Lala Lajpat Rai Essay in Hindi लाला लाजपत राय पर निबंध हिंदी में

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hindiinhindi Lala Lajpat Rai Essay in Hindi

Lala Lajpat Rai Essay in Hindi 200 Words

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 में लुधियाना जिले के जगरांव नामक गाँव में मुन्शी राधाकृष्ण के घर पर हुआ था। अपने मैट्रिक के बाद मुखत्यारी की परीक्षा पास की और हिसार में मुखत्यारी करने लगे। फिर आपने लाहौर से वकालत पास की और हिसार तथा लौहार में वकालत करने लगे। जब भी देश भूकम्प, अकाल या महामारी का शिकार हुआ, तो लाला लाजपत राय जी ने तन-मन-धन- से जनता की सेवा की। लाला जी पक्के आर्य समाजी तथा देश भक्त थे। देश की स्वतन्त्र कराने के लिए आप कांग्रेस पार्टी में मिल गये। आपके भाषणों को सुनकर अंग्रेज सरकार तिलमिला उठी जिसके कारण आपको देश से निकाल दिया गया।

विदेशों में भी आप भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार करते रहे। देश की आजादी के लिए आप कई बार जेल भी गये। जब साइमन कमीशन भारत में समझौता कराने के लिए आया तो आपने लाहौर में लाखों भारतीयों को लेकर साइमन कमीशन को काले झण्डे दिखाए और उसका विरोध किया। इस पर अंग्रेजी सिपाहियों ने आपके सिर पर लाठियॉ मारी, जिससे आप बहुत धायल हो गये थे तथा 17 नवम्बर 1928 को आपका निधन हो गया। मृत्यु के समय लाला लाजपत राय जी ने कहा था कि मेरे शरीर पर पड़ी एक–एक लाठी अंग्रेजी शासन के ताबूत में कील साबित होगी और वो बात सत्य हुई और देश स्वतन्त्र हुआ। आपका बलिदान भारतीयों के लिए स्वतन्त्रता की देवी को लाया ।

Lala Lajpat Rai Essay in Hindi 500 Words

भूमिका

भारत के इतिहास में ऐसे वीर पुरुष हुए हैं, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। भारत को आजाद करवाने के लिए लाल, बाल और पाल जी ने तो धूम मचा दी थी (लाल-लाला लाजपत राय, बाल- बाल गंगाधर तिलक एवं पाल-विपिन चंद्र पाल) लाला लाजपतराय जी के नेत्रों में भावुकता और तेजस्विता की सम्मिलित रोशनी झलकती थी जो सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे।

जन्म एवं शिक्षा

आपका जन्म जिला फिरोजपुर के दुढिके गाँव में 28 जनवरी, सन् 1865 में हुआ। इनकी माता जी गुलाब देवी, पिता का नाम लाला राधाकृष्ण था जो एक अध्यापक थे। लाला लाजपतराय जी ने मैट्रिक की परीक्षा में छात्रवृत्ति प्राप्त की। फिर सरकारी कॉलेज से उन्होंने एम.ए. की परीक्षा पास की एवं कॉलेज दल के नेता रहे। इसके बाद 1886 ई. में कानून की उपाधि ली।

समाज-कल्याण कार्य

वकालत पास करके पहले वे जगराओं में रहे। इसके बाद हिसार आकर वहाँ ये तीन वर्ष तक नगरपालिका के प्रधान बने। इसके बाद लाहौर चले गए। वहाँ पर आपको आर्य समाज की सेवा करने का मौका मिला। लाला जी ने गुरुदत्त और महात्मा हँसराज अपने साथियों के साथ मिलकर डी.ए.वी. कॉलेज की बड़ी सेवा की। पहले इनका कार्यक्षेत्र आर्य समाज था बाद में आप राष्ट्रीय कार्यों में भाग लेने लगे। उन्होंने अकाल पीड़ितों की सहायता के साथ-साथ अनाथालय भी खोले। उन्होंने ‘वन्दे मातरम’ नामक समाचार-पत्र का सम्पादन भी किया। लाला लाजपतराय जी विदेशों में भी गए। वहां जाकर उन्होंने भारतवासियों के कल्याण के कार्य किए। आप ग़रीबों और अछूतों की बहुत सेवा करते थे। जहाँ कहीं भी अकाल पड़ता, महामारी या कोई मुसीबत आती, लाला जी अपने दल के साथ वहाँ पहुँच जाते। वैसे तो समाज सेवा भी देश सेवा ही है, परन्तु आप राजनैतिक कामों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेते थे।

