Vigyan Vardan Ya Abhishap Essay in Hindi विज्ञान वरदान है या अभिशाप निबंध

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Vigyan Vardan Ya Abhishap essay in Hindi

Vigyan Vardan Ya Abhishap विज्ञान वरदान है या अभिशाप

Vigyan Vardan Ya Abhishap Essay in Hindi 200 Words

विज्ञान: वरदान या अभिशाप – Vigyan Vardan Ya Abhishap – विचारबिंदु – • विज्ञान शब्द का अर्थवरदानचिकित्सा मेंकृषि मेंयातायात मेंदैनिक जीवन मेंअभिशापअस्त्रशस्त्र निर्माण में जीवन मूल्यों का पतन।

विज्ञानका शाब्दिक अर्थ है – ‘विशेष ज्ञान प्रयोग, प्रमाण तथा तथ्यों पर आधारित ज्ञान। विज्ञान की सहायता से असाध्य रोगों के इलाज ढूँढ लिए गए हैं। अकाल मृत्युदर कम कर ली गई है। आयु को दीर्घ और जीवन को स्वस्थ बना लिया गया है। कृषि क्षेत्र में अब जुताई, बुवाई, कटाई जैसे कठिन कार्य यंत्रों से होने लगे हैं। 100-100 व्यक्तियों का काम अकेला एक यंत्र कर लेता है। यातायात तथा संचार माध्यमों की सहायता से पूरी दुनिया एक परिवार बन गई है। मनुष्य जब चाहे अपने प्रियजनों से बात कर सकता है। विज्ञान ने समय और श्रम को बचाकर जीवन सुखमय बना दिया है। विज्ञान के वरदानों की कहानी अनंत है। रसोईघर से लेकर मुर्दाघर तक सब जगह विज्ञान ने वरदान ही वरदान बाँटे हैं। विज्ञान ने दूरदर्शन, रेडियो, वीडियो, आडियो, चलचित्र आदि के द्वारा मनुष्य के नीरस जीवन को सरस बना दिया है। विज्ञान ने मानव को अनेक अभिशाप भी दिए हैं। विनाशकारी अस्त्रशस्त्र, पर्यावरण प्रदूषण, अकेलापन, तनाव, अमानवीयता, बेरोजगारी आदि अभिशाप विज्ञान की ही देन हैं। सत्य बात यह है कि विज्ञान का संतुलित उपयोग जीवनदायी है। उसका अंधाधुंध दुरुपयोग विनाशकारी है।

Vigyan Vardan Ya Abhishap Essay in Hindi 800 Words

किसी लेखक ने विज्ञान-सम्बन्धी अपने लेख में आधुनिक विज्ञान की चर्चा एक दुधारू गाय के सन्दर्भ में की है। विज्ञान और गाय की तुलना करते हुए लिखा है कि जैसे गाय के स्तनों में हर प्रकार से पौष्टिक दूध ही रहा करता है, जो दुहने से सहज ही प्राप्त हो जाता है, लेकिन अगर जोंक को गाय के दूध भरे स्तनों से चिपका दिया जाए, तो वह दूध न पी उसके स्तनों का रक्त ही चूसेगी। ठीक वैसे ही आधुनिक विज्ञान भी मानव-जीवन और समाज के लिए अनेक प्रकार के उपयोगी उपदान कर दुधारू गाय के समान वरदानदायक ही है। किन्तु जब से निहित स्वार्थों और शोषक-चोषक मनोवृत्तियों वाली मानव-जोंके उसके साथ जुड़ गई हैं, तब से विज्ञान मानव के रक्त का शोषण करने वाला अभिशाप ही साबित हो रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मूलतः मानव के स्वभाव और व्यवहार पर ही यह अवलम्बित करता है कि वह आधुनिक विज्ञान को सारी मानवेता के लिए वरदान बना दे या अभिशाप।

विज्ञान का मुख्य पहलू, लक्ष्य, उद्देश्य और गन्तव्य मानव-जीवन के लिए तरह-तरह के साधन जुटा कर उसे सुख सुविधाओं और सम्पन्नता के वरदानों से भर देना ही है। वैज्ञानिक चिन्तन-प्रक्रिया में आरम्भ होकर मानव-समाज को तरह-तरह के अन्धविश्वासों, गलत धारणाओं और रुढ़िवादी रीति-नीतियों की अंध गुफाओं से बाहर निकाल कर जीवन के यथार्थ एवं स्वस्थ-सुन्दर आलोक के जिस राजपथ पर ला खड़ा किया, वह किसी भी तरह भगवान् एवं प्रकृति के वरदान से कम नहीं है। इसी प्रकार जीवन को व्यक्ति से लेकर समूह के स्तर तक सुखी एवं समृद्ध बनाने के लिए सुई से लेकर हवाई जहाज, रेलगाड़ी, जलयान और जल के भीतर विचरण करने वाले जो अनेकविध यान, यंत्र एवं तरह के सामान मुहैया कर सुख-सुविधा से भर दिया है, उसे भी हम वरदान के सिवा और कह ही त्या सकते हैं? विज्ञान ने आधुनिक जीवन को परिवेश एवं पर्यावरण के अनकल जीवन जीने की कल सिखाई है। तभी तो आज का व्यक्ति तपते रेगिस्तानों, बंजर मैदानों, घने वनों में जिस सहज-सुविधा से रह सकने में समर्थ हुआ है, उसी से बर्फ से ढकी वादियों में रहने और बोनी ऊँचाइयों को छू कर उन पर विचरण कर पाने में भी समर्थ हो सका है। वह धरती-आकाश, जल-थल और जल के भीतर तक समय गति से रह और विचरण कर रहा है। ये सभी तथ्य वरदानी ही तो हैं।

