृष्टि से उनका महत्त्व निश्चय ही बढ़ जाता है। तरह-तरह के नृत्य, गीत, संगीत, साज सजावट, झाँझा-झाँकियों आदि के रूप में तो यहाँ के त्योहार मनाए ही जाते हैं, नए वस्त्र पहनने और मिष्ठान्न खाने का भी उन सभी में विशेष महत्त्व स्वीकारा गया है। इनके मनाने से भावानात्मक एकता, सामूहिकता, मानवीयता की भावनाओं को भी बहुत महत्त्व मिलता है। इसी नजरिये से सभी का उदात्त राष्ट्रीय एवं व्यापक मानवीय आयाम भी है।

इस प्रकार भारतीय त्योहार एवं पर्व समग्रता, मानवीय उदारता, भाईचारे ओर प्रेम का संदेश देने वाले हैं। वे मन के आनन्दोल्लास के व्यापक और वैयक्तिक, हर स्तर के परिचायक भी हैं। इन कारणों से इनका महत्त्व सर्व स्वीकृत है।

Importance of Festivals in Hindi

त्योहार कोई सा भी हो, किसी न किसी देश की सांस्कृतिक चेतना का मुखर अंग, प्रतीक एवं स्वरूप होता है। उससे यह जाना जाता है कि कोई देश और वहाँ निवास करने वाली जातियाँ, उनकी सभ्यता और संस्कृति कितनी ऊर्जस्वित, कितनी अपनत्वपूर्ण, प्राणवान और जीवन्त है। त्योहार का महत्त्व किसी देश एवं जाति-वर्ग की सामूहिक चेतना को भी प्रकट करने वाला एक जीवंत एवं मूर्त तत्त्व के रूप में उजागर होता है। वह उनके अन्त: संगठन की योग्यता को उजागर करने वाला एक अत्यंत सटीक एवं सजीव तत्त्व भी है, इसमें जरा भी संदेह नहीं।

त्योहारों के द्वारा कोई राष्ट्र अथवा जाति अपने सामूहिक आनन्दभाव को भी प्रकट करता है। व्यक्ति का हृदय आनन्द और मौजप्रिय होता है। वह वैयक्तिक स्तर पर तो हर तरह के साधन सहेज, उपाय करके आनन्द मौज का सामान एकत्रित करता है; पर इस तरह का उसका प्रयत्न सीमित ही होता है। इसके विपरीत, त्योहार के द्वारा आनन्द और प्रसन्नता बटोरने के लिए पूरे समाज को सामूहिक रूप से सघन प्रयास करना पड़ता है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने अपने घर-परिवार की सीमा में रह कर किया गया प्रयत्न जो कि एक ही समय-सिमा और एक ही प्रकार का होता है; उसे भी सामाजिकता, सामूहिकता अथवा सामूहिक प्रयत्नी के तहत रखा जा सकता है। जैसे, दीवाली का त्योहार मनाते, तो सभी लोग अपने घर-परिवार की सीमा में ही होते हैं, अपने ही घरों में दीपक आदि जलाकर रोशनी किया करते हैं। मिठाई आदि भी अपने-अपने घर-परिवार में वितरित करते। खाते हैं और पूजा भी अपने ही घरों पर किया करते हैं। लेकिन यह सब एक ही दिन, एक समय, करीब-करीब एक समान तरीके से किया जाता है और इसका प्रभाव भी सम्मिलित ही स्पष्ट होती है। इस वजह से समस्त क्रिया-प्रक्रिया को सामूहिक स्तर पर की गई आनन्दोत्साह की अभिव्यक्ति ही माना जाता है।

ऊपर उत्सव-त्योहार का महत्त्व समूह और व्यक्ति दोनों में समान रूप से रेखांकित किया गया है। त्योहारों का महत्त्व अन्य कई दृष्टि से भी समझा जा सकता है। ऐसे समय, घर-परिवार के छोटे, बड़े सभी सदस्यों को नजदीक आने, मिल, बैठने, एक दूसरे के सुख-दु:ख का साक्षी बनाने के सुयोग भी प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं, त्योहार अनेक बार वर्गगत अथवा जाति-धर्म अलगाव की भावनाओं को भी खत्म कर देने वाले सिद्ध होते हैं। आमने-सामने आने पर त्योहार लोगों को एक-दूसरे को समझने-बुझने का अवसर तो देते ही हैं, भावना के स्तर पर एक-दूसरे से जुड़ने अथवा एक होने का संयोग भी उपलब्ध कराते हैं। क्योंकि त्योहार मनाने की लालसा सभी में एक सी होती है, इसी वजह से ऐसा स्वत: ही हो जाया करता है।

