What is BPO in Hindi बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग

Today we are going to discuss about what is BPO in Hindi. First, we will start with what is BPO in Hindi and meaning of Business Process Outsourcing. बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग क्या होता है।

What is BPO in Hindi

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आउटसोर्सिगं का बढ़ता प्रचलन

चाणक्य पत्रिका में आउटसोर्सिग का अर्थ इस प्रकार स्पष्ट किया गया है: “आउटसोर्सिगं शब्द बीपीओ के लिए प्रचलित है, जिसका पूरा नाम है- ‘बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग। इसका तात्पर्य है किसी बाह्य स्रोत से ठेके पर वस्तओं अथवा सेवाओं की प्राप्ति हेतु प्रयुक्त आधुनिक तकनीकी-प्रणाली। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान द्वारा अपने निर्धारित मानदण्डों के आधार पर सूचना प्रोद्योगिकी आधारित प्रक्रियाओं के प्रबंधन एवं प्रशासन संबंधी कार्य, सेवा प्रदान करने वाले बाह्य लोगों से ठेके पर कराने की प्रक्रिया ही आउटसोर्सिगं है।”

आउटसोर्सिगं का सारा काम जिन प्रमुख साधनों एवं माध्यमों के द्वारा संपन्न होता है, उनमें कम्प्यूटर, इंटरनेट, फैक्स और फोन आदि आधुनिक इलैक्ट्रोनिक तकनीकों का प्रधान स्थान है। इनके प्रयोग से समय और धन, दोनों की पर्याप्त बचत होती है और काम भी पूरी गुणवत्ता के साथ संपन्न होता है। इसी कारण आउटसोर्सिगं का एक अन्य महत्व भी स्वीकार किया जाता है। इसके द्वारा संबधित प्रतिष्ठान अथवा उद्योग समय की कमी, प्रदूषण और यातायात आदि की अनेकानेक समस्याओं से भी मुक्त हो जाता है।

भारत में आउटसोर्सिगं का प्रचलन अभी हाल में ही आरम्भ हुआ है। किन्तु इस क्षेत्र में भारत ने जिस तीव्रता के साथ विकास किया है, उसे देखकर एक सुखद आश्चर्य मन में सहज ही उमड़ आता है।

भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है। इस कारण से भारत उस तीव्रता और गतिशीलता के साथ विकास कार्यों का संयोजन नहीं कर सका है, जिस गतिशीलता और तीव्रता से वह कर सकता है। आज बदलता अर्थिक परिदृश्य हमारे मन में अनेकानेक संभवनाएं भर रहा है। ऑउटसोर्सिगं से भी इसी प्रकार की अनेक सकारात्मक संभावनाएं हमारे मन में बनी हुई हैं।

वस्तुत: भारत में ऑउटसोर्सिगं के कारण रोजगार का एक बड़ा क्षेत्र खुल गया है, इस बात से हम किसी भी प्रकार से असहमत नहीं हो सकते। आउटसोर्सिगं से दोतरफा लाभ होता है। पत्रिका ने इसे इस प्रकार से स्पष्ट किया है- “इस प्रक्रिया के द्वारा, पूंजीप्रधान देशों को न्यून-व्यय में निर्धारित कार्य संपन्न होने से लाभ होने के साथ-साथ भारत जैसे ज्यादा जनसंख्या वाले विकासशील एवं शिक्षित बेरोजगारों की बहुलता वाले देशों को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं।” पत्रिका ने इसका जो विकास मानचित्र खींचा है वह इस प्रकार है: ”भारतीय बीपीओ कारोबार में रिकार्ड वृद्धि दर्ज की जा रही है। वर्ष 2004-05 के दौरान इस उद्योग ने लगभग 5 अरब 80 करोड़ डॉलर का राजस्व अर्जित कर 44,5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। इस क्षेत्र ने वर्ष 2004-05 में आई टी उद्योग के कुल राजस्व में 50 प्रतिशत का योगदान किया है। बीपीओ कारोबार ने 2004-05 की अवधि की तुलना में इस चरण में कुल मिलाकर 56,4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्रदर्शित की है, जो किसी भी भारतीय औद्योगिक क्षेत्र से अधिक है। केवल वर्ष 2004-05 में भी इस क्षेत्र ने लगभग 95 हजार नयी नौकरियों का सृजन किया है। यदि नास्कॉम माकिसे के अनुमान पर गौर करें तो वर्ष 2008-09 तक इस कारोबार में व्यावसायियों के लिए 10 लाख से भी अधिक रोजगार सृजित होगें।”

