Essay on Delhi in Hindi भारत की राजधानी दिल्ली पर निबंध

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Hindiinhindi Essay on Delhi in Hindi

Essay on Delhi in Hindi 200 Words

विचार-बिंदु – • भारत की राजधानी • संपूर्ण भारत की प्रतिनिधि • प्राचीन इतिहास और नवीन संस्कृति का संगम • हलचल से भरी नगरी • शिक्षा में अग्रणी • मनोरंजन का खजाना।

भारत की राजधानी दिल्ली को लोग ‘भारत का दिल’ कहते हैं। दिल्ली में हर प्रदेश, हर प्रांत, हर जिले, हर नगर, हर बोली, हर भाषा, हर धर्म, हर संस्कृति, हर कला, हर ज्ञान का संगम मिल जाएगा। एक प्रकार से दिल्ली में पूरे भारत के दर्शन किए जा सकते हैं। दिल्ली पर एक नज़र डालें तो हमें पांडवों के प्राचीन अवशेष, मुगलों की दास्तान कहती मीनारें, मसजिदें, दरवाजे, किले; अंग्रेजों की कहानी बतलाते संसद-भवन, कनॉट प्लेस आदि भवन अपनी ओर खींचते दिखाई देते हैं।

दिल्ली के निवासियों की धड़कन शेष भारत से ज्यादा तेज है। यहाँ पूरे भारत के दिग्गज नेता रोज राजनीति की नई शतरंजी चालों से माहौल गर्म रखते हैं। विश्वकप खेल हों, अंतरराष्ट्रीय शो हों, विश्वविख्यात प्रदर्शनियाँ हों, वैज्ञानिक करिश्मे हों, सबके सब दिल्ली को अपना रूप-वैभव दिखाकर प्रसन्न होते हैं। दिल्ली में शिक्षा के श्रेष्ठतम संस्थान उपलब्ध हैं। भारत की सभी विद्याएँ यहाँ के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। मनोरंजन के क्षेत्र में दिल्ली के पास अनंत साधन हैं। बड़े-बड़े उपवन, ऐतिहासिक स्थल, व्यस्त बाजार, बड़े-बड़े स्टेडियम, विशाल हरित मैदान सबको मंत्रमुग्ध कर देते हैं। सचमुच दिल्ली मनोरंजन का जादुई पिटारा है।

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Essay on Delhi in Hindi 500 Words

मैं दिल्ली हूँ। मेरी कहानी बड़ी लंबी है, बड़ी पुरानी भी। इतनी पुरानी कि मुझे स्वयं भी याद नहीं कि पहली बार मझे कब और किसने बसाया ? जहाँ तक याद आता है। खांडव वन को जलाकर पांडवों ने इंद्रप्रस्थ नाम से पहली बार मुझे बसाया था। पुराना किला, भैरव मंदिर तथा महरौली का योगमाया मंदिर उसी काल के बने हुए बताए जाते हैं। उसके बाद मैं हस्तिनापुर और बाद में दिल्ली बनी। दिल्ली नाम कैसे पड़ा? इसके बारे में एक जनकथा प्रसिद्ध है – एक राजा ने अपने राज्य की स्थिरता के लिए जमीन में एक कील गाड़ी थी। जब कील को उखाड़ा गया तो उस पर खून के निशान पाए गए। माना गया कि ये निशान शेषनाग के सिर में कील गड जाने के थे। अतः कील को पुन: गाड़ा गया मगर वह ढीली रह गई। यहीं से ढीली, ढिल्ली शब्द बदलते-बदलते दिल्ली बन गया और यही हो गई हमारी दिल्ली। गुप्त साम्राज्य के प्रतापी सम्राटों ने मुझे किसी भाव भी न पूछा।