त्योहार का संबंध प्रायः किसी राष्ट्र की परम्परागत चेतना, राष्ट्रीय धरोहर, विशिष्ट घटना, स्थान, महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व, तथा शोध-परिशोध के साथ होता है। इस प्रकार त्योहार वर्तमान को इतिहास के साथ जोड़ने का कार्य भी करते हैं। ये समाज और व्यक्ति को अपने जड़ से, अपने मौलिक तत्वों से जोड़ा करते हैं। यहाँ ‘गणतंत्र दिवस अथवा स्वतंत्रता दिवस’ जैसे राष्ट्रीय त्योहारों का उदहरण दिया जा सकता है। स्वतंत्रता दिवस’ का त्योहार मनाकर हमारा सम्पूर्ण देश और समाज अपने आप को उन यादगार लम्हों के साथ जोड़ने का अथवा उन्हें दोहराने का प्रयत्न करता है, जब देश की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा के मोर्चे पर पूरा देश एक जुट होकर कठोर संघर्ष कर रहा था। इसी प्रकार गणतंत्र दिवस’ हमें निकट अतीत के उन पलों के साथ जोड़ता है, जब स्वतंत्र भारत का अपना संविधान लागू हुआ था; देश को एक लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाला राज्य घोषित किया गया इस तरह त्योहार मनाने का एक महत्त्व, किसी देश के वर्तमान को इतिहास के साथ जोड़कर उसकी सभी प्रकार की चुनौतियों के प्रति सजग करना भी है।

हर एक त्योहार अपने अंदर कई तरह के आदर्शों एवं मूल्यों की भी संजोए रहता है। इसलिए उन्हें मनाकर मनाने वाले उन सब से परिचित तो हुआ ही करते हैं, उन्हें संजोए रखने की दृढ़ता और तत्परता की सीख भी लेते हैं। इसी प्रकार त्योहार धर्म एवं अध्यात्म भावों को प्रस्तुत कर लोक के साथ परलोक सुधार की प्रेरणा भी देते हैं। सब से बड़ी बात तो यह है कि पर्व ओर त्योहार अपने मनाने वालों को उस धरती की सोंधी खुशबू के साथ जोड़ने का सार्थक प्रयत्न करते हैं जिस पर उन्हें धूमधाम से मनाया जाता है। पर्व मनाने वाले जन समाज की अनेक विधि, रीति-नीतियों की जानकारी भी देते हैं। ये सभी जानकारियाँ जन समाज में आत्म सम्मान एवं अभिन्नता का भाव बड़े प्रिय तरीके से जागृत करती है। वस्तुत: है कि ऐसे भाव रखने वालों को ही त्योहार मनाने का अधिकार होता है।

इस प्रकार त्योहारों का महत्त्व एवं मूल्य स्पष्ट है। त्योहारों को किसी राष्ट्र और जाति की राष्ट्रीयता, जातीयता, सामूहिकता एवं सामाजिकता का आनन्दोत्साह भरा हँसता-खिलखिलाता हुआ उज्जवल दर्पण भी कहा जा सकता है।

Essay on Festivals of India in Hindi 1000 Words

(समरूपी विषय – जीवन में त्योहारों का महत्त्व, हमारे पर्व-हमारे गौरव, भारत के प्रमुख पर्व, हमारे पर्व एवं सांस्कृतिक एकता।)

भूमिका उत्सव प्रिया मानवः” अर्थात मानव उत्सव प्रिय होता है। प्रत्येक जाति एवं समाज अथवा राष्ट्र के जीवन में पर्वो तथा त्योहारों का विशेष महत्व है। संसार के विभिन्न भू-भागों में बसनेवाली प्रत्येक जाति या राष्ट्र कुछ दिन ऐसे रखता है, जिनका महत्त्व सामान्य दिनों से अधिक होता है, इन्हीं दिनों को पर्व कहा जाता है। अतीत के गौरव को शाश्वत बनाने के लिए पर्वो की प्रतिष्ठा की जाती है। ये पर्व एवं त्योहार किसी जाति के प्राचीन गौरव के स्मारक तथा भविष्य के मार्गदर्शक अथवा प्रणेता होते हैं।