इन आकंड़ो से ही आउटसोर्सिग के अपरिमित महत्व की कल्पना की जा सकती है। इसलिए भारत को इस क्षेत्र को और ज्यादा विकसित करने का सजग प्रयास करना चाहिए।

बीपीओ कंपनियां और रोजगार के अवसर

दुनिया की बड़ी कंपनियां, भारत को बीपीओ तो क्या सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में भी एक बड़े केन्द्र के रूप में स्वीकार नहीं कर रही थीं। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में स्थितियां इतनी तीव्रता से बदली हैं कि यह क्षेत्र भारत में सबसे अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने वाले उद्योग के रूप में तेजी से उभर रहा है।

हर साल लाखों युवक, युवतियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने वाला यह क्षेत्र अभी देश के मेट्रो शहरों तक ही सीमित है। इसका कारण है अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान होने की शर्त। लेकिन जिस तरह से इन केंद्रों में कर्मचारियों की आपूर्ति, मांग को पूरा नहीं कर पा रही है, उसके चलते इस उद्योग का मेट्रो शहरों से निकलकर दूसरे शहरों और उसके बाद छोटे शहरों तक जाना तय है।

देश में बीपीओ उद्योग को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला 1996 से 2000 का दौर, जब देश में इसे स्थापित करने की शुरूआत हुई और उद्योग ने अपने उपभोक्ताओं को साबित करके दिखाया कि भारत में उनकी मांग को पूरा करने की क्षमता है। दूसरा, वर्ष 2000 से 2003 के दौर, इसके इस अगले चरण में जोखिम को कम किया गया और आपूर्ति बढ़ाने की क्षमता पर जोर दिया गया। साथ ही व्यवसाय की साख को भी मजबूत करने पर जोर दिया गया।

उसके बाद 2003, तीसरा चरण शुरू हुआ और इस दौर में बीपीओ की संख्या में भारी वृद्धि के साथ नियामक प्रक्रिया और मानकों पर भी जोर दिया जा रहा है। यह चरण 2008 तक माना जा रहा है। इसके आधार पर ही उद्योग का अनुमान है कि बीपीओ क्षेत्र का कारोबार पिछले साल के 5 पॉइंट 2 अरब डॉलर से बढ़कर 2009 में 20 अरब डालर तक पहुँच जायेगा।

बीपीओ से जुड़े लोगों का कहना है कि यह उद्योग दिनों-दिन परिपक्व हो रहा है। अभी भारत में इसके विस्तार की अपार संभावनाएं हैं। असल में कुशल लोगों की कम संख्या और उनको हासिल करने के लिए बीपीओ कम्पनियों के बीच जो मारामारी है, उसके चलते ही नये केद्रों का रास्ता इसके लिए खुलेगा। अव बीपीओ कम्पनियां केवल युवा वर्ग का ही अपने कर्मचारी के रूप में न देखकर अधेड़ लोगों और महिलाओं को भी अपने कर्मचारियों के रूप में देख रही है, क्योंकि इस वर्ग में स्थायित्व की संभावना अधिक है। वजह साफ है, कि इस आयु वर्ग के लोग अधिक जोखिम उठाने में विश्वास नहीं रखते हैं।

छोटे शहरों में बीपीओ के विकास की काफी संभावनाएं हैं, क्योंकी वहां कि भी बौद्धिक पूंजी के रूप में शिक्षित युवा वर्ग मौजूद है। इन स्थानों पर संचार जैसी ढाँचागत सुविधाओं और बिजली तथा दूसरी ढाँचागत सुविधाओं को पहुंचाने की जरूरत है। देश में केवल 20 फीसदी लोग ही अपने घरों को छोड़कर दूसरे स्थानों पर जाने को तैयार होते हैं। ऐसे में अगर लोगों को उनके घरों के पास ही रोजगार के अवसर उपलब्ध हो जायेंगे, तो इससे बेहतर उनके लिए क्या हो सकता है?

