Female Foeticide Essay in Hindi कन्या भ्रूण हत्या पर निबंध

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hindiinhindi Female Foeticide Essay in Hindi

Female Foeticide Essay in Hindi 300 Words

कन्या भ्रूण हत्या क्या है

जन्म से पहले ही लिंग परीक्षण जाँच जैसे अल्ट्रासाउंड स्कैन करके माँ के गर्भ से लड़की के भ्रूण को समाप्त करने के लिये गर्भपात की प्रक्रिया को कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। भारत में लिंग परीक्षण गैर-कानूनी है। यह उन लोगो के लिए बहुत ही शर्म की बात हे जो सिर्फ बालक शिशु ही चाहते हैं और रुपयों के लालच में कुछ चिकित्सक भी खासतौर से गर्भपात कराने में मदद करते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या के कारण

कन्या भ्रूण हत्या के पीछे मुख्य कारण वो परिवार है जो केवल लड़का ही चाहते हैं। इसके इलावा इसके पीछे विभिन्न धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक कारण भी है। परिवारों का मानना हे कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं जबकि यह नहीं समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म दे सकती हैं, लड़के नहीं। कुछ माता-पिता ऐसा भी सोचते है कि लड़कियां हमेशा उपभोक्ता होती हैं और लड़के उत्पादक होते हैं। पहले के मुकाबले आज समय बदल चुका है किन्तु कुछ परिवारों में विभिन्न कारण और मान्यताएं के कारण कन्या भ्रूण हत्या आज भी जारी है।

नियंत्रण के लिये प्रभावकारी उपाय:

महिलाओं के भविष्य के लिये कन्या भ्रूण हत्या एक अपराध और सामाजिक आपदा है इसलिए भारतीय समाज को आज खुद कन्या भ्रूण हत्याओं के कारणों पर ध्यान देना चाहिए और धीरे-धीरे सभी को सुलझाना चाहिये। सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या के कारण नियम तो बनाये हैं, लेकिन अब समय आ चुका है जब इन संबंधित सभी नियमों के साथ कड़ी कार्रवाई भी हो। किसी को भी इस क्रूरतम अपराध के गलत पाए जाने पर निश्चित तौर से सजा मिलनी चाहिये और यदि चिकित्सक इस प्रतिक्रिया मे शामिल पाए जाते है तो उनका लाइसेंस रद्द कर देना चाहिए। युवाओ को जागरुक करने के लिए भारत सरकार द्वारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं या बालिका सुरक्षा अभियान आदि बनाये गये हैं, जिनसे समाज में कुछ सुधर भी देखा गया है।

Female Foeticide Essay in Hindi 1500 Words

“बेटियाँ बेटियाँ बेटियाँ
कोमल कलियों की हैं बेटियाँ
इनके आँखों में सपने हजारों
इनके सपनों को तुम न नकारो
हक इन्हें भी तो है जीने का।”

भूमिका

भारत ऐसा देश है जिसमें नारी की देवी, दुर्गा, चण्डी, सरस्वती के रूप में पूजा की जाती है। बालिकाओं का कंजक रूप में पूजन किया जाता है। शिक्षा के प्रसार के परिणाम स्वरूप नारी की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। परन्तु आज के युग में भी नारी और नर में भिन्नता की जाती है। जिसके कारण समाज में बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं जैसे- बाल-विवाह, बढ़ती जनसंख्या, भ्रूण हत्या, दहेज-प्रथा इनमें से भ्रूण हत्या भी समाज के लिए सबसे घातक है।

भ्रूण परीक्षण-भ्रूण हत्या

भ्रूण परीक्षण पद्धति का आरम्भ भारत में करीब 25-30 वर्ष पहले हुआ। जिसे ‘एमिनोसिंथेसिस’ कहते हैं। जिसका उद्देश्य मात्र गर्भस्थ शिशु के शारीरिक एवं मानसिक विकास की जाँच तथा उपचार करना था किन्तु भारत में इसे लिंग जाँच करने की प्रणाली के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। गर्भ में अनचाही संतान (लड़की) होने पर उस भ्रूण की माँ की कोख (गर्भ) में ही हत्या की जाने लगी।

लड़की-लड़के के अनुपात में अन्तर

2001 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों के पीछे 793 लड़कियाँ और 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों के पीछे 893 लड़कियाँ ही जन्म ले पाई । भारत के बहुत सारे राज्यों में यह अनुपात अंतर देखने को मिलता है जो कि पूरे भारत के लिए एक गंभीर समस्या बना हुआ है।

भ्रूण हत्या पर धार्मिक धारणाएँ

वैदिक धर्म के अनुसार भ्रूण हत्या को ब्रह्म हत्या से भी बड़ा पाप कहा गया है। जिसका कोई प्रायश्चित भी नहीं होता। जैन धर्म के अनुसार यह पाप करने वाला सीधे नरक गति में जाता है। वास्तव में भ्रूण हत्या मानव जाति को कलंकित करने वाला ऐसा अपराध है जिसका इस जन्म में तो क्या अगले जन्म में भी निपटारा नहीं हो सकता?