आधुनिक विज्ञान ने कृषि-कार्यों, फल-सब्जियाँ उगाने, मकान बनाने, पहनने के वस्त्र आदि बनाने-बुनने की सभी तरह की प्रविधियों में आमूल-चूल परिवर्तन ला दिया है। चिकित्सा विज्ञान को नए आयाम प्रदान कर जन्म-मृत्यु तक के सामने मोटा प्रश्न-चिन्ह टाँक दिया है। मृत्यु दर घटा और जीवन-दर बढ़ा दिया है। प्रौद्योगिकी, कल, कारखाने, तरह-तरह के उद्योग-धन्धे, व्यवसाय मनोरंजन के अनेकविध साधन-उपकरण जुटा कर आधुनिक विज्ञान जीवन-समाज के सुविस्तृत आँगन को सचमुच अपने सुखद एवं शुभ वरदानों की भरमार से पाट कर रख दिया है। आगे भी वह जिस तरह की शुभ योजनाओं पर अनवरत कार्य कर रहा है, उस से मानव जाति को इतनी अधिक सुख-सुविधाएँ सुलभ हो जाएँगी कि उन्हें समेट कर रख पाना सरल नहीं रहेगा।

दूसरी ओर आधुनिक विज्ञान ने मानव-जीवन और समाज को अभिशप्त भी कम नहीं किया है। घर से हँसता-खेलता चला व्यक्ति कुछ ही क्षणों में अचानक औधे मुँह गिर कर अतीत की कहानी बन जाता है। हँसते-खेलते समूह-के-समूह बस, रेल, वायुयान आदि के हादसे के शिकार होकर विज्ञान के अभिशापों का स्वरूप साकार कर जाते हैं। जीवन के प्रांगण को दूधिया प्रकाश से जगमगा देने वाली बिजली क्षणभर में आदमी के प्राणों का शोषण कर उसे निर्जीव बना छोड़ देती है। उस पर आधुनिक विज्ञान जो तरह-तरह के परमाणु बम, शस्त्रास्त्र आदि विनिर्मित किए हैं; हॉयड्रोजन कोबॉल्ट, रासायनिक, जैविक बम, शस्त्रास्त्र एवं गैसें बनाई हैं। इस प्रकार के वैज्ञानिक अभिशाप शस्त्रागरों में भर कर जीवन को श्मशान बना डालने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कोई भी बदिमाग वाला व्यक्ति अपने घर के भीतर बैठा-बैठा ही एक बटन दबा कर प्रलय की वर्षा कर सकता है। इसे विज्ञान का अभिशाप ही कहा जा सकता है।

आज प्रौद्योगिक, कल-कारखानों, उद्योग-धन्धों का जो अन्धाधुन्ध विकास हुआ है, उसके कारण वायु-मण्डल इस सीमा तक प्रदूषित हो चुका है कि आदमी के लिए शुद्ध साँस तक ले पाना संभव नहीं रह गया। प्रदूषण के विस्तार ने धरती की रक्षक ओजन परत तक को उधेड़ना आरम्भ कर दिया है। रासायनिक गैसों, तत्त्वों, कचरे और अवशिष्ट अच्छिष्ट पानी में नदियों तक में जहर घोल दिया है। प्रकृति की अनुपम और जीवन के लिए अनिवार्य हवा-पानी तक विज्ञान ने शुद्ध नहीं रहने दिए। मानव-जीवन को बारूद के ऐसे ढेर पर ला खड़ा किया है | विज्ञान के अभिशाप ने कि तनिक-सी असावधानी या चुलबुलापन सर्वनाश की कहानी कह सकता है।

इस प्रकार वर्तमान में विज्ञान के वरदान और अभिशाप दोनों स्पष्ट हैं। स्वार्थी जोंक वृत्ति पर कठोर नियंत्रण कर के ही विज्ञान की वरदानी गाय के दूध को विष बनने से, जीवन का रक्त-शोषण कर, अपने अभिशापों से शमशान बना देने से रोका जा सकता है। अन्य कतई-कतई उपाय नहीं है बचाव का।

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