जीवन में पर्यों एवं त्योहारों का स्थान – भारतीय संस्कृति व जीवन में पर्वो का अपना विशेष महत्त्व हैं। भारत के संबंध में यह कहावत प्रचलित है कि यहाँ ‘नौ दिन तेरह त्योहार’ होते हैं। वर्ष के 365 दिनों में शायद ही कोई दिन ऐसा हो, जब कोई पर्व अथवा त्योहार न मनाया जाता हो। इन पर्वो को मनाने से जीवन की एकरसता व नीरसता दूर होती है। सामाजिक प्राणी होने के कारण मानव अपने सुख-दुख का सम-विभाजन अपने समाज के साथ करता है। वह अपने बँधे-बँधाए जीवन में परिवर्तन चाहता है इसलिए अपने दैनिक कार्यों में आनंद, उत्साह और स्फूर्ति के संचार के लिए विविध पर्वो को मनाता है। इन अवसरों पर वह समाज के लोगों के साथ मिलकर अपने व्यक्तिगत उत्थान की अपेक्षा समाज की उन्नति के लिए प्रयासरत रहता है।

भारत के पर्व एवं त्योहार – विभिन्नता में एकता भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। यहाँ विभिन्न जातियों, धर्मों एवं वर्गों के लोग परस्पर मिल-जुलकर रहते हैं, अतः यहाँ वर्ष भर अनेक पर्व मनाए जाते हैं। इनमें से कुछ का संबंध किसी विशेष धर्म, संप्रदाय अथवा जाति से है, कुछ का समाज से, कुछ का फसलों से। कुछ पर्व राष्ट्रीयता की भावना से अनुप्राणित होकर मनाए जाते हैं।

राष्ट्रीय पर्व –राष्ट्रीय पर्वो में प्रमुख रूप से तीन पर्व मनाए जाते हैं – स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस एव गाँधी जयती। अंग्रेजों की अनेक वर्षों की दासता से जिस दिन हमारा देश स्वतंत्र हुआ था, उस दिन अर्थात 15 अगस्त को पूरा राष्ट्र ‘स्वतंत्रता दिवस’ के रूप में धूमधाम से मनाता है। 26 जनवरी, 1950 को हमारा सावधान लागू किया गया था तथा भारत को संपर्ण प्रभुतासंपन्न गणराज्य घोषित किया गया था, इसी कारण 26 जनवरी के दिन ‘गणतंत्र दिवस’ का पर्व प्रतिवर्ष मनाया जाता है। दिल्ली की गणतंत्र दिवस परेड, विशाल झाँकियाँ आदि इसका प्रमुख आकर्षण होते हैं। देश को सत्य और अहिंसा के शस्त्रों से आजादी दिलानेवाले, देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करनेवाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाते हैं। इनके अतिरिक्त बाल दिवस, शिक्षक दिवस को परा राष्ट्र मनाता है। इन सभी पर्वो को समस्त देशवासी जाति, धर्म, संप्रदाय का सकाणे सीमाओं से निकलकर, अत्यंत उत्साहपूर्वक मनाकर राष्ट्रीय एकता प्रकट करते हैं।

एव गाँधी जयती। अंग्रेजों की अनेक वर्षों की दासता से जिस दिन हमारा देश स्वतंत्र हुआ था, उस दिन अर्थात 15 अगस्त को पूरा राष्ट्र ‘स्वतंत्रता दिवस’ के रूप में धूमधाम से मनाता है। 26 जनवरी, 1950 को हमारा सावधान लागू किया गया था तथा भारत को संपर्ण प्रभुतासंपन्न गणराज्य घोषित किया गया था, इसी कारण 26 जनवरी के दिन ‘गणतंत्र दिवस’ का पर्व प्रतिवर्ष मनाया जाता है। दिल्ली की गणतंत्र दिवस परेड, विशाल झाँकियाँ आदि इसका प्रमुख आकर्षण होते हैं। देश को सत्य और अहिंसा के शस्त्रों से आजादी दिलानेवाले, देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करनेवाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाते हैं। इनके अतिरिक्त बाल दिवस, शिक्षक दिवस को परा राष्ट्र मनाता है। इन सभी पर्वो को समस्त देशवासी जाति, धर्म, संप्रदाय का सकाणे सीमाओं से निकलकर, अत्यंत उत्साहपूर्वक मनाकर राष्ट्रीय एकता प्रकट करते हैं।