कन्या जन्संख्या दर में गिरावट की हानियाँ

अगर भ्रूण हत्या का सिलसिला इसी प्रकार चलता रहा और कन्या जनसंख्या दर में गिरावट इसी प्रकार होती रही तो जनगणना में असन्तुलन पैदा हो जाएगा। भावी पीढ़ियों में रिश्ते बिख़र जाएंगे। भाइयों को राखी बँधवाने के लिए बहनों के लिए तरसना पड़ेगा। बच्चों को बुआ न मिलेगी। बुआ तो शायद मिल भी जाए किन्तु बच्चे मासी के रिश्ते के लिए तरस जाएंगे या यूँ कहिये कि नारी से जुड़े सभी रिश्ते ख़तरे में पड़ जाएंगे।

युवा पीढ़ी में विवाह योग्य लड़कों को लड़कियाँ नहीं मिलेंगी और वे शादी से वंचित रह जाएंगे। दूर की सोचें तो यह भी दृष्टिगोचर होता है कि लड़कियाँ कम होने पर समाज में अराजकता फैल जाएगी। लड़कियों का समाज में विचरण करना मुश्किल हो जाएगा। कन्या अपहरण, बलात्कार आदि की घटनाएँ बढ़ जाएंगी एवं कन्याएँ स्वयं को असुरक्षित महसूस करेंगी।

कारण :

1. अनपढ़ता एवं ज्ञान की कमी : समाज में ऐसी समस्याएँ अनपढ़ता एवं ज्ञान की कमी से पैदा होती हैं। अनपढ़ और ज्ञानहीन लोग लड़की को बोझ समझते हुए जन्म से पहले ही मार देते हैं। उनमें इस ज्ञान की कमी होती है कि लड़की घर की लक्ष्मी होती है और उसके घर में होने से ही रौनक होती है। कई लोग तो लड़कों को कमाई का साधन मानते हुए लड़की के जन्म को बोझ समझते हैं। उनके अनुसार लडकी को शादी में दहेज़ देना पड़ेगा। लड़की को पढ़ाने-लिखाने के बाद जब वह दूसरे घर चली जाएगी तो इसका उन्हें कोई लाभ नहीं होगा। ऐसी सोच ने समाज में लड़कियों के जन्म को एक बोझ बनाकर रख दिया है।

2. पालन-पोषण में अंतर : भ्रूण हत्या का एक कारण यह भी है कि लड़के और लड़की के पालन-पोषण में भी अंतर किया जाता है। आज भी कई गाँव में लड़की को लड़के की अपेक्षा कम खाने को दिया जाता है। लड़कों को खाने में अच्छा भोजन दिया जाता है। जबकि लड़की को खाने में बचा-खुचा भोजन परोसा जाता है। ऐसी असमानताएँ ही भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों को जन्म देती हैं। लड़कों को तो खेलने के लिए मैदान आदि दिये जाते हैं जबकि लड़कियों को खेलने के नाम पर घर का काम सीखने पर जोर दिया जाता है। लड़की की जरुरतों को नजरअंदाज किया जाता है। सर्वेक्षणों के आधार पर लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में अधिक कुपोषण पाया जाता है।

3. शिक्षा के अवसरों में कमी : समाज में स्त्री-पुरुष की शिक्षा के अवसरों में बड़ी असमानता पाई जाती है। लड़कों को तो अच्छा पढ़ने पर जोर दिया जाता है। कई घरों में तो लड़कों को लड़कियों की अपेक्षा बड़े अच्छे स्कूलों में भेजा जाता है। लड़कियों को उच्च शिक्षा देने का विरोध किया जाता है। कई लोग तो लड़कियों को पढ़ने के लिए दूर नहीं भेजना चाहते जबकि लड़कों को जहाँ मर्जी जाकर पढ़ने की तथा काम करने की आजादी होती है। शिक्षा के इन अवसरों की कमी के कारण लड़की कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ रह जाती है। फिर यही सीमित सोच पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती जाती है।