कांग्रेस का बंटवारा

1907 ई. में कांग्रेस नरम दल तथा गरम दल में बँट गई। नरम दल के नेता महात्मा गांधी जी थे। पर गरम दल के नेता बाल गंगाधर तिलक, विपन चंद्र पाल और लाला लाजपतराय जी थे। 1907 ई. में आप को गिरफ्तार कर माँडले जेल में भेज दिया गया पर आपकी तबीयत ख़राब होने के कारण आपको रिहा कर दिया। एक समय आया जब लाला जी और पंजाब पर्यायवाची हो गये। उस समय स्वाभाविक ही था कि देश-भर में निर्विवाद रूप लाला जी को “पंजाब केसरी” की उपाधि से विभूषित किया गया। लाला जी जैसे पुराने और प्रमुख कांग्रेसी का इस प्रकार कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाना और कांग्रेस के विरोध में लड़ना देशवासियों को आश्चर्यजनक प्रतीत हुआ। परन्तु जो लोग लाला जी की तबीयत को जानते थे उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ। लाला जी में भावुकता की प्रधानता थी। उनकी शानदार शक्ति का एक रहस्य था। उनके मस्तिष्क और हृदय में प्रायः संघर्ष हो जाया करता था।

संघर्ष से भरा जीवन

जब आप अमेरिका गये तब आपने भारत वापस आना चाहा पर अंग्रेजों ने आज्ञा न दी इस समय लाला जी ने यूरोप में अलग-अलग जगहों पर जाकर भाषण दिये। 1918 ई. में आप भारत वापस आये। कोलकाता कांग्रेस के सम्मेलन में आप सभापति बने। 1923 ई. में आप हिंद महासभा के मैंबर बने।

साइमन कमीशन का विरोध

30 अक्तूबर, 1928 ई. को लाला जी, भगत सिंह और अन्य साथियों के साथ साइमन कमीशन का विरोध करने के लिए लाहौर में जलूस का नेतृत्व कर रहे थे। जलूस “साइमन वापिस जाओ” के नारे लगा रहा था। पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज शुरू कर दिया।

शहीदी

वहाँ पुलिस द्वारा लाठीचार्ज में लाला जी काफ़ी घायल होने के कारण 17 नवम्बर 1928 को शहादत का जाम पी गए।

“मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी. ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी”
– लाला लाजपत राय

उनके ये अन्तिम वाक्य अंग्रेजी सरकार के लिए सच में कील बन गए। शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने लाला जी के कत्ल का बदला लिया। लाला लाजपतराय जी के इस देश में शांति और अमन कायम करने एवं स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान के लिए सदैव अमर रहेंगे।

Lala Lajpat Rai Essay in Hindi 800 Words

भारत के पंजाब प्रदेश में जन्मे लाजपत राय देश के अमर क्रांतिकारी व स्वतन्त्रता सेनानी थे। सन् 1865 ई. में एक छोटे से गाँव में जन्मे लाला लाजपत राय ने देश भक्ति में वे आदर्श स्थापित किए जिसके लिए संपूर्ण देश उनका ऋणी रहेगा। मातृभूमि के लिए उनका बलिदान आज भी देश के नागरिकों में देशभक्ति की। भावना का संचार करता है। सम्पूर्ण भारत उन्हें ‘पंजाब केसरी’ के नाम से जानता है।