बहुत वर्षों के बाद राजा अनंगपाल ने मुझे अपनी राजधानी बनाया। उसके नाती पृथ्वीराज चौहान ने मुझे आदर दिया। आज का महरौली क्षेत्र और कुतुबमीनार का संबंध पृथ्वीराज से ही है। कुतुबमीनार का असली नाम बेला स्तंभ है जिस पर चढ़कर राजकुमारी बेला यमुना जी के दर्शन किया करती थी। मुहम्मद गौरी ने मुझ पर सत्रह बार आक्रमण किया। सोलह बार हारे गौरी ने सत्रहवीं बार पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर दिया। गुलाम वंश के अनेक बादशाहों के बाद तुगलक, खिलजी और सैय्यदों ने भी मुझ पर राज्य किया। फिर आए लोदी और लोदियों को हराकर आए मुगल। मुगल शासकों ने मेरे साथ आगरा की भी ताज पहनाया। शाहजहाँ ने यमुना किनारे मुझे भी एक लालकिला दिया। मैंने उसे न केवल सजाकर रखा बल्कि देश के गौरव का प्रतीक बना दिया।

अंग्रेजों ने भी मुझे अपनी राजधानी बनाया। मैं एक ऐतिहासिक नगरी हैं। यहाँ हुमायूँ का मकबरा, मा मस्जिद, लोदी का मकबरा, निजामुद्दीन की दरगाह, जंतर-मंतर आदि अनेक दर्शनीय स्थान हैं। मेरे राजधानी होने के कारण, नवनिर्मित भवन भी गगनचुंबी होने का प्रयास करते दिखाई पड़ रहे हैं। राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, गांधी संग्रहालय, अनेकों स्टेडियम, होटल, शांतिवन, विजय घाट, राजघाट, कमल मंदिर आदि कितने ही वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने यहाँ विद्यमान हैं।

मेरे आकर्षण का केंद्र हैं – दिल्ली के बाजार, जहाँ पूरे भारत के व्यापारी सामान खरीदने आते हैं। राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र, राष्ट्रीय पुस्तकालय, जवाहरलाल नेहरू प्लेनेटोरियम आदि विद्यार्थियों के ज्ञान और प्रेरणा के भंडार है। यात्रियों की सहायता के लिए अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन और बस अड्डा हमेशा तत्पर हैं। मेट्रो सेवा भी उनकी सुविधा के लिए तत्पर है। हर वर्ष मुझे बदला जाता है। हजारों इमारतें बनती हैं और अनेकों फ्लाई ओवरों का निर्माण किया जाता है।

यहाँ सारे राष्ट्रीय पर्व बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर झंडा फहराकर देश के नाम संदेश देकर मुझे गौरवान्वित करते हैं। 26 जनवरी को विजय चौक पर महामहिम राष्ट्रपति सलामी लेते हैं। इस महान परिवर्तनशील नगरी-दिल्ली को देखने के लिए अनेक देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं।

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Essay on Delhi in Hindi 600 Words

ऐतिहासिक शहर राजधानी दिल्ली

दिल्ली भारत के केन्द्र में स्थित होने के कारण भारत की राजधानी रही है। पाण्डवों के काल से लेकर अंग्रेजों के काल तक यह सदैव ही भारत की राजधानी रही है इसलिए देश के आजाद होने पर भी स्वतंत्र भारत की राजधानी, दिल्ली ही बनी भले ही इसका स्थान थोड़ा बहुत परिवर्तित होता रहा हो। मध्यकालीन भारत के इतिहास में मुहम्मद तुगलक ने एक बार अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद करने की कोशिश की थी, जिसके लिए उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। दिल्ली का अतीत तो गौरवशाली रहा ही है, वर्तमान भी गौरवपूर्ण है।

राजधानी दिल्ली में अनेक ऐतिहासिक एवं आधुनिक दर्शनीय स्थल हैं। विश्व प्रसिद्ध कुतुबमीनार जो लगभग 1000 वर्ष पुरानी है, मेहरौली में स्थित है। उसके बाद मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया लाल किला, जहाँ प्रतिवर्ष 15 अगस्त के दिन तिरंगा फहराया जाता है। लाल किले के ठीक सामने जामा मस्जिद स्थित है। जामा मस्जिद से थोड़ी दूर आगे जाने पर कश्मीरी गेट और जनरल पोस्ट आफिस है। दिल्ली गेट जो दरियागंज के पास में स्थित है और वहीं पर खूनी दरवाजा है जहाँ न जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों को 1857 में फांसी पर लटका दिया गया था। थोड़ा और आगे जाने पर नेहरु डाल म्युजियम तथा बाल भवन जैसे दर्शनीय स्थल हैं।

