Essay on Budget in Hindi बजट पर निबंध

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Essay on Budget in Hindi

hindiinhindi Essay on Budget in Hindi

किसी भी देश के विकास में बजट अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसके द्वारा राजस्व और व्यय का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाता है।

अर्थशास्त्र की आक्सफोर्ड डिक्शनरी में दी गई बजट की परिभाषा (जो कि संभवत: सबसे सरल परिभाषा है) के अनुसार, बजट भविष्य की किसी खास अवधि, जो आम तौर पर एक वर्ष की होती है, सरकार की योजनाबद्ध प्राप्तियों एवं व्यय का विवरण है। बेशक, यह विवरण गुजरे वर्ष के लिए एक रिपोर्ट कार्ड के साथ आता है और सरकार के राजस्व एवं व्यय का हिसाब-किताब पेश करता है। भारत के केन्द्रीय बजट में पारंपरिक रूप से सत्तारुढ सरकार की दीर्घ-कालिक आर्थिक दृष्टि भी समाहित रहती है।

जब संभावित राजस्व व्यय से अधिक हो जाता है तो सरकार एक ‘बजट अधिशेष’ प्रस्तुत करती है। जब सरकार का व्यय राजस्व से अधिक हो जाता है,तो सरकार ‘बजट घाटा’ पेश करती है। चूंकि सरकार अपनी व्यय योजनाओं के साथ आगे बढ़ना चाहती है, अत: उसे किसी भी प्रकार घाटे का वित्तपोषण करना पड़ता है। एक जमाने में सरकारी घाटे का वित्तपोषण निजी वित्तपोषक किया करते थे, जैसे अमेरिका में रोथशिल्ड वंश। जब सरकार काफी मुश्किलों में आ जाती है तो वह विश्व बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं से भी उधार लेती है।

बजट घाटे का वित्तपोषण आमतौर पर पूंजी बाजार से सरकारी उधारी द्वारा किया जाता है। भारत सरकार की बाजार उधारी आमतौर पर तारीख-बद्ध प्रतिभूतियों के रूप में होती है, जो बाजार ऋण के रूप में या अन्य मध्यकालिक या दीर्घकालिक उधारी या 364 दिनों के ट्रेजरी बिलों के रूप में हो सकती है। बजट अधिशेष पुराने कर्ज को चुकाने में काफी उपयोगी साबित होता है।

ब्रितानवी अर्थशास्त्री, जान मेनार्ड केनेस का मानना है कि घाटे का वित्तपोषण पशु को भूखा रखने या अर्थव्यवस्था को विकास के लिए प्यासा रखने के समान है। हांलाकि जो अर्थशास्त्री धन के सतात्मक सिद्धांत को वरीयता देते हैं, वे बताते हैं कि बजट घाटे से हमेशा ही मुद्रास्फीति की स्थिति आती है क्योंकि सरकार उधारी धन की आपूर्ति बढ़ा देती है। इसके बाद मुद्रास्फीति साधारण ब्याज दर को बढ़ा देती है।

घाटे का वित्तपोषण किया जाना होता है और वित्तीय संस्थाएँ आमतौर पर सरकार को ऋण देने के लिए तत्पर रहती हैं, क्योंकि उनके संतुलन पत्र पर यह पर संपत्तियों के रूप में प्रदर्शित होता है। निराशावादी विश्लेषक बताते हैं कि सरकार, पूंजी बाजार में गोते लगाने के जरिये अर्थव्यवस्था में बचत का एक अच्छा हिस्सा हासिल कर लेती है, और निजी क्षेत्र पूंजी बाजार के उस हिस्से से वंचित रह जाता है।

मुद्रास्फीति की स्थिति से बचने के लिए वित्त मंत्री अक्सर केन्द्रीय बैंक को सरकारी उधारी में अपना हिस्सा बढ़ाने के लिए विवश कर देता है। फिर केन्द्रीय बैंक बांड जारी करती है, जिससे ऋण का पुन: वित्तपोषण किया जा सके। हालांकि आखिर में, यह रुझान ब्याज दरों में वास्तविक (या मुद्रास्फीति समायोजित) वृद्धि की ओर ही जाती है। फिर राजस्व घाटे की स्थिति में वित्त मंत्रियों को करना क्या चाहिए?

एक्सचेकर के ब्रिटिश चांसलर सर गौर्डन ब्राउन ने अपने पहले बजट में ही एक स्वर्णिम नियम बना दिया था, जो तभी से लोकप्रिय बना हुआ है। उन्होंने कहा था कि सरकार स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों या ढांचागत क्षेत्र के अन्य रूपों – जैसे निवेश के वित्तपोषण – के लिए तो उधार ले सकती है, लेकिन वर्तमान वस्तुओं एवं सेवाओं, या सामाजिक सुरक्षा जैसे रोजमर्रा के खर्चे पर सरकारी व्यय करों से होने वाले राजस्व के जरिये ही होना चाहिए।

जैसा हम जानते हैं कि वित्तीय उत्तरदायित्व एवं बजटीय प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम, भारत सरकार को निर्देश देता है कि भारत सरकार मार्च 2008 तक अपने राजस्व एवं वित्तीय घाटे में निरंतर कमी लाए। 28 फरवरी, 2005 को वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने घोषणा की थी कि बजट घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4।3 प्रतिशत के साथ सही राह पर है।

वित्तमंत्री को विश्वास है कि वह फिर से अपना लक्ष्य हासिल कर लेंगे और वह भी भारतीयों पर अतिरिक्त कर का बोझ बढ़ाए बिना उनकी योजना के बारे में कुछ संकेत मिलने लगे हैं। वित्त मंत्री की योजना के अनुसार योजना व्यय एवं रक्षा पूंजी व्यय में 3000 करोड़ रुपये की राशि भी राष्ट्रीय निवेश फंड के बजाय बजट संसाधनों में डाली जाएगी।

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