Indian Antarctic Program in Hindi Essay भारतीय अंटार्कटिक अभियान पर निबंध

Indian antarctic program in Hindi essay in 1000 words. Write an essay on Indian Antarctic Program in Hindi for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. भारतीय अंटार्कटिक अभियान।

hindiinhindi Indian Antarctic Program in Hindi Essay

Indian Antarctic Program in Hindi Essay

दक्षिण ध्रुव के चारों ओर फैला हुआ हिमाच्छादित विशाल अंटार्कटिक महाद्वीप है। इसका क्षेत्रफल 1 करोड़ 55 लाख वर्ग किलोमीटर है। लगभग 22,400 किलोमीटर लम्बा इसका समुद्र तट है जो इसको चारों ओर से घेरे हुए है। यह पहला अनुसंधान केन्द्र सन् 1899 में स्थापित किया गया था। पिछले चार-पांच दशकों में हमारी इस महाद्वीप के बारे में जानकारी पर्याप्त बढ़ रही है। इससे पूर्व अंटार्कटिक के बारे में हमारा ज्ञान प्राय: नगण्य था। सत्रहवीं शताब्दी में कई साहसी अन्वेषकों तथा नाविकों ने इस महाद्वीप की यात्राएं की और नये क्षेत्रों व द्वीपों का पता लगाया।

सारा महाद्वीप जितना विशाल है, उतना ही निर्जन, दुर्गम, भयंकर रूप से ठंडा और रहने के सर्वथा अयोग्य । इस महाद्वीप का 98 प्रतिशत भाग हिम से आच्छदित है। यहां पर उपस्थित हिम की मात्रा 3 करोड़ घन किलोमीटर के लगभग आंकी गई है। इसके चारों ओर का विशाल तटवर्ती महासागर शीतकाल में जमकर हिम बन जाता है और इस प्रदेश का क्षेत्रफल असाधारण रूप से कई लाख वर्ग किलोमीटर बढ़ जाता है। विश्व का 90 प्रतिशत हिम यहां संचित है यदि यह हिमराशी पूरी तरह पिघल कर जल बन जाये तो हमारे सागरों का जलस्तर 60 मीटर से अधिक बढ़ जायेगा और विश्व के सभी तटीय नगर जल मग्न हो जायेंगे। यहां के हिमशैल भी भीमकाय होते हैं और समुद्र में तैरते रहते हैं। वस्तुत: यह विश्व का सबसे ठंडा प्रदेश है जहां कभी-कभी तापमान -88° सेल्सियस तक नीचे आ जाता है। यहां छह महीने दिन और इतनी ही लम्बी रात होती है। सचमुच सारा महाद्वीप आश्चर्यों का एक महान संग्रहालय है।

सन् 1959 की अंटार्कटिक समझौते के अन्तर्गत यहां अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के तहत वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान तो किये जा सकते हैं परन्तु किसी तरह की सैनिक गतिविधियां, आणविक प्रयोग, आणविक कूड़े-कचरे का डालना आदि सर्वथा वर्जित है। 50 वर्षों के लिए किसी प्रकार का खनन आदि भी पूर्णत: वर्जित है। पूरा आंतरिक प्रदेश नितांत सूना और निर्जन है। यहां के सागरों में सील तथा मछलियां पाई जाती हैं। यहां एम्परर पेंग्विन भी बहुत अधिक संख्या में पाया जाता है। यह जीव है तो पक्षी, परन्तु उड़ नहीं सकता। यह बर्फ पर तेज चलने और फिसलने में माहिर होता है।

