Essay on Technical Education in Hindi तकनीकी शिक्षा का महत्व पर निबंध

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Essay on Technical Education in Hindi

हमारा देश आज एक स्वतन्त्र और विकासशील देश है। इसे स्वतन्त्र हुए 59 वर्षों का समय बीत चुका है। परन्तु हमारी शिक्षा-व्यवस्था में अभी तक भी पूर्ण परिवर्तन नहीं आया है। प्रतिवर्ष हजारों स्नातक और मास्टर डिग्री-धारक लड़के और लड़कियां विश्वविद्यालयों से निकल रहे हैं जो हमेशा सरकारी नौकरी की तलाश में मारे-मारे फिरते रहते हैं। ये सभी क्लर्क, ऑफिस कर्मचारी या नौकरशाह बनना चाहते हैं परन्तु आज हमें ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है। हमें डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक, नर्से, कम्प्यूटर प्रोफेशनल, अंतरिक्ष वैज्ञानिक, कुशल कारीगर, सैनिक, शिल्पी, कलाकार आदि की आवश्यकता है। स्पष्टत: इन डिग्री या डिप्लोमा धारकों में से अधिकतर व्यक्ति इस दृष्टि से किसी काम के नहीं हैं।

हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाये, स्वरोजगार के लिये स्वावलम्बी बनाये। हमें ऐसे शिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता है जो अपने कल-कारखाने खोल सकें। हमारे पास प्राकृतिक संसाधनों और अवसरों की कमी नहीं है परन्तु ऐसे व्यक्तियों की कमी है जो इन संसाधनों का दोहन कर सकें। नये-नये आविष्कार और अन्वेषण कर सकें तथा समाज और राष्ट्र को कुछ नया, मौलिक और सार्थक दे सकें । शिक्षा का ध्यान व्यक्ति को पुरुषार्थी, स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर बनाना होना चाहिये न कि परजीवी, पराश्रित और पंगु बनाना।

भारत लम्बे समय तक अंग्रेजों की दासता में रहा। अंग्रेज निरन्तर देश के शोषण में लगे रहे और कभी इसकी शिक्षा, उन्नति, विकास और औद्योगिक प्रगति के बारे में नहीं सोचा। अपनी सत्ता के चलाने में बनाये रखने के लिए उन्हें केवल क्लर्क और नौकरशाह चाहिए थे। अत: उन्होंने ऐसी शिक्षा प्रणाली व नीतियां अपनाई जो केवल ऐसे ही लोग पैदा कर सकती थीं। नौकरशाहों में न आत्मविश्वास होता है न स्वतन्त्र बुद्धि। वे तो केवल अपने अधिकारियों की हाँ में हाँ मिलाना और लकीर पीटना ही जानते हैं। उनमें मौलिक समझ, सोच और बुद्धि का अत्यन्त अभाव रहता है। उनके हर श्वास में गुलामी भरी रहती है। दुर्भाग्यवश आज भी हमारे विश्वविद्यालयों से निकलकर ऐसे ही स्नातक आ रहे हैं। सदियों पहले अंग्रेजों ने अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये जो शिक्षा व्यवस्था शुरू की थी, वह आज भी बहुत हद तक वैसी ही है। इसमें तुरंत बुनियादी परिवर्तन की आवश्यकता है।

हमारी दोषपूर्ण शिक्षा नीति के कारण बेरोजगारों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। दूसरी तरफ ऐसे अनेक पद और स्थान हैं जो खाली पड़े हैं क्योंकि उनके लिए योग्य और प्रशिक्षित व्यक्ति नहीं है। यह बड़ी विषम स्थिति है। इसमें शीघ्र परिवर्तन लाया जाना चाहिये। उच्च शिक्षा बहुत योग्य तथा प्रतिभावान व्यक्तियों और छात्रों तक सीमित रहनी चाहिये। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि दसवीं या बारहवीं कक्षा तक छात्र अपने पैरों पर खड़ा होना सीख जायें। वह इस योग्य हो जाएं कि स्वरोजगार अपना सकें या तकनीकी दृष्टि से पूरी तरह प्रशिक्षित हों।

तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा आज की सबसे बड़ी जरूरत है। इसके लिए अधिकाधिक तकनीकी स्कूल, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आई. टी. आई.), पॉलिटेकनीक, इंजीनीयरिंग महाविद्यालय आदि खोले जाने चाहिये। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर छात्र-छात्राओं को व्यावसायिक शिक्षा दी जानी चाहिये। देश की तकनीकी आवश्यकताओं के अनुरूप हमें अपनी शिक्षा-व्यवस्था में सुधार करना चाहिए।

आज का युग उद्योगों, व्यापार और तकनीक का है। इनमें उन्नति और विकास के लिए हमें ऐसे प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता है जो सरलता से इनमें सहयोग दे सकें। तकनीकी विकास ही हमें एक प्रगतिशील राष्ट्र बना सकता है। संसार के सभी विकसित राष्ट्र इसीलिए ऐसे हैं क्योंकि तकनीकी क्षेत्र में उन्होंने अथाह प्रगति की है। वहां पर तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण पर बहुत ध्यान दिया जाता है।

केवल किताबी शिक्षा और पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने से कोई लाभ नहीं। ऐसी शिक्षा किताबी कीड़े और नौकरशाहों से अधिक कुछ नहीं दे सकती। हमें आज ऐसे वैज्ञानिक चाहिये जो दूसरी और तीसरी हरित तथा श्वेत क्रांतियां लाने में सहायता कर सकें, हमारा तिरंगा चाँद पर फहराने में सक्षम हों, हमारे कल-कारखाने को बेहतर ढंग से चला सकें। आज का युग हर क्षेत्र में विशेषज्ञता का है।

हमें चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसे डॉक्टर और शल्य विशेषज्ञ चाहिये जो एड्स, कैंसर पर विजय पा सकें। मलेरिया और तपेदिक का नाश कर सकें या फिर कृत्रिम मानवीय अंग पैदा कर सकें और उनका सफलतापूर्वक रोपण कर सकें। ऐसे कर्मचारी और तकनीशियन हमें केवल तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से ही मिल सकते हैं।

देश के औद्योगिक विकास, प्रोद्योगिक उन्नति के लिए जिन हाथों और बुद्धि की हमें आवश्यकता है, वे तकनीकी संस्थाओं, संस्थानों और प्रशिक्षण केन्द्रों में ही उत्पन्न किये जा सकते हैं। विदेशों में भी ऐसे भारतीयों की बहुत मांग है जो वहां तकनीकी विकास और प्रोद्योगिकी में विशेष योगदान दे सकें।

आज हमारा देश कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर में विश्व के सबसे अग्रणी देशों में से एक है। इस क्षेत्र में हमारी सेवाओं से हम पर्याप्त विदेशी मुद्रा कमा रहे हैं परन्तु इस स्थान और पद को बनाये रखने के लिए हमें निरन्तर सजग और सक्रिय बने रहना है। अपने ज्ञान और तकनीक को लगातार विकसित करते रहना है। आज कड़ी प्रतियोगिता और तेजी से बदलती व विकसित होती तकनीक व प्रोद्योगिकी का युग है।

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