लाला लाजपत राय वकालत का कार्य करते थे। परन्तु पराधीन भारत का दर्द उन्हें हमेशा कचोटता रहता था। गाँधी जी के सम्पर्क में आने पर वे उनसे अत्याधिक प्रभावित हुए तथा बाद में अपने व्यवसाय को तिलांजलि देकर वे समर्पित भाव से गाँधी जी द्वारा चलाए गए स्वतन्त्रता आंदोलन में शामिल हो गए। वे सदैव अंग्रेजों व अंग्रेजी सरकार का विरोध करते रहे जिससे क्षुब्ध अंग्रेजों ने सन् 1907 ई. में उन्हें बर्मा जेल में डाल दिया। जेल से लौटने के पश्चात् वे और भी अधिक सक्रिय हो गए। उन्होंने महात्मा गाँधी की अध्यक्षता में होने वाले असहयोग आंदोलन में उनका खुलकर साथ दिया। उन्हें कई बार अंग्रेजों ने जेल भेजा परन्तु वे अपने उद्देश्य से तनिक भी विचलित नहीं हुए।

भारत से स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान जब साईमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस द्वारा उसका खुलकर विरोध किया गया। साईमन कमीशन की नियुक्ति हालांकि 1926 ई. में ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी, परन्तु इसका भारत आगमन सन् 1928 में हुआ था। लाला लाजपत राय उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। लाहौर में साईमन कमीशन के विरोध में वे विशाल रैली को संबोधित कर रहे थे तब अंग्रेजों ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया। उस घातक चोट के तीन सप्ताह पश्चात् भारत माता का यह वीर सपूत चिर निद्रा में लीन हो गया। समस्त देश में शोक की लहर दौड़ गई। क्रोधित व क्षुब्ध देशवासियों ने जगह-जगह आगजनी व हिंसात्मक प्रदर्शन किए। परन्तु कांग्रेस के नेताओं ने अपने प्रयासों से इसे बन्द करवाया।

लाला लाजपत राय एक सच्चे देशभक्त होने के साथ ही एक सच्चे समाज सुधारक भी थे। वे जीवन पर्यंत अछूतों के उद्धार के लिए प्रयासरत रहे। इसके अतिरिक्त उन्होंने देश में शिक्षा के क्षेत्र में कई कार्य किए। उन्होंने नारियों को भी शिक्षा का समान अधिकार देने हेतु सदैव प्रयास किए। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर अनेक विद्यालयों की स्थापना की। वे मूलतः आर्य समाज के प्रवर्तक थे। इसके अतिरिक्त वे एक प्रभावशाली वक्ता भी थे। उनकी वाणी में जोश उत्पन्न करने की वह क्षमता थी जो कमजोर व्यक्तियों को भी ओजस्वी बना देती थी।

लाला लाजपत राय एक धार्मिक व्यक्ति थे पर उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुछ कट्टरताओं और रूढ़ियों का सदैव विरोध किया। ईश्वर पर उनकी सच्ची आस्था थी। वे निडर एवं बहादुर इन्सान थे। मातृभूमि के लिए उनका त्याग और बलिदान अतुलनीय है। देश की स्वतन्त्रता के लिए उनके प्रयासों के लिए राष्ट्र उनका सदैव ऋणी रहेगा। वे एक सच्चे महामानव थे जिन्होंने सदैव मानवता का संदेश दिया। उनकी देशभक्ति, साहस और आत्म-बलिदान आज भी प्रेरणा के स्रोत बनकर हमारे हृदयों में विद्यमान हैं। इतिहास उन्हें कभी नहीं भुला सकेगा।

वास्तव में लाला लाजपत राय भारत के उन अमर स्वतन्त्रता सेनानियों में से एक थे जिन्होंने मातृभूमि की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने में अपनी ओर से पूरा प्रयत्न किया। ऐसे ही कई देशभक्तों के बलिदानों के पश्चात् देश को आज़ादी प्राप्त हुई। हमें अपनी आजादी की रक्षा इन नेताओं के आदर्शों पर चलकर ही करनी होगी। लाला लाजपत राय ने देश के नवनिर्माण का जो स्वप्न देखा था, उसे हम उनके बताए मार्ग पर चलकर साकार कर सकते हैं।

