यदि मैं पक्षी होता पर निबंध If I Was A Bird Essay in Hindi

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If I Was A Bird Essay in Hindi

यदि मैं पक्षी होता पर निबंध If I Was A Bird Essay in Hindi

If I Was A Bird Essay in Hindi 800 Words

शैशव के सुकुमार क्षणों में किसी को गाते हुए सुना था – “मै वन का पक्षी बनकर, वनवन डोलँ रे। तभी से मन-मस्तिष्क में अनजाने ही यह इच्छा उत्पन्न हो गई थी कि – काश! मैं भी पक्षी बन कर पैदा हुआ होता, तो कितना मज़ा आता। जब जी चाहता, पंख फैला कर आकाश में ऊँचे उड़ जाता। जब जी चाहता, लौट कर फिर वापिस वृक्ष की डाली पर आ बैठता। इच्छा होने पर चोंच ऊपर उठा कर अपने मधर स्वर से चहचहाने-गाने लगता। किसी भी पेड के घने पत्तों में बैठ कर सुख से गाता-मुस्कराता रहता। किसी नदी, सरोवर या झरने के स्वच्छ पानी में चोंच डुबो कर पानी पीता और फिर पँख फड़फड़ा कर चहक-लहक उठता। किसी भी बाग-बागीचे में पहुँच, वहाँ उगे रस भरे मीठे फल अपनी चोंच मार-मार कर फोड़ डालता और माली या किसी के भी आने की आहट पाकर फुर्र से उड़ जाता। तब मुझे भी इस स्वतंत्रता से सारा व्यवहार करते और उड़ते हुए देख कर कोई अन्य वही गीत गा उठता जो मैंने सुना था – “मै वन का पक्षी बन कर, वन-वन डोलूँ रे !

किन्तु कहाँ पूर्ण हो पाती हैं सब की सभी तरह की इच्छाएँ। नहीं हो पाती न। सो मेरी भी वह इच्छा आज तक पूरी नहीं हो पाई अर्थात् मैं आज तक तो पक्षी बन कर आकाश में ऊँचा और स्वतंत्र उड़ पाया नहीं। कभी उड़ पाऊँगा; इस बात की कोई सम्भावना भी नहीं। फिर भी बचपन से उत्पन्न हुई वह इच्छा आज तक मरी नहीं कि काश, मैं पक्षी बना होता। मान लो, यदि मैं पक्षी बन ही गया होता या आज ही अभी पक्षी बन जाऊँ, तो क्या करूँगा वैसा बन कर? निश्चय ही वह सब तो करूँगा ही कि जिस की कल्पना बचपन में की थी और ऊपर लिख भी आया हूँ; और भी बहुत कुछ करने की इच्छा रह-रह कर मन-मस्तिष्क में अंगड़ाइयाँ लेती रहा करती है।

यदि मैं पक्षी होता, तो सब से पहले किसी घने वन में कल-कल कर बहती नदी, या झर-झर झरते झरने के आस-पास उगे किसी सघन और रसदार फलों वाले वृक्ष पर अपना नन्हा-सा नीड़ (घोंसला) बनाता। वहाँ मेरे संग मेरी प्रिया एक विहगी (पक्षिणी) भी होती। हम दोनों उस वृक्ष पर लगे मधुर और रसदार फल खाकर अपना पेट भरते। नदी या झरने का ताज़ा निर्मल पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते। इस से हमारा स्वर और भी मधुर, सरस, तरल और सरल हो उठता। फिर हम दोनों स्वर-से-स्वर मिला कर स्वतंत्र जीवन की मधुरता और सुख-सौरभ से भरा ऐसा मोहक गीत गाते, जो सुनने वाले सभी का मन मोह लेता। सभी के मन मस्ती और सुख से भर उठते। परतंत्रों-पराधीनों के मन-मस्तिष्क में भी स्वाधीन-स्वतंत्र होने-रहने की इच्छा जाग उठती। सभी को जीवन जीने का सुख-संगीतमय सन्देश मिल पाता।

यदि मैं पक्षी होता, तो प्रति सूर्योदय के समय आस-पास की बस्तियों में पहुँच कर, अपने मधुर स्वरों से चहककर लोगों को नींद से जगाया करता कि उठो ! कर्म करने का सन्देश लेकर एक नया दिन आ गया है। इसलिए आलस्य त्याग कर अब जाग जाओ। सुबह की सभी क्रियाओं से निवृत्त होकर अपने-अपने कार्य-पथ पर निकल चलो और इसके साथ-साथ मैं स्वयं भी दाना-दुनका चुगने के लिए पंख पसार किसी दिशा में उड़ जाता। जाते हुए रास्ते में यदि मुझे कहीं कोई दीन-दुःखी और धूप से पीड़ित व्यक्ति दिखाई दे जाता, तो अपने नन्हें पँख पसार कर उसे छाया प्रदान करने की चेष्टा करता, ताकि उसे कुछ राहत मिल सके। यदि कहीं कोई भूख से व्याकुल व्यक्ति या जीव दीख जाता, तो वह सारा दाना दुनका मैं उसे अर्पित कर देता कि जो मैंने अपने घोंसले में ले जाने के लिए चोंच में दबाया होता। इस प्रकार दुःखी एवं पीड़ित प्राणियों की अपनी शक्ति के अनुसार सेवा-सहायता करके मैं अपना जीवन सफल बनाता।

यदि मैं पक्षी होता, तो धरती-आकाश की लम्बाई-ऊँचाई और गहराई नाप कर, वहाँ के प्रत्येक प्राणी और पदार्थ से अपना निकट का सम्बन्ध जोड़ कर, उनके परिचय और रहस्यों से परिचित होकर उन्हें बताता कि धरती पर निवास कर रहे, पेड़ों पर रहने वाले, सागर के वासी, नगर-ग्रामवासी या वनवासी सभी प्राणियों में एक ही आत्मा, एक ही चेतना काम कर रही है; इस कारण आत्म तत्त्व की दृष्टि से सभी एक ही हैं। अतः किसी को किसी से घृणा नहीं करनी चाहिए। किसी को भी अपने से अलग, छोटा-बड़ा या पराया नहीं मानना चाहिए किसी को किसी का अधिकार नहीं छीनना चाहिए। किसी को कष्ट देना या कष्ट का कारण नहीं बनना चाहिए।

इस प्रकार यदि मैं पक्षी होता, तो कविवर राजेश शर्मा की एक कविता की यह पंक्ति सभी के कानों में गुनगुना आता- विश्व का इतिहास मेरा दास है, प्रेयसि; मैं हूँ विहंगम प्यार का।

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