लाल किले के पीछे राजघाट स्थित है जहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का समाधि-स्थल है। वहीं पास में ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरु का समाधि-स्थल है, जो शांति वन के नाम से विख्यात है। लाल बहादुर शास्त्री की समाधि विजय घाट तथा इन्दिरा गांधी की समाधि शक्ति स्थल के नाम से है। इन सब समाधियों को हम राष्ट्र के गौरव स्थल रूप में भी मान सकते हैं। इसके अलावा निजामुद्दीन औलिया की मजार, अमीर-खुसरो की मजार, हुँमायू का मकबरा आदि अनेक दर्शनीय स्थल है।

पुराना किला जो पाण्डवों के किले के नाम से विख्यात है, इसी के पास में स्थित है चिड़ियाघर। यहाँ कई प्रकार के पशु-पक्षी आगन्तुक दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करते हैं। कनाट प्लेस दिल्ली का दिल है। इसमें भी अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिसमें हनुमान मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जी की 140 फुट ऊँची प्रतिमा लगी है। गोल मार्केट के सामने विश्व प्रसिद्ध विरला मंदिर स्थित है। पाण्डव नगर में स्थित अक्षरधाम मंदिर जो 200 करोड़ रुपये की लागत से बना है, एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है।

दिल्ली का ओखला बेराज एक अच्छा पिकनिक स्थल है। योगमाया का मन्दिर, फूल वालों की सैर स्थल, छतरपुर स्थित देवी-मन्दिर, अशोक की लाट आदि अनेक दर्शनीय स्थल हैं। बदरपुर की सीमा के पास स्थित सूरज कुण्ड एक विकसित पर्यटन स्थल है।

कनॉट प्लेस का वातावरण भी दिल्ली के दर्शनीय स्थलों में अपना एक अलग स्थान रखता है। यहां अनेक दर्शनीय पार्क हैं जिनमें प्रमुख है: लोदी गार्डन, ताल कटोरा गार्डन, जैनशांति पार्क और बुद्ध जयंती पार्क। संसद भवन, राष्ट्रपति भवन आदि भी दर्शनीय है। इससे कुछ दूरी पर ठीक सामने इंडिया गेट स्थित है, जहाँ हमेशा ही अमर जवान ज्योति प्रज्वलित होती रहती है। इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन के बीच में राजपथ स्थित है जहाँ 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की भव्य परेड हर वर्ष निकलती है। इसमें भारत के सभी राज्यों की झांकियां तथा महत्वपूर्ण युद्ध सामग्री प्रदर्शित की जाती है और अंत में वायुयानों द्वारा पुष्प वर्षा की जाती है। इस प्रकार दिल्ली में नए पुराने सभी प्रकार के दर्शनीय स्थल मौजूद हैं जो कि भारत के ही नहीं, विदेशी पर्यटकों को भी अपनी तरफ आकर्षित करती है।

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दिल्ली के प्रमुख दर्शनीय स्थल

दिल्ली भारत की राजधानी होने के साथ-साथ एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल भी है। हजारों की संख्या में यहाँ पर्यटकों का आवागमन निरन्तर होता रहता है। भारत के अन्य हिस्सों से जितने लोग यहाँ घूमने के लिए आते हैं, उससे कई गुना लोग विदेशों से यहाँ पर्यटक के रूप में हर साल आते हैं। दिल्ली के प्रमुख दर्शनीय स्थल कौन-कौन से हैं, इसकी थोड़ी-बहुत जानकारी स्वयं आपको भी होगी। कुछ लोग ‘लाल किले’ को ही दिल्ली की पहचान मानते हैं। किन्तु दिल्ली में एक मात्र ‘लाल किला’ ही नहीं है, अपितु और भी अनेक किले, स्मारक, गुम्बद और मकबरे हैं जो हमें हमारे मध्यकालीन इतिहास से रूबरू कराते हैं। आप सभी ने इतिहास की पुस्तकों से इन सभी के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी अवश्य प्राप्त की होगी। आपके मन में इनको देखने की उत्कंठा भी अवश्य होगी। तो फिर आइये, हम आपको दिल्ली के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर कराते हैं।