लाला जी न केवल कुशल वक्ता थे बल्कि निपुण लेखक भी थे। उनकी लिखी हुई अनेक पुस्तकें आज भी युवकों का पथ-प्रदर्शन करती हैं। लाला जी झूठी प्रशंसा से घृणा करते थे। वह स्पष्टवादी थे और गुटबन्दी से उन्हें चिढ़ थी। यही कारण है कि लक्ष्यसिद्धि के लिए यदि उन्हें हिंसा के मार्ग को अपनाना पड़ा तो वे कभी पीछे नहीं हटे। इसलिए उन्हें गर्म दल का नेता कहा जाता था।

लाला जी ऐसे व्यक्ति थे जिनकी प्रेरणा से चन्द्र शेखर आज़ाद और शहीद भगत सिंह जैसे वीर आगे बढे। लाला जी ने स्वयं अपना परिचय देते हुए लिखा : “मेरा मजहब हमपरस्ती है। मेरी जायदाद मेरी कलम है। मेरा मन्दिर मेरा दिल है।” धन्य है उज्जवल विचारों वाले लाला जी, वह मरे नहीं अमर हो गए हैं। वह भारत के जन-जन के मन में बैठ गए हैं। उसी प्राणी का पैदा होना अच्छा है जिस से देश उन्नत हो, नहीं तो इस परिवर्तनशील संसार में मरा हुआ कौन पैदा नहीं होता। सचमुच देशभक्त शहीद पूजनीय और वन्दनीय हैं। लाला जी एक महान् विभूति थे। भारतीय इतिहास में लाला जी का चारु-चरित्र सुनहरे अक्षरों में लिखा रहेगा।

Lala Lajpat Rai Essay in Hindi 1000 Words

भूमिका

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में लाजपतराय का नाम अत्यन्त आदर से लिया जाता है। पंजाब के लिए तो वे ‘केसरी’ थे। विचार और चिंतन, शक्ति और शौर्य के धनी लाला लाजपतराय भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास के दिव्य पुरुष हैं। लाला जी का समस्त जीवन त्याग, बलिदान, नि:स्वार्थ सेवा और देश की आज़ादी के लिए लगा रहा। लाला जी के हृदय में अदम्य साहस, कार्य करने की अनुपम शक्ति और स्वतन्त्रता पाने की उत्कृष्ट इच्छा थी। लाला जी जब बोलते थे तो उनकी सिंह गर्जना दिग्दिगन्त फैल जाती थी।

जीवन परिचय

स्वतन्त्रता के इस पुजारी, आज़ादी के दीवाने पंजाब केसरी लाला लाजपतराय का जन्म ज़िला फिरोज़पुर के दुढिके गांव में सन् 1805 में लाला राधाकृष्ण अग्रवाल के घर हुआ। लाला राधाकृष्ण बहुत विद्धान थे। लाला लाजपतराय भी योग्य पिता की योग्य सन्तान निकले। लाला जी प्रत्येक परीक्षा में प्रथम रहते थे। उन्होंने अनेक छात्रवृत्तियाँ भी लीं। मैट्रिक पास कर मुख्यतारी पास की। वकालत भी की और समय पाकर ख्याति प्राप्त वकील हो गए। अच्छे वक्ता तो कालेज के दिनों में ही थे। कालेज की भाषण-प्रतियोगितायों में भी लाला जी की प्रतिभा चमकी थी। यही गुण वकालत में भी रंग लाया, थोड़े दिनों में ही उनकी वकालत चमक उठी। इधर समाज के उत्थान तथा देश की स्वतन्त्रता के लिए कुछ करने की भावना भी उनके मन में समाई थी।

