Indian Culture Essay In Hindi भारतीय संस्कृति पर निबंध

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hindiinhindi Essay on Indian Culture in Hindi

 

 Essay on Indian Culture In Hindi 300 Words

भारत की संस्कृति बहुत सारी चीजों से मिल जुलकर बनी है जैसे की विरासत के विचार, लोगों की जीवन शैली, मान्यताएँ, रीति-रिवाज़, मूल्य, आदतें अदि। भारत की संस्कृति, भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान आगे बढ़ी और चलते-चलते वैदिक युग में विकसित हुई। भारत विश्व के उन प्राचीन देशो में से एक है जिसमे बौद्ध धर्म और स्वर्ण युग की शुरुआत हुई, जिसमे खुद की एक अलग प्राचीन विश्व विरासत शामिल है।

संस्कृति दूसरों से व्यवहार करने का, प्रतिक्रिया, मूल्यों को समझना, मान्यताओं को मानने का एक तरीका है। दुनिआ भर के अलग अलग देशो की अपनी भिन-भिन संस्कृति है, और सभी को अपनी संस्कृति पर नाज़ है। भारत की संस्कृति में पड़ोसी देशों के रीति-रिवाज, परंपरा और विचारों का अभी बहुत समावेश है। भारत हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे अन्य कई धर्मों का जनक है। दिन भर के सभी कार्यो में अपने देश के संस्कृति के झलक मिल जाती है जैसे कि नृत्य, संगीत, कला, व्यवहार, सामाजिक नियम, भोजन, हस्तशिल्प, वेशभूषा आदि।

विश्व कि प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक होने के कारन भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में बहुत महत्व रखती है। भारत कि संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है। प्राचीनता के साथ इसकी दूसरी विशेषता अमरता और तीसरी जगद्गुरु होना है।

पुराणी पीढ़ी के लोग नयी पीढ़ी को अपनी संस्कृति और मान्यताओं को सौंपते है, जो खुद बूढ़े होने पर आने वाली पीढ़ी को सौंप देते है। इसी तरह ये संस्कृति आगे बढ़ती जाती है और विशाल रूप धारण कर लेती है। इसी संस्कृति की वजह से ही सभी बच्चे अच्छे वे व्यवहार करते ही क्योकि ये संस्कृति उन्हें उनके दादा-दादी और नाना-नानी से मिली। ये हमारे भारत देश कि ही संस्कृति है जहा घर ए मेहमान कि सेवा की जाती है और मेहमान को भगवन का दर्जा दिया जाता है। इसी वजह से भारत में “अतिथि देवो भव:” का कथन बेहद प्रसिद्ध है।

Essay on Indian Culture In Hindi 1000 Words

संस्कृति-सामाजिक संस्कारों का दूसरा नाम है जिसे कोई समाज विरासत के रूप में प्राप्त करता है। दूसरे शब्दों में संस्कृति एक विशिष्ट जीवन शैली है, एक ऐसी सामाजिक विरासत है जिसके पीछे एक लम्बी परम्परा होती है।

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तथा महत्त्वपूर्ण संस्कृतियों में से एक है, किंतु यह कब और कैसे विकसित हुई, यह कहना कठिन है। प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इसकी प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। वेद संसार के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। भारतीय संस्कृति के मूलरूप का परिचय हमें वेदों से मिलता है। वेदों की रचना ईसा से कई हजार वर्ष पूर्व हुई थी। सिंधु घाटी की सभ्यता का विवरण भी भारतीय संस्कृति की प्राचीनता पर प्रकाश डालता है। इसका इतना लंबा और अखंड इतिहास इसे महत्त्वपूर्ण बनाता है। मिस्र, यूनान और रोम आदि देशों की संस्कृतियां आज केवल इतिहास बन कर सामने हैं, जबकि भारतीय संस्कृति एक लम्बी ऐतिहासिक परम्परा के साथ आज भी निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। महाकवि इकबाल के शब्दों में -
यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहाँ से। 
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।।

