Nar ho Na Nirash Karo Man ko in Hindi Essay

We are going to discuss Nar ho Na Nirash Karo Man ko in Hindi Essay for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. नर हो न निराश करो मन को पर निबंध।

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Nar ho Na Nirash Karo Man ko in Hindi Essay

विचार-बिंदु – • निराश न होने की प्रेरणा • नर होने का बोध • पौरुष, उत्साह और शक्ति का बोध • निराशा के क्षण में जूझना आवश्यक • कर्म और पौरुष आवश्यक • कर्म से निराशा समाप्त • बुरे क्षण समाप्त • अच्छे फल मिलना आरंभ।

मैथिलीशरण गुप्त की कविता की ये पंक्तियाँ मानव को प्रेरणा देती हैं कि कभी निराश न होओ। जब भी निराशा तुम्हें घेर ले, तुम यह सोचो कि तुम नर हो। तुम में पौरुष है, उत्साह है, शक्ति है। अतः निराशा से जूझने के लिए मन में शक्ति एकत्र करो। निराशा के समय अपना आत्मबोध जाग्रत करो। अपनी संपूर्ण शक्ति जगाओ। निराशा से जूझो।

नर जितना-जितना निराशा के विरुद्ध लड़ेगा, उतना-उतना प्रकाश फैलता चला जाएगा। इसके विपरीत, जिसने निराशा को मनमानी करने दी, अपनी शक्ति न दिखाई, वह अवश्य ही हताश हो जाएगा। उसका जीवन मुरझा जाएगा। यदि जीवन को उत्साहमय, तेजस्वी और कर्मठ बनाना है तो अपना पौरुष जगाओ, कर्म करो। कर्म करने से निराशा की धुंध अपने आप बँटने लगती है। मनुष्य का मन निराशा की बजाय कुछ करने में बीतने लगता है। इससे एक तो बुरा समय बीत जाता है, दूसरे कर्म का कुछ फल सामने आने लगता है। इसलिए जब भी निराशा के क्षण आएँ, मनुष्य को उत्साहपूर्वक कर्म में जुट जाना चाहिए।

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