Mata Vaishno Devi Essay in Hindi

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Mata Vaishno Devi Essay in Hindi

आश्विन के नवरात्रे आरम्भ होते ही हमने मित्रों सहित माता वैष्णों देवी के दर्शन का निश्चय किया। प्रात: आठ बजे हम चण्डीगढ़ के बस स्टैण्ड पर पहुँचे। चण्डीगढ़ से हमने पठानकोट के लिए बस ली। वहां पहुँचकर हमने जम्मू के लिए बस ली। जम्मू हम सायं कोई सात बजे पहुँच गए। हमने जम्मू के ऐतिहासिक रघुनाथ जी तथा शिव मंदिर के दर्शन किये। रात हमने जम्मू की एक धर्मशाला में गुजारी।

अगले दिन प्रात:काल हम कटरा जाने वाली बस में सवार हुए | ‘जय माँ शेराँ वाली’ के जयकारे लगाते रहे। कटरा जम्मू से कोई 50 किलोमीटर दूर है। कटरा पहुँचकर हमने अपना नाम दर्ज करवाया और पर्ची ली। कटरा से भक्तों को पैदल चलना पड़ता है। कटरा से माँ
के दरबार को जाने के तीन रास्ते हैं। एक सीढ़ियों से जाने वाला मार्ग है, दूसरा साधारण और तीसरा नया रास्ता है। हमने साधारण रास्ता ही चुना। हम माता की जय पुकारते हुए माँ के दरबार की और पैदल चल दिए। पाँच किलोमीटर चलकर हम चरण पादुका मंदिर पहुंचे। इसमें अभी भी भगवती की चरण पादुकाएँ रखी हुई हैं। मन्दिर के पास ही पीपल का विशाल वृक्ष है। इसकी ठण्डी छाया में बैठकर हमारी थकावट दूर हो गई। थोड़ी देर वहां विश्राम करके हम आगे चल दिए। चरण पादुका मंदिर से चलकर हम ‘अर्धकुमारी मंदिर में पहुँचे। यह समुद्र से लगभग पाँच हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर कटरा तथा वैष्णो देवी भवन के मध्य में स्थित है। रहने के लिए भोजन की भी यहाँ अच्छी व्यवस्था है। अर्धकुमारी मंदिर से हम गर्भवास गुफ़ा की ओर चल पड़े। हमने भी इस गुफ़ा को पार किया और माँ के जन्म मरण से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। जहाँ अर्धकुमारी से ऑटो द्वारा सांझी छत्त तक पहुँचा जा सकता है। सभी भक्तजन माँ के जयकारे लगाते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे।

आगे का मार्ग बड़ा दुर्गम था। हाथी के मस्तक की तरह उभरी हुई सीधी चढ़ाई थी। इसलिए इसे ‘हाथी मत्था की चढ़ाई’ कहते हैं। पहले इसे चढ़ने के लिए केवल सीढ़ियां थीं किन्तु पिछले दिनों सरकार ने पक्का रास्ता भी तैयार करवा दिया है। रास्ते में स्थान-स्थान पर ख़ाने, पीने का पानी और शौचालय उपलब्ध हैं। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बिजली के दुधिया बल्ब जगमगा रहे हैं। इसलिए हमें यह रास्ता तय करने में विशेष कठिनाई नहीं हुई। हम उस चढ़ाई को पार कर 6200 फुट की ऊँचाई पर पहुँच गए। केवल साढ़े तीन (3.5) किलोमीटर की दूरी शेष रह गई थी। सामने सपाट रास्ता देखकर हमारा उत्साह दुगुना हो गया।

कुछ आगे बढ़ने पर भैरों घाटी दिखाई दी। लोगों ने बताया कि यह मंदिर उसी भैरवनाथ का है जिसने भगवती के यज्ञ में विघ्न डाला था। जब वह पीछा करता हुआ यहाँ तक आ पहुँचा तो भगवती ने अपने त्रिशूल से उसका गला काट डाला। उसका सिर लुढ़कता हुआ इस घाटी पर जा गिरा था। माँ से क्षमा माँगने पर उसे माँ के चरणों में निवास मिला जहाँ पर अब वह मंदिर बना हुआ है। भक्तजन, भगवती के दर्शन करने के बाद ही इस मंदिर में दर्शन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि पहले इसके दर्शन कर लिए जाएँ तो भगवती के दर्शनों का फल निष्फल हो जाता है। इसलिए हम भी सीधा भगवती के मंदिर की ओर चल दिए।

भैरों घाटी को पार कर माता के मंदिर के निकट पहुँच गए। वहाँ हमने अपना नाम दर्ज करवाया। तब बारी आने की प्रतीक्षा करने लगे। मंदिर के दर्शनों को जाने के लिए हमारा नाम आने में थोड़ी ही देर बाकी थी। मंदिर के द्वारे के पास ही एक बड़ा द्वार से होता हुआ उस में गिरता है। कुछ वर्ष पूर्व पानी की धारा इतनी तेज थी कि उसके नीचे बैठकर कोई स्नान नहीं कर सकता था। अब सरकार ने एक टैंकी बनवा दी है। इसके चारों ओर स्त्री तथा पुरुषों के लिए अलग-अलग स्नान गृह हैं। नल लगे हुए हैं, जिनके नीचे बैठकर यात्री स्नान करते हैं। वहाँ हमने स्नान किया और मंदिर के मुख्यद्वार के आँगन में आ गए। | भगवती के दर्शन करवाने का सुन्दर प्रबंध था। जब एक टोली अन्दर दर्शन करने चली जाती। तब दूसरी उसका स्थान ले लेती थी। हमने माँ वैष्णो देवी के दर्शन किये।

गुफ़ा में भगवती की तीन पिण्डियाँ हैं जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से विख्यात हैं। उन पिण्डियों के आसन के निचले भाग से जलधारा निकलती है। हमने भगवती के चरणों में प्रणाम किया और प्रसाद, पान, सुपारी, ध्वज, नारियल आदि अर्पित किया। पुजारी जी ने सबके माथे को तिलक लगाया। भगवती के चरणों में चढ़ा हुआ प्रसाद, जिसमें पैसे भी थे, देकर पुजारी जी ने कहा, यह भगवती का खज़ाना है, इसे स्वीकार करो और घर जाकर | अपने खजाने में रख लो। कभी किसी बात की कमी नहीं आएगी। माथा टेका, प्रसाद लिया और पीछे के रास्ते से बाहर आ गए। बाहर हमने कन्या पूजन किया और कन्याओं को दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। वापसी पर हम भैरव मंदिर के दर्शन करते हुए कटरा आ गए। | कटरा आकर कश्मीर के प्रसिद्ध उपहार अखरोट, सेब और मीनाकारी किया लकड़ी का कुछ सामान ख़रीदा।

कटरा से जम्मू और जम्मू से पठानकोट होते हुए पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ लौट आए। भक्तों द्वारा ‘जय माता की’, जय माता की’ की ध्वनियाँ अब भी कानों में गूंज रही थी।

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