नारद जी का विष्णु से सुन्दर सरूप मांगना – Ramayan Picture Story Hindi

नारद जी का विष्णु से सुन्दर सरूप मांगना / Narad Ji Ka Vishnu Ji Se Sundar Sroop Mangana

Scene Number 6

पात्र : नारद जी और विष्णु जी

Ramayan Picture Story Hindi – Text Part Number 6

नारद : में ऐसा कौन सा यातन करू, जिस से ये कन्या मुझे अपना पति बना ले, और फिर में अजर, अमर और अजय हो जाऊ, भगति करता हु – तो समे थोड़ा हे, इस समय तो अति सुन्दर स्वरूप की जरूरत हे. जिसे देख कर, ये आकर्षित हो जाये, है. …. याद आया, भगत वत्सल विष्णु भगवन जी के पास जाता हु, वो मेरे परम हितेसी हे, कुछ समय के लिए उन् का स्वरुप मांग कर लता हु.

(विष्णु भगवान् का रस्ते में मिलना)

विष्णु : अरे नारद जी, बड़ी तिबरता से भागे जा रहे हो, क्या कारन हे (नारद का चरणों में गिरना)

नारद : (नारद चरणों में गिर कर) नमो नारायण भगवन. हे रमा पते, में आपकी शरण में आया हु, हे प्रभु मेरी सहायता कीजिये, किरपा करके आप मुझे अपना सुन्दर स्वरुप कुछ समे के लिए दे दीजिये, जिस से महाराज सिल्लिनिधि की पुत्री विश्वमोहिनी मुझे अपना पति बना ले, हे दिन नाथ इस से मेरा कलियान होगा.

विष्णु : ऐ नारद, में वो ही कार्य करूँगा जिस से तुम्हारा कलियान हो (नारद के मुँह पे हाथ फेरना, नारद जी का स्वम्बर में आना, राज कुमारी के आगे पीछे फिरना, विष्णु भगवन का आना, राज कुमारी ने विष्णु जी के गले में वरमाला दाल देनी, और चले जाना)

शिवगण : हे महामुनि नारद जी, आप कितने सुन्दर स्वरुप हे .आपके सामान संसार में कोई भी सुन्दर नहीं हे. मुनि जी अपने शीशे में अपनी सुन्दर शवि की jhalak देखीं है. नहीं देखीं तो यह लो देख लो. (शीशा दिखाना)

नारद : नारद : में तुमको श्राप देता हु. तुम दोनों राक्षश हो जाओगे. तुम ने मेरी हसी बहुत उड़ाई हे. तुम दोनों इसका फल पाओगे. अच्छा अब में विष्णु के पास जाता हु. ये मेरा हाल से बेहाल उन्हों ने किया हे, में उन को श्राप दूंगा. मेरे श्राप का फल भुगतने के लिए तैयार हो जाओ. ऐ विष्णु में आ रहा हु.

(भगवन विष्णु ने अपनी माया रचनी)

विष्णु : ऐ नारद जी, बड़े वियाकुल नजर आ रहे हो.

नारद : बस, सावधान हो जाओ, ऐ विष्णु तुम देख नहीं सकते हो. तुम्हारे मन में हमेशा शल, कपट और इर्षा का वास रहित हे. जो मन में भला बुरा अत हे, वो करते हो. बस बीएस इस का फल भुगतने के लिए तैयार हो जाओ.

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जो भेस धार कर राजा का, तुमने हे मुझ से कपट किया

तुम उसी रूप में जनम धरो, ये सत्य हे मेने श्राप दिया,

बंदर जैसा बदन किया, बन्दर कटक तुम्हारा सहायक हो,

दुःख भरे विरह में इस्तरी के, बन बन विचरो नर नायक हो.

नारद : ऐ विष्णु भगवान, तुम सदा ही अपने मन में शल, कपट और इरखा रखते हो, समुन्दर मंथन समय, शिव भोले को जहर पीला दिआ, और देवताओ, को अमृत पीला दिए, कोसतुम्ब मणि और लक्ष्मी आप ले ली, उस ने ये समझ लिआ के, मेरे सर पर कोई नहीं, जो दिल में आया सो कर दिआ, तुम कापति हो, जो श्राप मेने तुम्हे दिए हे, अब वो स्वीकार करो.

विष्णु : तथासठु, ऐसा ही होगा (ताली मरना )

नारद : हे …….. मेने जो किया सो किया, तरहे मान भगवान, मेने बहुत कटु वचन कहे, मेरा ये श्राप असत्य हो.

विष्णु :  हे नारद जी, ये सब मेरी ही इच्छा से हुआ हे.

नारद : भगवान कोई सीधर उपाए बतलाओ, जिस से ये पाप करम दूर हो. मुझ को माया नहीं वियापेगी.

विष्णु : ऐ नारद जी, अब तुम श्री शंकर भगवान जी का जाप करो, तुम को माया नहीं व्यापेगी.

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सच कहता हु शंकर सम्मान, मुझे कोई नहीं प्यारा हे.

जो दिल से न भुलाये कभी, शिव नाम का बड़ा सहारा हे.

पर शंकर की किरपा नहीं, वो मेरी भगती नहीं पाता,

ध्यान उसी का धर कर तुम, पृथ्वी पर विचरो चाहे जहा,

माया ना वियापेगी  तुमको, निर्भे हो विचरो यहां-वहां.

( नाराज जी का परनाम करना और विष्णु जी का चले जाना )

शिवगण : हे मुनि महाराज, हमने आपकी बहुत हसी की हे, जिसका फल हमने पा लिया, हम तो शिवगण हे, जो श्राप अपने दिया हे, उसको दूर करने की कोई विधि बतलाइये, हम तो आपकी शरण में हे. ( शिवगणों का चरणों में गिरना )

नारद : ऐ शिवगणों, तुमने मेरी हसी बहुत उड़ाई हे, तुम त्रेता युग में राक्षश तो जरूर बनोगे, मगर बड़े बलवान और बलशाली होंगे. तूम अपने बल से सरे विश्व को जीत लोगे, फिर भगवान के हाथो आपका मरण होगा, जिससे तुम मरण जनम के बंधन से मुक्त हो जाओगे.

शिवगण : धन्य हो तुम मुनि महाराज, धन्या हो.

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