इसके लिए हम मानव संसाधन के मोर्चे पर अधिक काम करना होगा। साथ ही यह भी एक सचाई है कि अंग्रेजी का बेहतर ज्ञान इसकी पहली अनिवार्यता है। अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है और अधिकांश बीपीओ कारोबार भी इसी भाषा में उपलब्ध हैं। यह बात अलग है कि जापानी और फ्रेंच व कुछ दूसरी युरोपीय भाषाओं में भी कारोबार की भारी संभावनाएं हैं, लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था में इन भाषाओं का ज्ञान बड़े स्तर पर उपलब्ध नहीं है। बीपीओ के साथ ही इसका दूसरा चरण के ‘बीपीओ’ (नालेज प्रोसेस आउट सोर्सिंग) के रूप में शुरू हो रहा है। जहां बीपीओ में केवल आवास और साफ्टवेयर पर उपलब्ध जानकारी ही काफी है, वहीं केपीओ में विभिन्न क्षेत्रों के कुशल लोगों की जरूरत है। कानून से जुड़ी सेवाएं, मेडिकल सेवाएं और इंजीनियरिंग से जुड़ी सेवाओं की आउटसोर्सिंग की मांग में भारी वृद्धि की उम्मीद की जा रही है। इसके लिए जहां डाक्टरों, वकीलों और इंजीनियरों की मांग में बढ़ोत्तरी होगी, वहीं इस क्षेत्र में छोटी कंपनियों के प्रवेश और अस्तित्व की संभावनाएं बढ़ जाएंगी; क्योंकि इन सेवाओं के लिए कम लोगों की जरूरत के चलते छोटे और मझौले आकार की कंपनियों से काम चलाया जा सकेगा। साथ ही, इस व्यवसाय के मैट्रो शहरों से बाहर जाने की संभावना का भी वह एक बड़ा कारण बनेगा। यही वजह है कि भारत और चीन जैसे देशों में उपलब्ध कुशल पेशेवरों की फौज का डर अब अमेरिका और यूरोपीय देशों के कुशल पेशेवरों को सताने लगा है, क्योंकि विकासशील देशों के पेशेवर कौशल के मामले में उनको प्रतिस्पर्धा देने के लिए तो तैयार हैं ही, इनके द्वारा किये जाने वाले काम की लागत पश्चिमी देशों के मुकाबले पांचवे हिस्से से भी कम है। यही वजह है कि करीब 32 अमेरिकी कंपनियों ने अपने मुनाफे को बढ़ाने और कंपनियों को बंदी से बचाने की रणनीति के तहत भारत जैसे देशों में अपने कामकाज के एक बड़े हिस्से को स्थानांतरित किया है। इनमें से एक कम्पनी ने अपनी डिजाइनिंग इकाई के लिए चेन्नई में 160 इंजीनियरों को नौकरी पर रखा है। इस तरह सैंकड़ों उदाहरण मिल रहे हैं और आने वाले समय में इनकी संख्या बढ़ेगी। अगले पांच साल में बीपीओ के इस विकसित रूप के कारोबार में 5 पॉइंट 6 गुना वृद्धि का अनुमान उद्योग लगाया जा रहा है। यही वजह है कि इस समय भारत में बीपीओ कम्पनियों की संख्या 5000 तक पहुँच गई है और वह चार लाख लोगों को प्रत्यक्ष, और करीब 10 लाख लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर मुहैया करा रही है।

इस उद्योग के कामकाज को लेकर सवाल भी खड़े हुए हैं। हमारा देश लोकतंत्र है और यहां हर किसी को अपनी बात कहने का हक है। यह बात व्यक्ति पर निर्भर करती है कि वह किसी क्षेत्र का सकारात्मक पक्ष सामने लाता है अथवा नकारात्मक पक्ष।

बीपीओ के क्षेत्र में भारत जैसे देश के लिए अपार संभावनाएं हैं। इसके चलते इस तथ्य को नहीं नकारा जा सकता है कि केवल अंग्रेजी भाषा का ज्ञान हासिल करने के जरिये रोजगार मिलने की उम्मीद को पूरा करने के साथ, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों तक को रोजगार दिलाने वाला यह क्षेत्र कृषि और वस्त्र उद्योग के बाद रोजगार देने वाले क्षेत्र के रूप में गिना जाएगा।

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