Vigyan Se Labh Aur Hani Essay in Hindi विज्ञान के लाभ और हानि पर निबंध

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Vigyan Se Labh Aur Hani Essay in Hindi 600 Words

भूमिका

आधुनिक युग को विज्ञान का युग कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। विज्ञान में असीम शक्ति है। विज्ञान की अपार उपलब्ध्यिों ने जल, थल, नभ सब जगह जीवन के रूप रंग को चमत्कृत कर दिया है।

लाभ

19वीं और 20वीं शताब्दी विज्ञान का एक नया रूप देखने को मिलता है। इसने मानव-जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन किया है। विज्ञान के आविष्कारों ने अलादीन के चिराग की तरह मनुष्य को असीमित सुविधाएँ एवं शक्तियाँ प्रदान की हैं। विज्ञान एक जादुई चमत्कार है। बिजली से चलित प्रकाश-साधन, पंखे, कूलर, टी.वी, फ्रिज, ऐ.सी. आदि जीवनोपयोगी वस्तुओं का निर्माण वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा ही हुआ है। दूरदर्शन के आविष्कार से विश्व में घटी किसी भी घटना की सचित्र आवाज़ सहित उसी समय हम तक पहुँच जाती है। मनुष्य को ‘विज्ञान’ एक अद्भुत वरदान के रूप में प्राप्त हुआ है।

यातायात और विज्ञान

यातायात के साधनों से कम समय में मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचा दिया जाता है। साइकिल, मोटर-साइकिल, कार, बस, रेल, मैट्रो, वायुयान, जलयान आदि बहुत लाभकारी सिद्ध हुए हैं। वहीं इंटरनेट, टेलीफ़ोन, मोबाइल आदि ने हमारे संबंधों में निकटता ला दी है। रॉकेटों, विमानों तथा जलयानों ने समय को बाँध दिया है। वैज्ञानिक चाँद तक पहुँच गए है और वहाँ भी दुनिया बसाने की योजनाएँ सफ़ल होने ही वाली हैं।

नये आविष्कार

कृषि प्रधान भारत का कृषक आज विज्ञान से बनाई और विकसित बीजों, खादों, उर्वरकों, कीटनाशकों, ट्रैक्टर, ट्यूबवैल आदि का सफल प्रयोग कर अपनी उपज बढ़ा रहा है। इस क्षेत्र में नई-नई खोजें जारी है। विज्ञान की सहायता से मनुष्य ने बड़े-बड़े पहाड़ों को काट कर सुरंगें बनाई। कृत्रिम बादलों से पानी तक बरसा लिया है। रूस ने तो विज्ञान के आविष्कारों से मौसम को भी बदल दिया है।

चिकित्सा क्षेत्र में नये आविष्कार

विज्ञान के आविष्कारों के कारण एक्सरे, रेडियम एवं विद्युत चिकित्सा द्वारा शरीर के अन्दर झाँका जा सकता है। मृत समान मानव को प्राणदान दिया जा सकता है। आज कैंसर तक का इलाज सरलता से होने लगा है। अन्धे को खोई दृष्टि मिलने लगी है, हृदय बदले जा रहे हैं, मृत्युदर घटी है, औसत आयु बढ़ी है।

“देश जो है आज उन्नत विज्ञान के आविष्कार से,
चौंका रहे हैं नित्य सबको अपने नवाविष्कार से।”

रेडियो, टी.वी. हमारे एकाकीपन का अनूठा साथी है। कम्प्यूटर, मोबाइल के आविष्कारों ने तो मानव जीवन में सुविधाओं का अम्बार ही लगा दिया है। रेल, बस, वायुमान, फ़िल्म की टिकट आदि। कोई भी नाम लीजिए उसके आरक्षण की सुविधा इन्टरनेट द्वारा सर्व सुलभ हो गई है।

विज्ञान की हानियाँ

विनाशकारी प्रभाव

विज्ञान के वरदान कीटनाशक रासायनों का प्रयोग खेती की उपज तो बढ़ा रहा है किन्तु उसके दुष्प्रभाव मानव शरीर पर कैंसर, चर्म रोग इत्यादि के रूप में आमतौर पर देखे जा सकते हैं। विज्ञान के युग में टी. वी., इंटरनेट, मोबाइल आदि ने सुविधा भोगी मानव की मानसिकता पर कुप्रभाव डाला है जिसके कारण मनुष्य को ऐसी अनेक बीमारियों ने जकड़ लिया है जिनका या तो उपचार ही संभव नहीं या फिर इतना महँगा है कि उसका घर तक धुल जाता है।

