समाजवाद और गांधीवाद पर निबंध Essay on Socialism And Gandhianism in Hindi

समाजवाद और गांधीवाद पर निबंध। Read an essay on Socialism And Gandhianism in Hindi language.

समाजवाद और गांधीवाद पर निबंध

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समाजवाद और गांधीवाद पर निबंध

‘समाजवाद’ और ‘गांधीवाद’, ये दोनों शब्द दो राजनैतिक अवधारणाएं हैं। अकेले भारतीय-समाज पर ही नहीं अपितु समग्र मानव-समाज पर इनका अत्यंत व्यापक और दीर्घकालीन प्रभाव पड़ा है। समस्त मानव-समाज ने इन दोनों ही अवधारणाओं को स्वीकार किया। वस्तुत: मानवसमाज को आधुनिक काल में अपनी मानवीय सभ्यता को विकसित करने में इन दोनों जीवन आदर्शो से व्यापक रूप से सहायता प्राप्त हुई। समाजवाद एक ऐसी मानवीय जीवन-स्थिति है, जिसमें मानव-समाज के हर प्रकार के अन्तर्विरोध एवं विषमताएं खत्म हो जाती हैं और मानव समाज एक अत्यंत उच्च सामाजिक स्थिति को प्राप्त कर लेता है। दूसरी ओर, गांधीवाद महात्मा गांधी के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विचारों एवं पद्धतियों की एक समग्र अभिव्यक्ति है। गांधीवाद को गांधीजी के जीवन-आदर्श एवं जीवन दर्शन के रूप में समझा जा सकता है। गांधीवाद एक ऐसा जीवन-दर्शन है, जिसे गांधीजी ने हर तरह की पराधीनता से मुक्ति का माध्यम स्वीकार किया है।

महात्मा गांधी बहुपठित व्यक्ति थे। उन्होंने देश-विदेश के बारे में विस्तृत रूप से अध्ययन किया था। उन्होने ‘समाजवादी विचारधारा’ और जीवन-दर्शन के संबंध में भी विस्तार से पढ़ा था। ‘समाजवाद’ की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उन्होंने एक स्थान पर लिखा है: समाजवाद एक सुन्दर शब्द है। जहाँ तक मैं जानता हूँ, समाजवाद में समाज के सारे सदस्य बराबर होते हैं, न कोई नीचा और न कोई ऊँचा। आदमी के शरीर में सिर इसलिए ऊंचा नहीं है कि वह सबसे उपर है, और पाँव के तलुवे इसलिए नीचे नहीं हैं कि वे जमीन को छूते हैं। जिस तरह मनुष्य के शरीर के सारे अंग बराबर हैं, उसी तरह समाजवाद है। इस समाजवाद में राजा और प्रजा, धनी और निर्धन, मालिक और मजदूर- सब बराबर हैं। इस तरह समाजवाद यानी अद्वैतवाद। उसमें द्वैत या भेदभाव की गुंजाइश ही नहीं है। सारी दुनिया के समाज पर नजर डालें तो हम देखेगें कि हर जगह द्वैत ही द्वैत है। एकता या अद्वैत कहीं नाम का भी नहीं दिखाई देता। वह आदमी ऊंचा है, वह आदमी नीचा है, वह हिन्दू है, वह मुसलमान है, तीसरा ईसाई है, चौथा पारसी है, पांचवाँ सिख है, छठा यहूदी है। इनमें भी बहुत सी उप-जातियां हैं। मेरे अद्वैतवाद में ये सब लोग एक हो जाते हैं। एकता में समा जाते हैं। उपर्युक्त पंक्तियों में गांधीजी ने समाजवाद की मूल प्रकृति एवं उसके चरित्र को उजागर कर दिया है।

समाजवाद की अवधारणा मूलत: औद्योगिक-विकास और समाज से जुड़ी अवधारणा है। समाजवादी विचारधारा के अनुसार पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त प्राकृतिक एवं भौतिक संसाधन समग्र रूप से सारे मानव समाज के हैं। किन्तु वास्तविकता यह है कि इन संसाधनों का अपरिमित संचयन पूंजीपति वर्ग अपने स्वार्थ साधन के लिए करता है। वह अपनी उस अमानवीय प्रवृत्ति के चलते समाज का व्यापक शोषण करता है। समाजवाद उसकी इस प्रवृत्ति का पूर्णत: विरोध करता है और वह मानता है कि पूंजीपति जिस धन का संचय करता है, वह धन वस्तुत: उन मजदूरों और कारीगरों के अथक परिश्रम का परिणाम होता है। उनका खून चूस कर ही पूंजीपति इस अप्रतिम धन का संचय करता है। समाजवाद समाज का सूक्ष्म एवं अत्यंत वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। वह समाज को दो वर्गों में विभाजित करता है। एक वर्ग होता है पूंजीपति वर्ग, जो शोषण-परक माध्यमों का उपयोग करता है और अपने स्वार्थसाधन हेतु निरंतर धन संचय करता है। दूसरा वर्ग होता है सर्वहारा वर्ग, जिसका गहरा और कठोर शोषण पूंजीपति वर्ग के द्वारा किया जाता है। आज हम जिस समाज में निवास करते हैं वह समाज मूलत: इसी औद्योगिक विकास की पूर्वपीठिका पर अवलम्बित है। व्यापक नगरीकरण और यंत्रीकरण इस समाज-व्यवस्था का मूल चरित्र है। इस समाज-व्यवस्था का मूल अंतर्विरोध वस्तुत: मजदूर और पूंजीपति का तनाव ही है। इस संदर्भ में हमारे कृषक समाज का वर्ग-चरित्र सर्वहारा वर्ग के करीब पड़ता है, क्योंकि वह भी निरन्तर जमींदारो, महाजनों आदि के शोषण तंत्र का शिकार रहा है। समाजवाद की यह मूल मान्यता है कि मानव-सभ्यता अपना वर्ग-चरित्र पहचान करके इस अमानवीय समाज-व्यवस्था को तोड़ देगी और इसमें उसका माध्यम होगी एक सशस्त्र संघर्ष-क्रांति। गांधीवाद समाज से अत्यधिक समानता रखता है। गांधीवाद का भी मूल उद्देश्य है एक ऐसी समाज-व्यवस्था जिसमें सभी मनुष्य समान हों। किसान, मजदूर आदि अर्थात् पूरा सर्वहारा वर्ग एक मानवीय-जीवन स्थिति को प्राप्त कर सके। किन्तु गांधीवाद का एक सिद्धांत यह है कि हिंसा के बल पर प्राप्त समाजवाद चिरस्थायी कभी नहीं होगा, अपितु मानवीय आदर्शों और मूल्यों को अपने जीवन में उतार कर ही समाजवाद का आदर्श प्राप्त किया जा सकता है। गांधीजी ने लिखा है ”केवल सत्यवादी, अहिंसक और पवित्र समाजवादी ही दुनिया में या हिन्दुस्तान में समाजवाद फैला सकता है।”

वस्तुत: समाजवाद और गांधीवाद दोनों ही व्यापक स्तर पर मानव समाज का हित साधन करने वाली अवधारणाएं हैं और आज का मानव समाज भी इन से अपने विकास के लिए दिशा-निर्देश प्राप्त कर सकता है।

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