धार्मिक पर्व – भारतीय समाज के त्योहारों में धार्मिक त्योहारों का भी विशेष महत्त्व है। हिंदुओं में प्रचलित प्रमुख पर्व हैं – होली, दीपावली, विजयदशमी एवं रक्षाबंधन आदि। होली हर्षोल्लास का प्रतीक है। लोग परस्पर रंग लगाकर, गले मिलकर अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं। भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दीपों का पर्व दीपावली कार्तिक अमावस्या को मनाते हैं। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी व शुभ के प्रतीक गणेश जी की पूजा करके लोग घर-आँगन को दीपों से प्रकाशित करते हैं। अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक रूप में विजयदशमी अथवा दशहरे का पर्व मनाया जाता है। स्थान-स्थान पर रामलीलाओं एवं दुर्गापूजा का आयोजन इसके विशेष आकर्षण हैं। बहन-भाई के पावन स्नेह का प्रतीक पर्व रक्षाबंधन श्रावणी पूर्णिमा को मनाया जाता है। सिक्खों का प्रमुख पर्व है – गुरु पर्व। इनमें गुरु नानक देव, गुरु गोविंद सिंह आदि के जन्मदिन मनाए जाते हैं। मुसलमानों के प्रमुख पर्व हैं – ईद, बकरीद, रमज़ान एवं मुहर्रम और ईसाइयों के पर्वो में प्रमुख हैं – क्रिसमस डे अथवा बड़ा दिन, ईस्टर, गुडफ्राइडे एवं नव वर्ष। इसी प्रकार सभी धर्मों के पर्वो को यहाँ परस्पर मिल-जुलकर एकता व सद्भावपूर्वक मनाया जाता है।

ऋतु व फसल पर्व – ‘बसंत पंचमी’ एवं ‘शरद पूर्णिमा’ आदि पर्वो का संबंध ऋतुओं से है, अतः इन्हें ऋतु पर्व कहते हैं। इनके अतिरिक्त बैसाखी, लोहड़ी, ओणम एवं बिहू आदि पर्व फसलों से संबंधित हैं। ये पर्व किसानों के उल्लास को व्यक्त करते हैं। किसान इन्हें मस्ती से नाच-गाकर मनाते हैं। इसी प्रकार छोटे-बड़े अनेक त्योहार हैं जो हमारे जीवन में आनंद का संचार करते हैं।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता के प्रतीक – पर्व चाहें राष्ट्रीय हों या धार्मिक, ऋतु विशेष से संबद्ध हों अथवा फसल से, हिंदुओं के हों या मुसलमानों के समूचा भारत मिल-जुलकर मनाता है। एक ओर हिंदुओं के महान पर्वो होली – दीपावली आदि में अन्य धर्मों के लोग भी सम्मिलित होते हैं तो मुसलमानों की ईद, ईसाइयों के बड़े दिन, सिक्खों के गुरु पर्व आदि में हिंदू समान श्रद्धा, विश्वास, उत्साह व प्रेम से भाग लेते हैं। होली के रंग प्रेम, अपनत्व से सभी को सराबोर कर तन-मन रँग देते है। दीपावली पर सभी खुशियों के दीप जलाते हैं। ईद पर सभी प्रेम से गले मिलते हैं। लोहड़ी एवं वैसाखी पर ढोल की ताल पर सभी के पैर थिरक उठते हैं। राष्ट्रीय पर्व भी सामाजिक एवं सांस्कतिक एकता को ही पुष्ट करते हैं क्योंकि उन्हें सारा राष्ट्र अत्यंत खुशी और उल्लास के साथ मनाता है। अतः स्पष्ट है कि यहाँ के सभी पर्व एवं त्योहार सामूहिकता के द्योतक हैं।

उपसंहार – भारत के पर्व एवं त्योहार परस्पर प्रेम व सद्भावना को पुष्ट करते हैं। लोगों के मन में स्फूर्ति और सारा गौरवमयी सभ्यता व संस्कृति के प्रतीक हैं। सैकड़ों वर्षों से सामाजिक जीवन में ऊर्जा का संचार कर रहे हैं। ये किसी जाति या धर्म की व्यक्तिगत धरोहर नहीं हैं। इससे परस्पर वैमनस्य, द्वेष को भूलकर मानवता, प्रेम, सद्भाव की प्रेरणा मिलती है।

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