दिल्ली की एक पहचान है ‘लाल किला’। आपने इसे अवश्य देखा होगा। आजकल जहाँ अन्तर्राष्ट्रीय बस अड्डा है और चाँदनी चौक का पुराना बाजार है, ठीक उसी के पास है प्रसिद्ध मुगल शासक शाहजहाँ के द्वारा बनवाया गया दिल्ली का लाल किला। अगर आप कभी अन्तर्राष्ट्रीय बस अड्डे से मुद्रिका बस में बैठ कर राजघाट की ओर गए होंगे तब आप लाल किले की प्राचीर से ही गुजरे होंगे। यह बस लाल किले का एक लम्बा चक्कर लगाते हुए फिर राजघाट की तरफ चली जाती है, जो हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का समाधिस्थल हैं। आपने अगर कभी इस बस में बैठकर लाल किले को देखा होगा, तो आपने सफेद-संगमरमर से बने महल देखे होंगे, जो युगों के अंतराल को पार कर आज भी अपने अद्वितीय सौन्दर्य की छटा बिखेर रहे हैं। लाल किले के दो बड़े प्रवेश द्वार हैं। लाल किले के अन्दर का दृश्य अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है। वहाँ बड़े-बड़े महल बने हुए हैं। इनमें सबसे ज्यादा आकर्षक है ‘खारा महल’। यह महल अपने चरम वैभव और अपने अंतिम पराभव दोनों का एक साथ गवाह रहा है। आपने अगर लाल किले का भ्रमण किया है तो आपने इसके अन्दर कुछ यूरोपीयन शैली की ईमारतों को भी देखा होगा। यह अंग्रेजी शासन की देन है। इस समय तक मुगल साम्राज्य पूरी तरह से विखर चुका था। लाल किले में ‘मीना-बाजार’ आज भी लगता है।

लाल किले से कुछ दूरी पर है ‘पुराना किला’। कहा जाता है कि यह किला मूलत: पांडवों ने बनवाया था। इस किले पर अकबर महान ने भी शासन किया था। यह ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों के लिए एक अन्य मनपसन्द स्थल है। यह किला प्रगति-मैदान के पास में बना हुआ है। इसमें शेरशाह सूरी का मकबरा विशेष रूप से पर्यटकों को आकर्षित करता है। इस किले के पास ही एक झील है जिसमें नौका विहार की सुविधा है। इस किले का भ्रमण करने का कभी मौका मिले तो इस झील में नौका विहार का आनंद अवश्य लीजिए।

इस प्रकार हुमांयूँ का मकबरा, कुतुब मीनार, तुगलकाबाद का किला, जामा मस्जिद, जामा मस्जिद और इंडिया गेट आदि ऐतिहासिक और दर्शनीय स्थल हैं। इसी के साथ यहां धार्मिक प्रवृत्ति के लोग छतरपुर मन्दिर, लोटस टेम्पल, विड़ला मन्दिर, साई मन्दिर और अक्षर धाम मन्दिर आदि स्थलों पर भी अपनी धर्म अपनी धर्म भावना की पुष्टि करने के उद्देश्य से यहाँ हर साल आते हैं।