यदि विज्ञान का दुरुपयोग हुआ तो इसे अभिशाप बनने में भी समय नहीं लगेगा। उदाहरण सामने है- प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में जन और धन का जितना विनाश हुआ उतना शायद सौ वर्षों में भी पूरा न हो सके। अणुबम का जो भयावह रूप हीरोशिमा और नागासाकी में सामने आया, का दृश्य आँखों के सामने आते ही दिल काँप उठता है। भोपाल गैस काँड और लुधियाना के पास दोराहा में अमोनिया गैस टैंकर से गैस के रिसने मात्र से भयंकर विनाश हुआ। बिजली जीवन में उजाला भरती है, वहीं इसके स्पर्श-मात्रा से जीवन मौत में बदल जाता है।

“घर-घर में विज्ञान का फैला आज प्रकाश
करता दोनों काम यह नव-निर्माण-विनाश।”

उपसंहार

विज्ञान का वरदान या अभिशाप होना मात्र मानव की समझ ऊपर निर्भर है। यदि वह इसका प्रयोग अपने व दूसरों के हित के लिए करे तो विज्ञान परम लाभकारी है अन्यथा विनाश के अलावा कुछ नहीं।

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भूमिका

मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है, वह ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है। मनुष्य की चिन्तन शक्ति और बुद्धि ने ही उसे अन्य प्राणियों से अलग कर दिया। जीवन की कुछ ऐसी आवश्यकताएं हैं जिनसे मनुष्य और पशु समान रूप से प्रभावित होते हैं तथा इनकी पूर्ति सभी के जीवन के लिए आवश्यकता होती है। जैसे आहार, निद्रा, मैथुन आदि। मनुष्य इनकी प्राप्ति पशु के भिन्न और साधारण दृष्टिकोण से करता है और यह सब उसकी बुद्धि तथा चिन्तन शक्ति के कारण ही होता है। मानवीय इतिहास के आरम्भ होने के साथ ही मनुष्य ने सृष्टि के अनेक रहस्यों तथा क्रिया-व्यापारों को समझने की चेष्टा की। इन प्रयासों के दौरान ही ज्ञान-विज्ञान के नए द्वार खुलते चले गए। अपने चारों ओर देखकर, तारों भरे आकाश को निहार कर, समुद्र में लहरों की जल-क्रीड़ा देखकर प्रकृति के विभिन्न रूपों को पहचान कर वह धीरे-धीरे विज्ञान के सोपानों पर चढ़ता हुआ प्रकृति को नियंत्रित करने लगा और इस बीसवीं शताब्दी तक पहुंचते-पहुंचते उसने अनेक भौतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त कर ली है।

विज्ञान और इसकी विभिन्न शाखाएं

‘विज्ञान’ शब्द का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान। विशिष्ट ज्ञान का सम्बन्ध और उसका क्षेत्र अनेक विषयों से सम्बन्धित हो सकता है। वर्तमान युग में विज्ञान जिस अर्थ में प्रयोग किया जा रहा है उसका सम्बन्ध वस्तुतः यांत्रिक उन्नति, आज की भौतिक प्रगति से ही जुड़ गया है। विज्ञान दर्शन के क्षेत्र में भी तथा साहित्य आदि के क्षेत्र में भी अर्थ दे सकता है क्योंकि किसी भी विषय का विशिष्ट ज्ञान ही विज्ञान है।

प्राचीन युग में हमारे देश में ‘दर्शन’ को विशेष महत्त्व दिया जाता था और वही ज्ञान विशेष ज्ञान माना जाता था। लेकिन पाश्चात्य संसार की भौतिक प्रगति ने एक नया दृष्टिकोण सामने रखा और इसलिए वर्तमान युग में विज्ञान के अनेक क्षेत्र सामने आने लगे। आज विज्ञान उस विशाल वट वृक्ष के समान है जिसकी अनगिनत जड़े और शाखाएं हैं। भौतिक विज्ञान, रासायनिक विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, जन्तु विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, नक्षत्र विज्ञान, विज्ञान के वे क्षेत्र हैं जिनकी अपनी-अपनी अलग-अलग अनेक शाखाएं और प्रशाखाएं हैं। जन्तु विज्ञान के क्षेत्र में तो आज कोशिका, जीवद्रव्य और भूण आदि विषयों पर ही स्वतन्त्र शाखाओं का उद्भव हुआ है। इसी प्रकार रासायनिक विज्ञान में अणु और परमाणु से भी आगे इलैक्ट्रान के रूप में रासायनिक विज्ञान की स्वतन्त्र शाखा विकसित हो चुकी है। कृषि तथा उद्योग धन्धों के क्षेत्र में भी विज्ञान की अनेकों शाखाएं पल्लवित हो रही है।

विज्ञान का रचनात्मक पक्ष

विज्ञान ने आज समस्त देश और काल को भी जीत लिया है। सम्पूर्ण विश्व को ही एक परिवार बना दिया है। शायद ही आज ऐसा कोई क्षेत्र

होगा जो विज्ञान की उपलब्धियों से अछूता है। दैनिक जीवन की सभी उपयोगी वस्तुओ से लेकर भीमाकार मशीनें विज्ञान ने निर्मित की है।

यातायात के क्षेत्र में विज्ञान ने दूरियों को समेट लिया है। द्रुतगामी वाहन, द्रुतगामी वायुयान, समुद्री जहाज़ तथा रेलगाड़ियों ने समय को भी बांध लिया है। जिन स्थानों और देशों की यात्रा की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी आज पलक झपकते ही मनष्य वही पहुंच जाता है।

प्राचीन काल में समाचार प्रेषित करने में महीनों लग जाते थे। लेकिन आज अपने कक्ष में बैठे-बैठे बेतार का तार, टैलीफोन तथा टेलीविज़न के द्वारा विश्व के कोने-कोने में समाचार भेजे जाते हैं तथा प्राप्त किये जाते हैं।

पृथ्वी-पुत्र मानव आज व्योम-पुत्र भी बन गया है और उसने चन्द्रमा पर तो कदम रख ही लिए है। शुक्र, मंगल एवं अन्य ग्रहों तक पहुंचने के लिए भी कृतसंकल्प है। विशाल दूरबीनों के द्वारा मनुष्य नीले आकाश के सारे रहस्य जान चुका है। आज भारत को अन्तरिक्ष यात्री राकेश शर्मा पक्षी की भांति आकाश में उड़ आया है। विभिन्न प्रकार के उपग्रह इन्सैट आदि आकाश में स्थिर होकर निरन्तर हमें अनेक सूचनाएं भेजते रहते हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने अद्भुत क्रांति कर दी है। हैजा, चेचक तथा अन्य भयानक महामारियां अब दिखाई नहीं पड़ती। हृदय रोग और कैंसर को जीतने के लिए विज्ञान युद्धरत हैं। शल्य चिकित्सा में अन्य अंगों की बात ही क्या है। हृदय-रोपण भी कुशलतापूर्वक किये गए हैं। ऐक्स-रे, रेडियम तथा विद्युत चिकित्सा ने मानो मरे हुए लोगों को ही प्राण दान दे दिया है। इतना ही नहीं डाक्टर हरगोबिन्द खुराना जीन्स पर भी अद्भुत प्रयोग कर रहे हैं। टैस्ट-ट्यूब बेबी अभी भी खुशहाल है। इसी प्रकार अनेक बीमारियों ने आज विज्ञान के सामने मैदान छोड़ दिया है।

विद्युत की खोज ने अन्धकार को सदा के लिए विदाई दे दी है। वातानुकूलित आरामदायक घर प्रचण्ड ग्रीष्म और सर्दी से मनुष्य की रक्षा करते हैं। विद्युत तो मानो घेरलू नौकर बन कर प्रत्येक काम कर रही है। इलैक्ट्रान तथा कम्पुयटरों और रौबाट ने नई हलचल पैदा कर दी है। विद्युत से चलने वाली रेलगाड़ियाँ हवा के वेग से चलती हैं।

धरती के गर्भ में छिपी हुई प्राकृतिक सम्पदा-तेल, कोयला और धातुएं अब वैज्ञानिक की नज़रों से छिपी नहीं रही।

मनोरंजन के क्षेत्र में चलचित्र, टेलीविज़न, रेडियो, वी. सी. आर. वीडियो गेम आदि मनोरंजन की सामग्री उपलब्ध कराते हैं।

मुद्रण विज्ञान ने ज्ञान के क्षेत्र को सुगम और सुरक्षित बना लिया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाए तथा पुस्तकें आज विश्व को ज्ञान वितरित कर रही हैं।

कृषि के क्षेत्र में और उद्योग धन्धों में विज्ञान के इतिहास को फिर से लिखा है। उर्वरक खादें, उन्नत ढंग के वैज्ञानिक यन्त्र तथा ट्रैक्टर, कम्पाईनर, थरैशर ने केवल श्रम को नहीं बचाया है उत्पादन में भी वृद्धि की है। उद्योग धन्धों में तो विज्ञान ने मशीनों का जाल बिछा दिया है।

ऊर्जा के क्षेत्र में आज सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने के प्रयास जारी हैं तथा सौर ऊर्जा घर का चूल्हा भी चलाती है तो कारें भी चलाती है।

मनुष्य जब सुबह आंख खोलता है तथा ब्रुश और पेस्ट से दांत साफ करता है तब से लेकर रात सोने तक वह अपने दैनिक कार्य में विज्ञान निर्मित उपकरणों को ही उठाता है। शरीर पर पहनने के कपड़े, कलाइयों की घड़ियां, पैन, रंग, कागज, चश्मे, ऐनक, लैंस, पंखे, हीटर, फ्रिज, प्रैस, प्रैशर कुक्कर, वाशिंग मशीन, गैस, पिसाई की मशीनें, सिलाई की मशीनें, बुनाई की मशीनें, प्लास्टिक के खिलौने और बर्तन आदि सैकड़ों उपकरण हैं जिनके बिना जीवन की कल्पना असम्भव है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि विज्ञान ने प्रकृति को दासी बना लिया है। समुद्र की अतल गहराई को नाप लिया है। आकाश के रहस्य को जान लिया है तथा अन्तरिक्ष को भी पहचान लिया है। इस प्रकार विज्ञान के सृजन पक्ष ने मनुष्य का जीवन सुखमय बना दिया है।

विज्ञान विनाशात्मक पक्ष

विज्ञान का प्रकाशमय, वरदान पक्ष अकेला ही नहीं है उसके साथ दु:खों की काली रात भी जुड़ी हुई है। विद्युत जीवन को आलौकित करती है परन्तु उसका स्पर्श-मात्र जीवन को मृत में बदल देता है। जो गैस अनेक कार्यों में उपयोगी होती है उसके रिसने से ही भोपाल की भयानक त्रासदी ने जन्म लिया है। विश्व युद्ध की तलवार आज मानव की गर्दन पर लटक रही है। नागासाकी और हिरोशिमा नगरों के विध्वंस को आज भी इतिहास नहीं भुला पाया है। ऐटम बम, हाइड्रोजन बम, कोबाल्ट बम, विमान भेदी तोपें, मशीनगनें, मिजाइलस, समुद्री माइन्स विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र हैं।

लेज़र किरणों के आविष्कार ने विश्व को मौत के मुंह में धकेल दिया है। यह किरणें प्रकाश के वेग से चलती हैं जो वास्तव में मृत्यु किरण है। अब स्टार युद्ध का खतरा विश्व के सिर पर मंडरा रहा है। वातावरण के प्रदूषण से जीवन अत्यन्त दुःखों से घिर गया है। आज रेडियो-धर्मी विकीर्ण से वनस्पति ही नहीं समुद्र भी दूषित हो गया है। उड़ते हुए बरसात के बादलों को भी रोककर भयानक सूखा उत्पन्न कराया जा सकता है और इसी प्रकार कृत्रिम भूकम्प भी जीवन के लिए विनाशकारी हो सकता है। भूमि, जल तथा आकाश में होने वाले विस्फोटों ने वायु को भी अशुद्ध कर दिया है। दैत्याकार मशीनें मनुष्य को क्षण भर में निगल लेती हैं। दुर्घटनाएं जीवन की खुशियों का शत्रु बन गई हैं।

इस प्रकार विज्ञान की अनन्त शक्तियां जीवन की हरियाली को मरुस्थल में बदल सकती है। रूस तथा अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण से विकासशील राष्ट्रों का शोषण कर रहे हैं। विज्ञान ने मनुष्य की प्राकृतिक शक्ति छीन ली है और उसे अकर्मण्य तथा भोगवादी बना दिया है।

उपसंहार

विज्ञान जीवन के लिए कल्याणकारी तभी हो सकता है जबकि उसका प्रयोग सही दिशा में किया जाए। अन्यथा यह जीवन के लिए महाकाल सिद्ध हो सकता है।

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