लाला लाजपत राय के चार भाई और एक बहिन थी। उनका विवाह मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण करने से पूर्व ही 13 वर्ष की छोटी सी अवस्था में हो गया था। उनकी पत्नी राधादेवी हिसार के एक सम्पन्न अग्रवाल परिवार की कन्या थी। सन् 1885 में उन्होंने वकालत परीक्षा पास की और 1886 में जब वे हिसार में रहने लगे तब उनका व्यवसाय अच्छी तर से व्यवस्थित हो गया था। वकालत के काम में उनकी रुचि नहीं थी और अन्ततः उन्होंने लाहौर में आर्यसमाज के वार्षिकोत्सव पर उन्होंने अपना अधिक समय आर्य समाज, शिक्षण संस्थाओं तथा देश की सेवा में अर्पित करने की घोषणा की। डी. ए. वी. कालेज लाहौर में उन्होंने तीन महीने तक अध्यापक के रूप में भी कार्य किया। वे अपनी आय का अधिकांश भाग आर्य समाज तथा डी. ए. वी. कालेज को दान कर देते थे।

लाला जी आर्य समाजी विचारधारा के व्यक्ति थे। इसलिए उनका पहला कार्य, पहला सराहनीय पग डी. ए. वी. कालेज की स्थापना थी। वह यहां पर बहुत देर तक अवैतनिक रूप में पढ़ाते रहे। लाला जी के हृदय में जनसेवा की भावनायें हिलोरे ले रही थीं। यही कारण है कि हिसार में जब अकाल पड़ा और कांगड़ा में जब भूकम्प आया तो उन्होंने जनता की तन-मन से सेवा की।

राजनीति जीवन

1907 में कांग्रेस के दो दल बन गए गर्म दल और नर्म दल। नर्म दल महात्मा गांधी का अनुयायी था। इस दल का विचार था कि संवैधानिक ढंग से अंग्रेज़ों से स्वतन्त्रता प्राप्त करो। महात्मा गांधी इस दल के नेता थे। गर्म दल का विचार था कि अंग्रेज़ उस धातु के बने हुए नहीं जो चुपचाप राज्य दे देंगे, इसीलिए आज़ादी भीख मांगने से नहीं मिलेगी, इसके लिए कुछ करना होगा। यह दल 1907 में मैदान में आया। इस दल के मुख्य रूप से तीन नेता थे बाल, पाल लाल। बाल से बालगंगाधर तिलक पाल से विपिनचन्द्र पाल और लाल से लाला लाजपतराय। जब तक तिलक जीते रह तब तक गर्म दल उभर न पाया। 1920 में तिलक की मृत्यु के पश्चात् ही गर्म दल सत्तारुढ़ हुआ। लाला जी तब तक गर्म दल के सदस्य बने रहे। 1907 में लाला जी को माण्डले की जेल में भेजा गया पर बाद में अस्वस्थता के कारण छोड़ दिया गया।

जब विश्वव्यापी प्रथम महायुद्ध छिड़ा, उस समय लाला जी अमेरिका में थे। लाला जी ने भारत आना चाहा, पर अंग्रेज़ों ने अनुमति न दी। लाला जी इस विवशता पर बहुत छटपटाये। तब लाला जी ने यूरोप के भारतीयों के लिए दो पार्टियां चलाई ‘होमरूल’ और ‘इण्डियन इन्फर्मेशन’। लाला जी ने घूम-घूम कर यूरोप में ऐसे भाषण दिए कि यूरोप की जनता उन भाषणों से प्रभावित होकर भारत के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण रखने लगी। 1918 में लाला जी यूरोप से अपने देश वापस आए। यहां उन्होंने फिर भारत में क्रान्ति की भावना पैदा कर दी। जनता में जागृति और चेतना भरी महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। अंग्रेज़ों ने फिर लाला जी को पकड़ा, पर क्षय-रोग से ग्रस्त होने के कारण छोड़ दिया। फिर लाला जी कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन के सभापति बने और मोतीलाल नेहरू के स्वराज्य दल के सदस्य बने। बाद में दोनों में मतभेद हो गया। लाला जी का विचार था कि कांग्रेस की नीति हिन्दुओं के हित में नहीं हैं, इसलिए लाला जी हिन्दू महासभा के सदस्य 1923 में बने।