आखिर यह बात क्या है ? भारत में समय-समय पर ईरानी, यूनानी, शक, कुषाण, हूण, अरब, तुर्क, मंगोल आदि जातियाँ आईं लेकिन भारतीय संस्कृति ने अपने विकास की प्रक्रिया में इन सभी को आत्मसात कर लिया और उनके अच्छे गुणों को ग्रहण करके उन्हें अपने रंग-रूप में ऐसा ढाला कि वे आज भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। भारत ने वे सभी विचार, आचार-व्यवहार स्वीकार कर लिए जो उसकी दृष्टि में समाज के लिए उपयोगी थे। अच्छे विचारों को ग्रहण करने में भारतीय संस्कृति ने कभी परहेज नहीं किया। विविध संस्कृतियों को पचाकर उन्हें एक सामाजिक स्वरूप दे देना ही भारतीय संस्कृति के कालजयी होने का कारण है।’ अनेकता में एकता’ ही भारतीय संस्कृति की विशिष्टता रही है। कवि गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने भारत को ‘महामानवता का सागर’ कहा है। यह सचमुच महासागर है। यह – जाति, धर्म, भाषा-साहित्य, कला-कौशल आदि की अनेक सरिताओं द्वारा समृद्ध महामानवता का महासागर है।
संसार के सभी प्रमुख धर्म भारत में प्रचलित हैं। सनातन धर्म (हिंदू), जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, इस्लाम, सिख सभी धर्मों को मानने वाले लोग यहां रहते हैं। भाषा की दृष्टि से यहां लगभग 150 भाषाएं बोली जाती हैं। यहाँ ‘ढाई कोस पर बोली बदले’ वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है। संसार के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के रूप में साहित्य की जो प्रथम धारा यहीं फूटी थी, वही समय के साथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती, बंगला, तथा तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ आदि के माध्यमों से विकसित हुई और फ़ारसी तथा अंग्रेजी साहित्य ने भी उसे ग्रहण किया।

नृत्य और संगीत के क्षेत्र में भी यही समन्वय देखने को मिलता है। भारत नाट्यम, ओडिसी, कुच्चिपुड़ि, कथकली, मणिपुरी, कत्थक नृत्य शैली में मुगल दरबार की संस्कृति का बड़ा सुंदर रूप देखने को मिलता है। भारतीय संगीत में भी हमें विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। सामगान से उत्पन्न भारतीय संगीत के विकास के पीछे भी समन्वय की एक लम्बी परम्परा है। यह लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों को अपने में समेटे हुए है। हिन्दुस्तानी तथा कर्नाटक शास्त्रीय संगीत दोनों में ही अनेक लोकधुनों ने राग-रागिनियों के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली है। ईरानी संगीत का प्रभाव आज भी अनेक राग-रागिनियों और वाद्य यंत्रों पर स्पष्ट दिखाई देता है। हिन्दुस्तानी संगीत की समद्धि में तो अनेक मुस्लिम संगीतकारों का योगदान रहा है।

साहित्य और संगीत के समान भारतीय वास्तुकला और मूर्तिकला में भी विविधता में एकता दिखाई देती है। इससे भारत में आई विभिन्न जातियों की कलाशैलियों के पूरे इतिहास की झलक देखने को मिलती है। इसमें एक ओर तो शक, कुषाण, गांधार, ईरानी, यूनानी शैलियों से प्रभावित धाराएँ आ जुड़ी हैं तो दूसरी ओर इस्लामी और ईसाई सभ्यता से प्रभावित धाराएँ, किंतु ये सब धाराएँ मिलकर भारतीय कला को एक विशिष्ट रूप प्रदान करती हैं।

भारत पर्वो एवं उत्सवों का देश है। हमारे पर्व एवं त्योहार अनेकता में हमारी सांस्कृतिक एकता को दर्शाते हैं। दीपावली, दशहरा, बैशाखी, पोंगल, ओणम, मकर संक्रांति, गुरुपर्व, बिहू, ईद-उल-फ़ितर, ईद-उल-जुहा, क्रिसमस, नवरोज आदि में भारतीय संस्कृति की इसी एकात्मकता के दर्शन होते हैं। इन सभी पर्यों एवं त्योहारों ने हमारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया हुआ है। ये सभी भारतीय संस्कृति की एकता जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं और हमें ये बार-बार अनुभव कराते हैं कि हमारी परम्परा और हमारी संस्कृति मूलत: एक है।
देश के विभिन्न भागों में बसे लोग भाषा, धर्म, वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज़ आदि की दृष्टि से भले ही ऊपरी तौर पर एक दूसरे से भिन्न दिखाई देते हैं, किंतु इन विभिन्नताओं के बावजूद भारत एक सांस्कृतिक इकाई है।

वस्तुत: अनेकरूपता ही किसी राष्ट्र की जीवंतता, संपन्नता तथा समृद्धि का द्योतक है। भारतीय संस्कृति की समृद्धि तथा गरिमा इसी अनेकता का परिणाम है। इस अनेकता ने ही धर्म, जाति, वर्ग, काल की सीमाओं से ऊपर उठकर भारतीय संस्कृति को एकात्मकता प्रदान की है और महामानवता के एक सागर के रूप में प्रतिष्ठित किया है।

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