इसके बाद तीसरे स्थान पर दिल्ली के जिन दर्शनीय स्थलों का नाम आता है वह है दिल्ली के प्रमुख बाजार। दिल्ली पुराने समय से ही एक प्रतिष्ठित व्यापारिक-स्थल रहा है। किन्तु आज दिल्ली के कनि-कोने में लगने वाले छोटे बडे बाजार आपको देखने को मिल जायेंगे।” फिर भी जिन बाज़ारो की प्रासाद्ध दूर-दूर तक फैली हुई है उनमें चांदनी चौक बाजार, लाजपत नगर मार्केट, सरोजनी नगर मार्केट, जनपथ, कमला मार्केट, सेन्टल मार्केट, करोलबाग़ आदि प्रमुख हैं। इन बाजारों में पालिका बाजार का नाम महत्वपूर्ण है। ।

दिल्ली के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की गिनती में इन सभी को गिना जाता है। दूर-दराज से लोग इन स्थलों की सूची बनाकर चलते हैं और इनमें घूमते-फिरते नजर आते हैं।

Essay on Delhi in Hindi 800 Words

दिल्ली शहर की आत्मकथा

मैं हूँ दिल्ली। भारत की राजधानी दिल्ली। मेरे रंग, रूप और आकार ने अपने भीतर युगों का इतिहास छिपा रखा है। मेरे खंडहर मेरे इतिहास की गौरव गाथा गाते हैं। मैंने अनेक सम्राटों का उत्थान व पतन देखा है। कितने ही आततायी यहाँ समय-समय पर आए और सब काल के ग्रास बन गए। उन सबकी कटु व मधुर स्मृतियाँ लिए मैं आज भी जीवित हैं।

आज से सहस्रों वर्ष पूर्व महाभारत काल में पांडव यहाँ आए। पांडव राजा युधिष्ठिर ने मुझे इंद्रप्रस्थ नाम दिया। उन्होंने यहाँ महल व मंदिरों का निर्माण कराया। मेरे जेहन में बसी अरावली की पर्वत श्रृंखलाएँ साक्षी हैं कि तब मैं उस वैभव संपन्नता को देखकर कितनी प्रसन्न हुई थी।

उसके बाद पृथ्वीराज चौहान, मुहम्मद गौरी आए और उन्हें भी दिल्ली ही भायी। यहाँ तक कि गुलाम वंश के राजाओं ने भी मुझे गौरव प्रदान किया। खिलजी वंश का अधिकार छीनकर यहाँ तुगलकाबाद बसाया गया। मुगल बादशाहो ने भी मेरे रूप-रंग को सँवारा। मैंने राजसत्ता की होड़ में जूझनेवाले अनेक सम्राटों को बनते-बिगड़ते देखा।

मुगल सम्राट शाहजहाँ ने यहाँ लाल किले का निर्माण कराया। उन दिनों शहर में घुसने के लिए 14 फाटक थे। शहर के चारों तरफ़ चारदीवार थी। राजपूत राजा सवाई मानसिंह द्वारा निर्मित जंतर-मंतर पर अनेक ज्योतिषी तरह तरह के गणनाएँ किया करते थे। ऐतिहासिक बाजार चाँदनी चौक उस समय भी भीड भरा था। लाल किले की दीवारें साक्षी है कि उन दिनों भी यहाँ काफ़ी चहल-पहल रहा करती थी।

धीरे-धीरे मुझपर अंग्रेजों का शासन हो गया। मैं अपने समदध दिनों की याद में धीरे-धीरे सुबकती रही। मेरे गली-मोहल्ले, इमारतें, गुंबद व दरवाजे इस बात के साक्षी हैं कि देश की आजादी के लिए लड़नेवालों के बालदान पर मैंने कितने आँसू बहाए थे।

अंग्रेजों ने यहाँ अनेक भव्य भवनों का निर्माण करवाया और इसे नई दिल्ली नाम दिया। कनॉट प्लेस नामक बाजार देखने योग्य बनवाया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मेरे रंग-रूप में अनेक परिवर्तन आए। भारतीयों की अपनी सरकार बन जाने के बाद शहर का ढाँचा ही बदल गया।