सन 1928 में 30 अक्तूबर को साईमन कमीशन का बहिष्कार करना था। लाला जी ने सब भेदभाव भुला दिए। उन्होंने सैद्धान्तिक मतभेद को भुला कर इस कार्य में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और साईमन कमीशन के बहिष्कार का झण्डा अपने हाथ में लिया। लाहौर के
वों नर-नारी उस समय उनके साथ थे। जलूस “साईमन कमीशन गो बैक” (वापस जाओ) के नारे लगाता हुआ आगे बढ़ रहा था। पुलिस ने जलूस को वापस जाने के लिए कहा, पर वीर लाजपतराय पुलिस की धमकियों से कब डरने वाले थे ? घुड़दौड़ की गई। पर आज़ादी के परवाने कब फिरने वाले थे ? मैजिस्ट्रेट का हुक्म हुआ लाठीचार्ज। लाला जी की छाती पर लाठियां पड़ने लगीं पर वीर सेनापति डटा रहा। सांझ को लाहौर में शाहालमी दरवाजे द भीड के सामने भाषण देते हुए लाला जी ने कहा, “मेरी छाती पर पड़ी हुई प्रत्येक लाठी भारत में अंग्रेज़ी साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी और उसे चैन से न बैठने देगी।”

लाला जी की उक्ति अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई। 15 अगस्त, 1947 को सचमुच अंग्रेज़ भारत छोड़ कर चले गए। लाला जी का वृद्ध शरीर लाठियों की उस पीड़ा को सहन न कर सका। इस नश्वर शरीर को छोड़ कर उन्होंने अमरत्व प्राप्त किया।

व्यक्तित्व

लाला जी न केवल कुशल वक्ता थे बल्कि निपुण लेखक भी थे। उनकी लिखी हुई अनेक पुस्तकें आज भी युवकों का पथ-प्रदर्शन करती हैं। लाला जी झूठी प्रशंसा से घणा करते थे। वह स्पष्टवादी थे। गुटबन्दी से उन्हें चिढ़ थी। यही कारण है कि लक्ष्यसिद्धि के लिए यदि उन्हें हिंसा के मार्ग को अपनाना पड़ा तो वे कभी पीछे नहीं हटे। इसलिए उन्हें गर्म दल का नेता कहा जाता था।

लाला जी ऐसे व्यक्ति थे जिनकी प्रेरणा से चन्द्र शेखर आज़ाद, उधम सिंह और शहीद भगत सिंह जैसे वीर आगे बढ़े। लाला जी ने स्वयं अपना परिचय देते हुए लिखा : “मेरा महज़ब हमपरस्ती है। मेरी जायदाद मेरी कलम है। मेरा मन्दिर दिल है।”

धन्य है उज्जवल विचारों वाले लाला जी, वह मरे नहीं अमर हो गए हैं। भारत के जन-जन के मन में बैठ गए हैं। संस्कृत की निम्न उक्ति उनके जीवन पर अच्छी तरह से घटी है।

” सः जातः येन जातेन याति देशः समुन्नतिम् ।
परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।”

अर्थात् उसी प्राणी का पैदा होना अच्छा है जिस से देश उन्नत हो, नहीं तो इस परिवर्तनशील संसार में मरा हुआ कौन पैदा नहीं होता। सचमुच देशभक्त शहीद पूजनीय और वन्दनीय हैं।

उपंसहार-17 नवम्बर, 1928 को लाला जी इस नश्वर चोले को छोड़कर अपने यश रूपी अमर शरीर में हमारे सामने आ गए अपनी वीरता का बिगुल बजा गए पर दुर्भाग्य है कि पंजाब आज तक ऐसे वीर ओजस्वी पुत्र को जन्म न दे सका। वास्तव में सच्चे अर्थों में वही जीवित रहता है जिसके जीवन की एक-एक घटना, जिसकी वाणी का एक शब्द आने वाली पीढ़ियों को उस उत्कृष्ट पथ पर चलने के लिए प्रेरित करता है जिस पर चलते हुए इस महान् आत्मा ने अपने जीवन का बलिदान किया। लाला जी ऐसा ही महान् विभूति थे। भारतीय इतिहास में लाला जी का चारु-चरित्र स्वर्ण अक्षरों में अंकति रहेगा।

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