Bal Gangadhar Tilak in Hindi

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Biography of Bal Gangadhar Tilak in Hindi

हमारे देश में ऐसे लाखों देशभक्त हुए, जिन्होंने आजादी के लिए अपने प्राण तक गॅवा दिए। उनमें से कितने ही देशभक्तों के तो हम नाम तक नहीं जानते, लेकिन कुछ ऐसे भी है, जिनका चेहरा आज़ादी शब्द के साथ ही आँखों के आगे घूम जाता है। उन्हीं में से एक थे – बाल गंगाधर तिलक। तिलक को भारतीय स्वाधीनता संग्राम का जनक माना जाता है। वे न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी, बल्कि समाज-सुधारक और विद्वान भी थे। उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था। उनके पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक संस्कृत के विद्वान् और अध्यापक थे। जब तिलक 10 वर्ष के थे, तब उनके पिता का रत्नागिरी से पुणे स्थानांतरण हो गया। यहाँ तिलक के जीवन में काफी बदलाव आया। पुणे आने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने अपनी माँ को खो दिया। इसके छह साल बाद उनके पिता की भी मृत्यु हो गई। जब वे ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब उनका विवाह सत्यभामा से कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने दक्कन कॉलेज में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने प्रथम श्रेणी में गणित स्नातक और एल-एल०बी० की डिग्री ली। भारतीय छात्रों को भारतीय सभ्यता और राष्ट्रीय आदर्शों की शिक्षा ज़रूर देनी चाहिए – इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने आगरकर और समाज – सुधारक विष्णु शास्त्री चिपलूणकर के साथ मिलकर ‘डेकन एजुकेशन सोसाइटी’ स्थापित की।

1890 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने गणेश चतुर्थी और शिवाजी जयंती जैसे उत्सवों के बहाने लोगों को इकट्ठा कर उनमें देशप्रेम का भाव जगाने की कोशिश की। उन्होंने लोगों को ‘स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूँगा’ जैसा क्रांतिकारी नारा दिया। उन्होंने लोगों को बाल विवाह जैसी कुरीति खत्म करने और विधवा – विवाह को अपनाने के लिए कहा। 1897 में उन पर लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काने का आरोप लगा। उन्हें डेढ़ साल के लिए जेल में डाल दिया गया। लेकिन तिलक पक्के देशभक्त थे। जेल में उनके इरादे और भी पक्के हुए। जब वे बाहर आए तो उन्होंने स्वदेशी आंदोलन छेड़ दिया और जन-जन तक यह संदेश पहुँचाया। उनके घर के बाहर ही एक बड़ा स्वदेशी बाजार लग गया।

इन्हीं दिनों कांग्रेस नरम और गरम दो दलों में बँट गई। तिलक गरम दल के नेता बने। 1906 में तिलक को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया। मुकदमा चला और उन्हें बर्मा की मांडले जेल में छह साल बिताने की सजा सुनाई गई। तिलक ने जेल में रहते हुए गीता रहस्य नाम की पुस्तक लिखी। 8 जून, 1914 को उनकी सज़ा पूरी हुई। 1916 में उन्होंने गाँव-गाँव जाकर लोगों को स्वराज के लिए अपने बनाए संगठन ‘होम रूल लीग’ में शामिल होने को कहा। इस तरह जी-जान से लड़ते हुए 1 अगस्त, 1920 को उनकी मृत्यु हो गई।

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