वैज्ञानिक खोजें और प्रयोग आदि की दृष्टि से अंटार्कटिक महाद्वीप का एक विशेष स्थान है। यहां समुद्री तथा खनिज संपदा के भी अनंत भंडार हैं। अत: विश्व के विभिन्न राष्ट्रों ने यहां अपने-अपने केन्द्र स्थापित कर रखे हैं। भारत के भी यहां दो स्थायी केन्द्र व अनुसंधान-स्थान हैं। प्रथम भारतीय अभियान दल ने यहां पहुंचने के लिए 1981 में 24 जुलाई के दिन गोआ से प्रस्थान किया था और कठिन यात्रा के पश्चात् 9 जनवरी, 1982 को यहां पहुंचा था। इसमें 21 सदस्य थे जिनका नेतृत्व समुद्र विकास विभाग के सचिव डॉ सैयद जहूर कासिम ने किया था। तब से हर वर्ष भारतीय अभियान दल यहां आते रहते हैं।

इस प्रथम स्थाई केन्द्र का नाम “दक्षिण गंगोत्री” रखा गया। हिमालय में ‘उत्तर गंगोत्री” है जहां से गंगा का अवतरण होता है। उसके समकक्ष और उसकी स्मृति में यह नाम दिया गया। यहां से ज्ञान और विज्ञान की एक नई गंगा का अवतरण होते देखा जा सकता है। हमारे दूसरे केन्द्र का नाम है ‘मैत्री”। यह हमारे संसार के दूसरे सभी राष्ट्रों के प्रति मित्रता, सद्भाव, शांति व सहअस्तित्व का प्रतीक है। एक समय था जब प्राचीन काल में भारत, आस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए थे और इस महाद्वीप का आकार बहुत विशारद और भीमकाय था। परन्तु धीरे-धीरे ये भाग टूटकर अलग-अलग हो गये तथा सरकते हुए आज की स्थिति में पहुंचे। भारतीय उपमहाद्वीप आज भी सरक रहा है। जब भारत एशिया महाद्वीप से टकराया तो हिमालय उठ खड़ा हुआ। इस तरह हिमालय विश्व के सभी युवा पर्वतों में से एक है।

हमारे इन दोनों केन्द्रों पर वर्ष भर कई महत्त्वपूर्ण प्रयोग और अनुसंधान चलते रहते हैं। हमारे ये अभियान और सारी योजना एक दीर्घकालीन और दूरगामी परिणामों के अंतर्गत आते हैं। इनसे कई तुरन्त चमत्कारी व आर्थिक लाभ की कामना करना सर्वथा अनुचित है। हमारी पृथ्वी के वायुमंडलीय, सागरीय, जलवायु और प्रदूषण सम्बन्धी समस्याओं को समझने और उनके हल ढूंढ निकालने की दृष्टि से ये अभियान बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। यही वह प्रयोग स्थल है जहां भारत और विश्व के अन्य राष्ट्र परस्पर सहयोग से अनेक बुनियादी शोध व खोज में संलग्न हो सकते हैं।

हमारी धरती के धुंधले अतीत को समझने में भी अंटार्कटिक एक महत्त्वपूर्ण कुंजी का काम कर सकता है। वहां के विशाल हिम के नीचे पर्यावरण सम्बन्धी इतिहास के अनेक पन्ने दबे पड़े हैं। यहां के महासागरों में समूची मानवता के लिये खनिज तथा जीवित संसाधनों के अपार स्रोत भी हैं। यहीं पर वैज्ञानिकों को हमारी ओजोन परत में छेद होने तथा उसके संभावित विनाशकारी परिणामों की जानकारी हुई थी।

संक्षेप में, अंटार्कटिक महाद्वीप की आर्थिक व व्यावसायिक सम्भावनाएं असीमित हैं। यहां का वातावरण सारे विश्व के मौसम को पूरी तरह प्रभावित करता है। वह तूफानों और मानसूनों को जन्म देता है और पृथ्वी के ताप आदि में सन्तुलन रखता है।

Essay in Hindi

Nuclear Non Proliferation Treaty in Hindi

Nuclear Power in Hindi

National Integration and unity Hindi essay

Women Empowerment Essay in Hindi

Essay on Tiger in Hindi

Thank you for reading. Don’t forget to give us your feedback.

अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करे।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *