History of Dr Bhimrao Ambedkar in Hindi

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History of Dr Bhimrao Ambedkar in Hindi

देश में गरीबों और पिछड़ों के मसीहा माने जाने वाले डॉ० भीमराव अम्बेडकर ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समानता के अधिकार के लिए लड़ने में झोंक दिया। भारत के पहले कानून मंत्री श्री अम्बेडकर का जन्म एक दलित परिवार में 14 अप्रैल, 1891 को महू में हुआ, जो अब मध्य प्रदेश में है। वे रामजी और भीमाबाई की चौदहवीं संतान थे। रामजी ब्रिटिश सेना में काम करते थे। अंग्रेज सरकार का नियम था कि उसकी फौज के सभी कर्मी और उनके बच्चे शिक्षित हों। इसके लिए उसने दलित और पिछड़ी जातियों के अपने सैन्यकर्मियों के बच्चों के लिए खास स्कूल बनवाए थे। भीमराव ने बचपन से ही जाति के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को सहा था। स्कूल में उन्हें कक्षा में एक कोने में फर्श पर बैठना पड़ता था और शिक्षक उनकी किताबों को नहीं छूते थे। इन सब भेदभावों के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। 1908 में मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की। 1912 में उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से राजनीतिविज्ञान और अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बड़ौदा में नौकरी करने लगे।

कुछ समय बाद बड़ौदा के महाराजा ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए वज़ीफा दिया। उन्होंने अमेरिका जाकर स्नातकोत्तर और पी-एच०डी० की डिग्री प्राप्त की। यहाँ पहली बार उन्हें जाति के बंधनों के बिना खुलकर साँस लेने का मौका मिला। इसके बाद बड़ौदा सरकार ने उनका वज़ीफा रद्द कर उन्हें वापस भारत बुला लिया।

सितंबर, 1920 में वे दुबारा लंदन गए और वकील बनकर लौटे। वापस आकर उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा स्थापित की। इसका उद्देश्य पिछड़ों का राजनीतिक और सामाजिक विकास था। जब साइमन कमीशन भारत आया तो कांग्रेस ने उसका भरपूर विरोध किया और स्वतंत्र भारत के लिए स्वयं संविधान का प्रारूप बनाया। इसमें पिछड़ों के लिए कोई व्यवस्था न होने से अम्बेडकर को बहुत दुःख पहुँचा और उन्होंने कमीशन का साथ दिया। आखिरकार गांधी जी और उनके बीच पूना पैक्ट हुआ। इसके अनुसार पिछड़ों को विधायिका में आरक्षण दिया गया। 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तब उन्हें कानून मंत्री बनाया गया। इसके बाद उन्हें संविधान निर्माण के लिए बनी प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। 26 नवंबर, 1949 को उनके द्वारा प्रस्तुत संविधान के प्रारूप को स्वीकार किया गया। उनके द्वारा प्रस्तावित हिंदू कोड बिल को स्वीकार न किए जाने से हताश अम्बेडकर ने इस्तीफा दे दिया। 6 दिसंबर, 1956 को उनकी नींद में ही मृत्यु हो गई। 1990 में उन्हें देश को दी अपनी सेवाओं के लिए ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया।

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