Jaisi Karni Waisi Bharni Story in Hindi जैसी करनी वैसी भरनी कहानी

Jaisi Karni Waisi Bharni Story in Hindi. जैसी करनी वैसी भरनी कहानी। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए जैसी करनी वैसी भरनी कहानी हिंदी में।

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Jaisi Karni Waisi Bharni Story in Hindi

Story 1

एक रात एक चोर किसी मकान की खिड़की में से अंदर जाने का प्रयास करने लगा की खिडकी की चोंखट टूट जाने से गिर पडा जिस वजह से उसकी टांग टूट गयी। अगले ही दिन उसने अदालत में जाकर अपने पैर के टूट जाने का दोष उस मकान के मालिक पर लगा दिया, जिस मकान की वह खिडकी थी। अदालत मे उस मकान के मालिक को बुलाकर पूछा गया, तो उसने अपनी सफाई में कहा की इसमें उसकी कोई गलती नहीं है, इसके लिए जिम्मेदार वह बढाई है, जिसने यह खिडकी बनाई थी। इस के बाद जब बढाई को बुलाया गया तो उसने अपनी सफाई में कहा की मकान बनाने वाले ठेकेदार ने दिवार के खिडकी वाला हिस्सा मजबूती से नहीं बनाया था।

जब ठेकेदार को बुलाया गया तो उसने अपनी सफाई में कहा, “मुझसे यह गलती एक औरत की वजह से हुई जो वहां से गुजर रही थी। उस औरत ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खिंच लिया था क्युकी वो मेरी तरफ देखती ही जा रही थी। फिर जब उस औरत को अदालत में पेश किया गया, तो उसने बोला की उस समय मैंने बहुत बढिया लिबास पहन रखा था, इसमें मे क्या करू, मुझे तो सभी देख रहे थे। आम तौर पर मेरी तरफ किसी की नजर उठती नहीं, इसलिए कसूर उस लिबास का है। जो इतना बढिया सिला हुआ था।

न्यायधिश ने कहा की दर्जी को बुलाया जाएं वहीं मुजरिम है, दर्जी को अदालत में हाजिर किया जाएं। वह दर्जी उस स्त्री का पती निकला और वही वह चोर भी था, जिसकी टांग टूटी थी। इसलिए यह इस जगत का सबसे आश्चर्यजनक नियम है की जैसी करनी वैसी भरनी।

जो गढ्ढे हम दुसरों के लिए खोदते हैं, उनमें स्वयं गिरना पढता है। फिर हमने चाहे वो गढूढे जान के खोदे हो या चाहे अनजाने में खोदे हो। जो कांटे हम दुसरों के लिए बोते है, वे हमारे ही पैरों में चिदेंगे। अगर फूलों के रास्तों पर चलना हो | तो सभी के रास्तों पर फूल बिछाकर चलना होगा। | क्योंकि हमें वहीं मिलता है जो हम देते है।

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जैसी करनी वैसी भरनी कहानी

Story 2

मनष्य अपने कर्मों का फल प्राप्त करता है। अच्छे कर्म करने से अच्छा ही फल मिलता है।

तलसी दास के शब्दों में – “जो जस करे सो तस फल चाखा।” निम्नांकित कहानी इस तथ्य का प्रमाण है –

एक बार की बात है कि एक हाथी प्रतिदिन अपने महावत के साथ पानी पीने के लिए तालाब पर जाता था। मार्ग में एक दर्जी की दुकान आती थी। जब हाथी दर्जी की दुकान के सामने आता तो दर्जी उसे सदैव कुछ न कुछ खाने को देता। इससे हाथी बहुत प्रसन्न रहता था।

एक दिन दर्जी किसी बात पर नाराज था। हाथी प्रतिदिन की भान्ति दर्जी की दुकान पर आया और कुछ पाने की इच्छा से उसने अपनी सूंड आगे बढ़ाई। दर्जी पहले ही जला-भुना बैठा था। उसने हाथी की सूँड पर सूई चुभो दी। इससे हाथी बहुत ही नाराज हुआ और सीधा तालाब पर पानी पीने पहुँच गया। हाथी के मन में सुई चुभाने का बहुत ही गुस्सा था। उसने दर्जी से बदला लेने की भावना से अपनी सँड में कीचड़ वाला गन्दा पानी भर लिया। पानी पीकर और कीचड़ वाला पानी सैंड में भर कर वह वापिस दर्जी की दुकान पर आ गया। हाथी ने अपनी सूँड का सारा गन्दा पानी दर्जी की दुकान के कपड़ों पर फेंक दिया। जिससे सारे कपड़े गन्दे हो गए। दर्जी को अपनी करनी पर भी बहुत पछतावा हो रहा था कि क्यों उसने क्रोध में आकर हाथी के साथ ऐसा व्यवहार किया। हाथी ने उसके लिए जैसी करनी वैसी, भरनी वाली कहावत सत्य सिद्ध कर दी।

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