4. संस्कार देते समय भेदभाव : बच्चों को संस्कार घर परिवार से ही दिए जाते हैं। लेकिन समाज में लड़की-लड़के को संस्कार देने में भी भेदभाव किया जाता है। लड़कियों को तो घरों में कम बोलने, सिर पर दुपट्टा ओढ़ने, घर के काम-काज सीखने, धीरे बोलने, घर से बाहर न जाने आदि संस्कार दिए जाते हैं जबकि लड़कों को तो देर रात घर से बाहर रहने पर कोई सवाल नहीं पूछा जाता? लड़कों को जवान होने पर घर के मुखिया के बराबर समझा जाता है। घर के ज़रूरी फैसलों में लड़कों की सलाह ली जाती है, लड़कियों की नहीं। ऐसे संस्कार बच्चे की सोच को प्रभावित करते हुए जवान होने तक ऐसी सोच को मजबूत करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप लड़कियों के जन्म को बोझ समझा जाता है तथा भ्रूण हत्या की तरफ कदम बढ़ जाता है।

5. बुढ़ापे में सहारे की आस : लड़कियों के जन्म-दर में कमी का बड़ा कारण लड़कों को बुढ़ापे का सहारा समझना है। लोगों के अनुसार लड़की शादी करके दूसरे घर चली जाएगी। लेकिन लड़का शादी करके घर में रहेगा तथा बुढ़ापे का सहारा बनेगा। लड़की को शादी के समय दहेज़ देना पड़ेगा। लड़का दहेज घर में लेकर आएगा। ऐसी सोच ही भ्रूण हत्या को बढ़ावा देती है। भविष्य की चिंता में लोग आज लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही हत्या कर देते हैं, यह एक संकीर्ण सोच का परिणाम है।

किसी भी राष्ट्र की उन्नति और गिरावट उस राष्ट्र की स्त्री की उन्नति और गिरावट पर निर्भर करती है। – स्वामी विवेकानन्द

उपाय :

समाज का कर्तव्य : लड़कियों को जन्म लेने का अधिकार है।। इसलिए समाज में प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य बनता है कि वे लड़कियों के लिए आगे बढ़ने के अवसरों को पैदा करें। एक लड़की के साक्षर होने से पूरा समाज साक्षर हो जाता है। इसलिए आज समाज को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। लड़कियाँ भी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। इसलिए लडकियों को जन्म देने से पहले अगर मार दिया जायेगा तो एक स्वस्थ सभ्य समाज और राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकेगा।

सामाजिक समानता : लड़के के समान लड़की को भी बराबर स्थान देना जरुरी है। सामाजिक समानता के लिए ऐसा होना आवश्यक है। लड़की-लड़के को समाज में एक समान आदर-सत्कार मिलना चाहिए। दोनों के कार्यों में समानता होनी चाहिए। समाजिक समानता को घर से ही शुरु होना चाहिए। लड़की-लड़के को बराबर अधिकार एवं अवसर देने चाहिए।

बुढ़ापे में सहारे की आस केवल बेटों से ही नहीं बेटियों से भी रखी जा सकती है। दोनों को समान कर्त्तव्य एवं अधिकार दिये जाएँ जिससे माँ-बाप नज़रअंदाज़ न हो। किसी ने ठीक कहा है कि अगर माँ-बाप को संभालने की जिम्मेवारी बेटियों को सौंपी गई होती तो वृद्धाश्रमों का चलन ही न होता। इसका एक उपाय यह भी हो सकता है कि सास-बहू के रिश्ते की दूरी को समाप्त कर बहू के साथ बेटी की तरह व्यवहार किया जाए उसे वैसे ही अधिकार दिये जायें तो लोग इन परम्पराओं से उभरकर धारणाओं को बदल पाएंगे।

आज जरूरत है समाज के सभी वर्ग अपनी सोच बदले, मानदंड बदले, सकारात्मक सोच से लड़कियों के प्रति अपना व्यवहार बदलें। बेटियों को ममता, घर-आँगन की रौनक, प्रेम एवं त्याग की मूर्ति के रूप में देखना चाहिए। वे माँ, बहन, बेटी, बहू, पोती-नाती न जाने कितने ही रिश्ते अपने में संजोए हुए हैं। नर और नारी के बीच का भेदभाव समाप्त करके उनमें संस्कार, पोषण, शिक्षा, जीवन-निर्माण के अवसर आदि में समानता लायी जाये। तभी इस घातक समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

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