यहाँ जगह-जगह सड़कें, बाग-बगीचे, रहने के लिए घर बनाए जाने लगे। अनेक सरकारी भवनों का निर्माण किया गया। धीरे-धीरे नगर का आकार बढ़ने लगा। मेरी अरावली की पर्वत श्रृंखलाओं को काट-काटकर घर बनाए जाने लगे। कुतुबमीनार, जो कभी घने जंगलों के मध्य अकेली खड़ी रहती थी, आज देर रात तक वाहनों के शोर की शिकायत करती है।

मुझमें व्यापारिक केंद्र बना दिए गए। देश-विदेश के कार्यालयों की स्थापना की गई। मेरे रंग-रूप को निखारा गया। वाहन व्यवस्था में सुधार किए गए। अब तो स्थान-स्थान पर फ्लाई ओवर बन गए हैं। कहीं-कहीं भीड़ को कम करने के लिए भूमिगत मार्ग भी बन रहे हैं। यहाँ आनेवाले विदेशी पर्यटक अब मेरी तुलना अपने देशों से करते हैं। अब उन्हें यहाँ सभी विकसित देशों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मेरी प्रसिधि आज विश्वभर में फैल गई है। हर वर्ष लाखों पर्यटक मुझे देखने के लिए आते हैं।

वैसे मेरी शान ही निराली है। जहाँ मुझमें प्राचीनतम ऐतिहासिक भव्यता के दर्शन किए जा सकते हैं, वहीं आधुनिकतम ऊँची-ऊँची इमारतें, कारखाने भी उपलब्ध हैं। यहाँ गाँव भी हैं तथा नगर भी। मेरा स्वरूप विभिन्नता में एकता लिए प्राचीनता व नवीनता की अद्भुत मिसाल है।

आजकल लोग मुझे शहर या नगर नहीं, महानगर के नाम से पुकारते हैं। प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग देश के विभिन्न भागों से यहाँ आते हैं तथा यहीं के होकर रह जाते हैं। वर्तमान में मैं विश्वभर के संपन्न नगरों में से एक मानी जाती हैं। उर्दू शायर जौक ने मेरे बारे में कहा था कि –

कौन जाए ऐ ज़ौक,
दिल्ली की गलियाँ छोड़कर!

सचमुच ! जो भी कोई मेरे पास आता है, मेरा ही होकर रह जाता है। दिल्ली स्थान ही ऐसा है। यहाँ हर धर्म, भाषा, जाति, संप्रदाय व प्रांतों के लोग रहते हैं। मुगलकालीन संपन्नता व वैभव के दर्शन अति आधुनिक रूप में यहाँ आज भी किए जा सकते हैं।

मैंने अपने इतिहास में शूरवीरता के अनेक किस्से सँजो रखे हैं। अनेक ऐतिहासिक स्थल आज भी प्राचीन वैभव की गाथा गा रहे हैं। शायद ही मुझ-सा प्राचीन शहर आज विश्व के किसी कोने में उपलब्ध हो!

आज बढ़ती जनसंख्या व प्रदूषण से मेरा दम घुटा जाता है। जिस दिल्ली के गीत शायरों ने गाए थे, वह शहर अब यह नहीं है। आज यहाँ व्याप्त है – भागदौड़ और आपाधापी। वैज्ञानिक उन्नति के जितने भयंकर दुष्परिणामों को संसार झेल रहा है, वे सब मुझे प्रतिपल कष्ट पहुँचा रहे हैं। बढ़ते-बढ़ते मैं उत्तर प्रदेश व हरियाणा की सीमाओं तक पहुँच गई हैं। दिनभर भीड़ भरी सड़कों पर एक-दूसरे से टकराते लोग, यमना के तट पर धुआँ उगलती चिमनियाँ तथा सूखी यमुना नदी देखकर मेरा हृदय काँप उठता है। मन में विचार आता है कि वैज्ञानिक उन्नति की इस भागदौड में जनसमुदाय से आकंठ डूबी में कही विनाश के कगार पर तो नहीं खड़ी हूँ? न जाने कैसा होगा मेरा भविष्य!

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